कर्नाटक में चुनाव जीतने के लिए भाजपा को मोदी-बोम्मई-बीएसवाई के जादू का भरोसा
punjabkesari.in Sunday, Jan 22, 2023 - 09:17 PM (IST)

नेशनल डेस्क : कर्नाटक में पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा को कथित रूप से दरकिनार किए जाने की अपुष्ट मीडिया रिपोटरं के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का केंद्रीय नेतृत्व आगामी विधानसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत हासिल करने के लिए ‘मोदी-बोम्मई-बीएसवाई' रणनीति पर चुपचाप तरीके से काम कर रहा है। दरअसल श्री येदियुरप्पा भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के साथ-साथ सोशल इंजीनियरिंग तथा आरक्षण कोटा सहित अन्य मुद्दों की मदद से बड़ी जीत हासिल करना चाहते हैं।
भाजपा नेतृत्व ने श्री येदियुरप्पा को अपनी सर्वोच्च और सबसे शक्तिशाली निर्णय लेने वाली संस्था (संसदीय समिति) का सदस्य बनाया, ताकि उन्हें अनदेखा न किया जा सके. बल्कि कर्नाटक की राजनीति में उनकी राजनीतिक पहुँच का उपयोग किया जा सके। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है, जब 2019 में भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिलने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था। इतना ही नहीं, भाजपा श्री येदियुरप्पा को नजरअंदाज करने से खुद को होने वाले नुकसान से भी वाकिफ है, जो उसने वास्तव में तब किया जब उन्होंने अपना कर्नाटक जनता पक्ष बनाने के लिए पार्टी छोड़ दी।
वर्ष 2013 के चुनाव में भाजपा 40 सीटों पर सिमट गई थी। भ्रष्टाचार के आरोपों पर मुख्यमंत्री पद से हटने के लिए कहे जाने के बाद लिंगायत समुदाय के नेता येदियुरप्पा ने अपनी पार्टी बनाई थी। साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से वोक्कालिगा मतदाताओं पर जनता दल (सेक्युलर) की पकड़ को ध्यान में रखते हुए 2021 में श्री येदियुरप्पा के स्थान पर पार्टी ने श्री बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया था। वैसे श्री बोम्मई में अभी भी दोबारा मुख्यमंत्री बनने की क्षमता है। वे जद (एस) में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के राजनीतिक सचिव रहे हैं।
इसलिए श्री बोम्मई के पास जद(एस) के मजबूत और कमजोर बिंदुओं की भरपूर जानकारी है। क्या यह भाजपा के पक्ष में काम करेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। भाजपा ने इस बार वोक्कालिगा मतदाताओं को लुभाने की रणनीति बनाई है, जबकि पिछले मौकों पर इसका फोकस मुख्य रूप से लिंगायत वोटों पर था। सोशल इंजीनियरिंग के मामले में, भाजपा दलित और वनवासी मतदाताओं के महत्व को बहुत अच्छी तरह से समझती है। राज्य में इन समुदायों के लिए 51 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। इसे देखते हुए, राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू के चुनाव के बाद से ही आदिवासियों को लुभाने के भाजपा के प्रयास और अधिक स्पष्ट हो गए हैं।
साथ ही मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में आदिवासी समूहों और संगठनों के विरोध के बाद भारतीय वन अधिनियम, 1927 और सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, 2003 में संशोधन के प्रस्तावों को वापस ले लिया है। साथ ही सरकार ने आदिवासी कल्याण पर बजटीय खर्च भी बढ़ाया और कृषि वानिकी तथा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया। मोदी सरकार उन दलित समुदायों को भी लुभा रही है जो कांग्रेस के वोट बैंक रहे हैं। गत 19 जनवरी को, उन्होंने उत्तरी कर्नाटक में रहने वाले लम्बानी खानाबदोश जनजातियों के 52,000 से अधिक पात्र लाभार्थियों को टाइटल डीड वितरित किए जो एक तरह का विश्व रिकॉडर् था। इन कोशिशों से भाजपा आदिवासी और दलित वोटरों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है।
इसके अलावा भाजपा को कांग्रेस और जद (एस) के बीच मुस्लिम वोटों के बंटने से भी फायदा होने का भरोसा है। भाजपा ने न केवल वृहद स्तर पर, बल्कि राज्य में सूक्ष्म स्तर पर भी आक्रामक चुनाव अभियान शुरू किया है। इसका उद्देश्य प्रदेश के सभी बूथों पर संगठन को मजबूत करना है। इसके अलावा, यह विजय संकल्प अभियान यात्रा के माध्यम से घर-घर अभियान चलाने और लोगों से जुड़ने के उद्देश्य से चुनावी लाभांश प्राप्त करना चाहता है। जहां तक ??कर्नाटक भाजपा के असंतुष्ट नेताओं का सवाल है, पाटर्ी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, भाजपा उन्हें पाटर्ी की अभियान समिति में शामिल करके मनाने की रणनीति पर काम कर रही है।