मिशन 2019: भाजपा को हर राज्य के लिए बनानी होगी अलग चुनावी रणनीति
punjabkesari.in Wednesday, Jan 23, 2019 - 10:07 AM (IST)
नई दिल्ली: क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की एकजुटता से राष्ट्रीय महागठबंधन बनना मुश्किल दिखाई दे रहा है। विभिन्न राज्यों में प्रमुख पार्टियों ने महागठबंधन का विरोध किया है, जिससे एन.डी.ए. को भी विभिन्न राज्यों में विपक्ष से निपटने के लिए बहुचरणीय रणनीति बनाने पर मजबूर होना पड़ा है। इससे न केवल विपक्षी दलों को वोटों को मजबूत बनाने में सफलता मिलेगी, बल्कि अपने हितों को उठाने में भी मदद मिलेगी। भाजपा को अपना प्रमुख विरोधी मानते हुए क्षेत्रीय पार्टियां अपने विरासत वोटों के आधार को अपने साथ मिलाने में कामयाब होंगी। उदाहरण के तौर पर समाज पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अलग रखते हुए राज्य में गठबंधन बनाया है, जिससे चुनावों के दौरान मुकाबला त्रिकोणा हो जाएगा।
2014 में राज्य में 4 चरणीय मुकाबले हुए थे। 25 साल के अंतर के बाद भाजपा एक गठबंधन के रूप में सपा-बसपा का मुकाबला करेगी। महागठबंधन बनता तो मुकाबला मोदी बनाम विपक्ष होता बिहार में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) राजद, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, कांग्रेस और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जे.आर. मांझी की पार्टी ‘हम’ का मुकाबला करेगी। एन.डी.ए. में भाजपा के अलावा नीतीश कुमार की पार्टी जद (यू) और पासवान की रालोद शामिल हैं। अगर सभी विपक्षी पार्टयां भाजपा के खिलाफ इकट्ठी हो जाती हैं तो भाजपा को मदद मिलेगी। तब यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और विपक्ष के बीच सीधा मुकाबला होगा। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि अगर ऐसी स्थिति नहीं बनी तो भाजपा को बहुचरणीय चुनौतियों का सामना करते हुए 50 प्रतिशत तक मत जीतने होंगे।
यू.पी. और बिहार के चुनाव नतीजे अहम भूमिका निभाएंगे
यू.पी. और बिहार दोनों राज्यों के 120 सांसद हैं जो केंद्र में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे। भाजपा ने 2014 में इन दोनों राज्यों से 104 सीटें जीती थीं। भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या और मजबूती यह है कि पार्टी एन.डी.ए. के साथ 16 राज्यों में सत्तारूढ़ है। क्षेत्रीय पाॢटयों के एकजुट होने से राष्ट्रीय विकल्प बनना मुश्किल हो सकता है और इसमें स्थानीय पहलुओं और राज्य सरकारों की भूमिका अहम हो सकती है। राज्य सरकारों की विरोधी लहर भी राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभा सकती है।
नायडू और ममता एक मंच पर
कई प्रमुख क्षेत्रीय नेता और मुख्यमंत्री विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहे हैं विशेषकर तेलुगू देशम पार्ट के प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी। शनिवार को ममता बनर्जी ने कोलकाता में एक बड़ी रैली का आयोजन कर भाजपा के खिलाफ विपक्ष की शक्ति का प्रदर्शन किया।
रैली में सभी विपक्षी दलों के बड़े नेताओं ने हिस्सा लिया, सिर्फ वामदल शामिल नहीं हुए
इस रैली में गुजरात से विधायक जिग्रेश मेवाणी, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा, भाजपा के पूर्व नेता अरुण शोरी और भाजपा नेता शत्रुघ्न सिन्हा भी शामिल हुए। इसी दौरान महाराष्ट्र में कांग्रेस और राकांपा ने भाजपा और शिवसेना के खिलाफ लगभग सीटों का बंटवारा कर लिया है। वे भाजपा विरोधी पाॢटयों को भी अपने गठबंधन में शामिल करने में प्रयत्नशील हैं। उनकी भारतीय बहुजन महासंघ के साथ भी बातचीत चल रही है मगर महाराष्ट्र में सपा और बसपा पर अभी कोई विचार नहीं किया गया है। बिहार में कांग्रेस, राजद, हम और आर.एल.एस.पी. के बीच सीटों का बंटवारा लगभग तय है। शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति आजाद को भी गठबंधन में शामिल किया जा सकता है।