अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स ने किया खुलासा – चलना, बैठना, सोना भूल जाते हैं… दिखती हैं परियां, सुनाई देती हैं रहस्यमयी आवाजें

punjabkesari.in Monday, Jun 30, 2025 - 12:59 PM (IST)

नेशनल डेस्क: अंतरिक्ष की यात्रा जितनी रोमांचक और अद्भुत लगती है, उतनी ही रहस्यमयी और चुनौतीपूर्ण भी होती है – खासकर इंसानी दिमाग के लिए। जब कोई एस्ट्रोनॉट महीनों तक गुरुत्वाकर्षण रहित वातावरण में रहता है, तो न सिर्फ उसका शरीर बल्कि उसका मस्तिष्क भी अप्रत्याशित बदलावों से गुजरता है। हाल ही में अंतरिक्ष से लौटीं भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स ने खुलासा किया कि स्पेस में लंबे समय तक रहने के बाद उन्हें चलना, बैठना और सोना तक याद नहीं रहा।

यह अकेला मामला नहीं है। NASA के एक अनुभवी अंतरिक्ष यात्री डोनाल्ड पेटिट ने बताया कि स्पेस से लौटने के बाद जब वे आंखें बंद करते, तो उन्हें परियों की झलक दिखती और अजीब सी तेज रोशनी और ध्वनियां सुनाई देती थीं।

तो आखिर क्या है वो साइकोलॉजिकल और न्यूरोलॉजिकल बदलाव, जो अंतरिक्ष में ज्यादा वक्त बिताने से इंसानी दिमाग में होते हैं? आइए जानते हैं विज्ञान की नजर से इस रोमांचक लेकिन चौंकाने वाली हकीकत को।

हाल ही में भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और उनके साथी बुच विल्मोर अंतरिक्ष से नौ महीने और 13 दिन के लंबे मिशन के बाद लौटे। यह अनुभव उनके लिए सिर्फ एक साहसिक यात्रा नहीं, बल्कि एक मानसिक और शारीरिक चुनौती बन गया था। सुनीता ने चौंकाने वाला खुलासा किया कि पृथ्वी पर लौटने के बाद उन्हें चलना, बैठना और सोना तक याद नहीं रहा।

तो क्या होता है ऐसा अंतरिक्ष में जो हमारे मस्तिष्क की सामान्य कार्यप्रणाली को बदल देता है? आइए जानते हैं वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर...

अंतरिक्ष में दिमाग पर कैसे होता है असर?
1. जीरो ग्रेविटी का असर:

अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नहीं होता, और जब कोई अंतरिक्ष यात्री कई हफ्तों या महीनों तक इस शून्य गुरुत्व बल में रहता है, तो शरीर की संपूर्ण कार्यप्रणाली बदल जाती है। ज़मीन पर लौटने के बाद संतुलन बनाना, चलना और शरीर को सीधा रखना कठिन हो जाता है।

2. दिमाग में संरचनात्मक बदलाव:
एक अध्ययन में पाया गया कि जब अंतरिक्ष यात्रियों के ब्रेन स्कैन को स्पेस मिशन से पहले और बाद में देखा गया, तो उनमें खास तौर पर पेरिवैस्कुलर स्पेस (Perivascular space) में बदलाव नजर आए। ये स्पेस दिमाग में फ्लूइड मूवमेंट से जुड़ा होता है और इसका बढ़ना मस्तिष्क की कार्यशैली पर असर डाल सकता है।

3. इंद्रियों में भ्रम और रोशनी की झलकियां:
एस्ट्रोनॉट डोनाल्ड पेटिट ने बताया कि अंतरिक्ष से लौटने के बाद जब वे आंखें बंद करते, तो उन्हें 'फेयरी लाइट्स' यानी परियों जैसी झलकियां दिखाई देती थीं। कई अन्य यात्रियों ने भी तेज रोशनी और अजीब आवाज़ें सुनने की बात स्वीकार की है, जो कि दिमाग की संवेदनशीलता में आए परिवर्तन को दर्शाता है।

4. रेडिएशन से दिमाग की कार्यप्रणाली प्रभावित:
अंतरिक्ष में पृथ्वी की तुलना में काफी अधिक कॉस्मिक रेडिएशन होता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह रेडिएशन न्यूरॉन्स को प्रभावित करता है, जिससे मस्तिष्क का व्यवहार और सोचने की प्रक्रिया बदल जाती है।

5. न्यूरोप्लास्टिसिटी (Neuroplasticity):
स्पेस में दिमाग खुद को नए माहौल के अनुरूप ढालने की कोशिश करता है। इसे न्यूरोप्लास्टिसिटी कहते हैं। यह प्रक्रिया अस्थायी रूप से फायदेमंद हो सकती है, लेकिन लंबे समय तक इससे मेमोरी, मूड और निर्णय लेने की क्षमता पर असर पड़ सकता है।

6. थकावट और एनीमिया:
अंतरिक्ष से लौटने के बाद एस्ट्रोनॉट्स थकान की शिकायत करते हैं। इसका एक प्रमुख कारण है स्पेस एनीमिया – यानी लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में गिरावट, जो गुरुत्वाकर्षण की अनुपस्थिति में होती है और ऊर्जा स्तर को प्रभावित करती है।

क्या इस असर से उबरना संभव है?
अंतरिक्ष एजेंसियां जैसे NASA, ISRO और ESA अब इस दिशा में गहन रिसर्च कर रही हैं ताकि लंबी अंतरिक्ष यात्राओं के दौरान मस्तिष्क और शरीर की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। स्पेस से लौटने के बाद एस्ट्रोनॉट्स को खास रीहैब प्रोग्राम में शामिल किया जाता है, जिसमें शारीरिक कसरत, संतुलन अभ्यास और मानसिक थैरेपी शामिल होते हैं।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Anu Malhotra

Related News