रूस ने भी माना अमरीका को सुपर पॉवर

punjabkesari.in Saturday, Jun 18, 2016 - 01:08 PM (IST)

रूस के राष्ट्रपति मानते हैं कि दुनिया  में अमरीका ही सुपरपॉवर है। वह इसके लिए तैयार हैं कि वहां होने वाले राष्ट्रपति के चुनावों में कोई भी उम्मीदवार जीते, उसके साथ मिलकर काम करेंगे। लेकिन पुतिन यह नहीं चाहते कि अमरीका ही बताए कि रूस को कैसे रहना है। इस पर उन्हें आपत्ति है। वे इसकी परवाह भी नहीं कर रहे हैं कि यूक्रेन और यूरोपीय संघ को लेकर उनकी क्या आलोचना हुई थी। इन दिनों हालांकि दोनों देशों के संबंध अच्छे नहीं चल रहे हैं, इसके बावजूद रूस के राष्ट्रपति अमरीका का लोहा मानते हैं। इसी लिए वे कहते हैं कि दुनिया में अमरीका ही अकेली सुपर पॉवर है।

बीते समय की बात करें तो वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद दुनिया का शक्ति संतुलन बिगड़ गया। अमरीका के समानांतर या समकक्ष महाशक्ति या सुपर पावर की मान्यता प्राप्त सोवियत संघ अपनी स्वयं की समस्याओं में उलझ गया और अमरीका का वर्चस्व स्थापित हुआ। तेजी से सामरिक और आर्थिक मंच पर उभरते चीन को देख समीक्षकों ने आनन-फानन में नए सुपर पावर के उदय होने की घोषणा कर दी। चीन ने भी सुपर पावर बनने के मंसूबे बांध लिए। 

कुछ तथ्यों के आधार पर अमरीका को सुपर पॉवर माना जा सकता है। दूसरे शब्दों में यह महाशक्ति बनने के मानदंडों को पूरा करता है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार करीब 16.8 ट्रिलियन डॉलर के साथ अमरीका विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था मानी जाती है। वहां की करेंसी डॉलर विश्व भर में मान्य है। वर्ल्ड-बैंक को सबसे ज्यादा मदद अमरीका से मिलती है। 

यदि आंकड़ों पर नजर डालें तो 2006 से लेकर 2013 तक अमरीका ने वर्ल्ड बैंक को 13.4 बिलियन डॉलर की सहायता दी थी। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में अमरीका के पास 17.69 फीसदी कोटा है, जो सबसे ज़्यादा है। 

प्रति व्यक्ति आय की बात करें तो यह लगभग 32 लाख रुपए हैं। यही नहीं, अमरीका के पास 44.2 बिलियन बैरल का तेल भंडार है। ऐसी कुछ विशेषताएं हैं जिनके आधार पर इसे दुनिया मी महाशक्ति माना जाता है। उसकी तुलना में चीन की सरकार को अमीर और जनता को गरीब माना जाता है। वहां धन केवल अभिजात्य वर्ग तक सीमित है। चीन की गरीबी की रेखा अमरीका की गरीबी रेखा के मापदंड से 15 गुना नीचे है। उसके बाद भी यहां 10 करोड़ जनता गरीबी रेखा के नीचे है। अमीर-गरीब, शहर-गांव की आय के बीच की खाई चौड़ी होती जा रही है। इस खाई को पाटने के लिए अभी वर्षों का प्रयास चाहिए। कोई देश आर्थिक रूप से समृद्ध तब माना जाता है, जबकि समृद्धि समाज के सबसे निचले स्तर तक पहुंचे।

अमरीका का सैन्य खर्च कुल 600 बिलियन डॉलर है। उसके 23 देशों में अपने सैन्य ठिकाने हैं जिससे वह पूरे विश्व पर नियंत्रण रख सकता है।  उसके पास 7650 न्युक्लीयर हथियार हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है। उसके पास वीटो पावर है। यदि अंतरिक्ष की बात करें तो अब तक अमरीका के 334 अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष की यात्रा कर चुके हैं। उसने वर्ष 1969 में अपने नागरिक को चांद में भेज दिया था। मंगल अभियान में भारत ने अमरीका को टक्कर ज़रूर दी है। इस सुपर पॉवर के मैवेन प्रोग्राम में लगभग 671 मिलियन डॉलर खर्च हुए हैं। अमरीका के पास अंतरिक्ष से चलने वाले हथियार भी हैं। 

दुनिया के 15 विकसित राष्ट्रों ने एक साझा समझौते के तहत अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया और आपसी सहयोग से आज भी कई तरह के प्रयोगों का सिलसिला जारी है। चीन सबसे अलग-थलग अपने अभियान स्वयं चला रहा है। दशकों पहले की स्काइलैब तकनीक पर आधारित एक स्टेशन अंतरिक्ष में स्थापित किया है। इस तरह अमरीका और रूस, चीन से 40 वर्ष आगे हैं।

खटकने वाली बात यह है कि अमरीका दुनिया के सभी देशों को अपने हिसाब से चलाना चाहता है, ताकि उसके हितों को कोई नुकसान न पहुंचे। वह कभी किसी देश को व्यापारिक या सैनिक सहायता देकर दूसरे पर कूटनीतिक दबाव बनाकर वो अपने मंसूबों में कामयाब हो ही जाता है। भारत, पाकिस्तान से लेकर यूरोप के कई देश और साउथ कोरिया तक सभी सहयोग लेकर उसके पाले में आ जाते हैं। फिर वह इन सब पर अपनी धाक जमाए रहता है। 

फिर भी दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां के शासकों और जनता को अमरीका से बहुत चिढ़ है। उन्हें यह फूटी आंख नहीं सुहाता। इस कारण ये देश न तो अमरीका का कहा मानते हैं और न ही उसका सहयोग करते हैं। साफतौर पर कहा जाए तो दुनिया के कुछ देश अमरीका की आंख की किरकिरी बने हुए हैं। यहां उसकी मनमानी नहीं चल पाती। इन्हीं में ईरान और रूस भी शामिल रहे हैं। अब दोनों का रवैया अमरीका के प्रति बदल रहा है। इनके अलावा उत्तरी कोरिया, चीन, जॉर्डन, बेलारूस, लेबनान, तजाकिस्तान, आॅस्ट्रिया आदि ऐसे देश हैं तो अमरीका का प्रभुत्व स्कीकार नहीं करते।

चीन की क्षमताओं का आकलन करने के बाद समीक्षक मानने लगे हैं कि चीन को अमरीका तक पहुंचने के लिए अ​भी कुछ वर्ष और चाहिए। लेकिन वह इस ओर अपनी गति से बढ़ रहा है। उसने अपनी उत्पादन क्षमता, निपुणता, दक्षता और कौशल से सबको हैरान किया है। अपनी नई शक्ति से वह भी महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। देखना होगा कि वह कितनी जल्दी अमरीका की बराबरी करता है।


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