अब होंगी दिल्ली के ‘आम’ विधायकों की मौजें

punjabkesari.in Thursday, Oct 08, 2015 - 12:22 AM (IST)

यह एक विडम्बना ही है कि अनेक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं सार्वजनिक समस्याओं पर तो हमारी संसद एवं विधानसभाओं में चर्चा के दौरान सदस्यों में सहमति नहीं बन पाती। यहां तक कि विभिन्न मुद्दों पर असहमति के कारण अक्सर संसद और विधानसभाओं की कार्रवाई ठप्प होने के अलावा विरोधी दलों के सदस्यों में मारा-मारी भी होती रहती है।

परंतु इसके विपरीत जब अपनी सुविधाओं और वेतन भत्तों में वृद्धि आदि की बात आती है तो सभी सदस्य अपने आपसी मतभेद भुला कर एक हो जाते हैं और अपनी मांगें मनवाने में देर नहीं लगाते :  
 
* 15 मार्च, 2011 को हरियाणा विधानसभा के सभी सदस्यों को 10 हजार रुपए मासिक वेतन देने का प्रावधान किया गया जबकि विपक्ष के नेता का वेतन 20 हजार रुपए से बढ़ाकर 40 हजार रुपए कर दिया गया। 
 
* 2011 में ही आॢथक संकट के शिकार जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री का वेतन 45 हजार से 90 हजार, कैबिनेट मंत्रियों का 40 हजार से 85 हजार, राज्य मंत्रियों और विधायकों का वेतन 40 हजार से 80,300 और पूर्व मंत्रियों तथा विधायकों की पैंशन 12,500 रुपए से बढ़ाकर 23,000 रुपए कर दी गई। 
 
* उसी वर्ष दिल्ली की तत्कालीन शीला दीक्षित सरकार ने भी जनप्रतिनिधियों की वेतन वृद्धि का प्रस्ताव किया तथा इसमें 100 प्रतिशत वृद्धि की गई थी। इस समय दिल्ली के विधायक कुल 88,000 रुपए मासिक वेतन ले रहे हैं। 
 
* 19 मार्च, 2015 को पंजाब विधानसभा के स्पीकर का वेतन वर्तमान के 30,000 रुपए से बढ़ाकर 50,000 रुपए, श्री प्रकाश सिंह बादल का वेतन 50,000 से 1 लाख रुपए, उपमुख्यमंत्री तथा विपक्ष के नेता का वेतन 30,000 रुपए से बढ़ाकर 50,000 रुपए और मुख्य सचिवों का वेतन 20,000 से बढ़ाकर 40,000 रुपए करने की घोषणा की गई। अन्य भत्ते इसके अलावा हैं। श्री बादल इस समय भारत में सर्वाधिक वेतन प्राप्त करने वाले मुख्यमंत्री हैं।
 
* 26 मार्च, 2015 को उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने विधायकों के वेतन-भत्ते 40 हजार रुपए बढ़ाकर 70,000 रुपए के स्थान पर लगभग 1 लाख 10 हजार रुपए मासिक कर दिए। इस वृद्धि संबंधी विधेयक विधानसभा के सदस्यों ने अपने सभी मतभेद बुलाकर मात्र 10 मिनट में पारित कर दिया। 
 
यहीं पर बस नहीं, इस वर्ष 14 फरवरी, 2015 को दिल्ली में ‘आप’ सरकार के भारी बहुमत से सत्ता में आने के कुछ ही महीने बाद इसके विधायकों ने वर्तमान वेतन-भत्तों को कम बताते हुए इनमें वृद्धि की मांग कर दी। इस पर जुलाई में सरकार ने वेतन-भत्तों की समीक्षा के लिए एक समिति गठित की जिसने 6 अक्तूबर को अपनी रिपोर्ट विधानसभा अध्यक्ष को सौंप दी है।
 
समिति के अनुसार ‘‘ईमानदार तरीके से अपने विधायी कार्यों को पूरा करने के लिए वर्तमान में विधायकों को मिलने वाले वेतन और भत्ते ‘बहुत ही अपर्याप्त’ होने के कारण इनमें वृद्धि की सिफारिश की गई है।’’
 
इन सिफारिशों में विधायकों का वेतन 12,000 रुपए से 4 गुणा बढ़ाकर 50,000 रुपए करना वांछित है तथा भत्तों में वृद्धि आदि की सिफारिशें सरकार द्वारा स्वीकार कर लेने की स्थिति में विधायकों को 88 हजार रुपए के स्थान पर सब भत्ते आदि मिलाकर 2 लाख 10 हजार रुपए मासिक मिलेंगे।
 
उन्हें वाहन खरीदने के लिए 12 लाख रुपए तक का ऋण देने की सिफारिश भी की गई है जबकि इस समय 4 लाख रुपए तक ऋण की व्यवस्था है। यही नहीं, पूर्व जन प्रतिनिधियों को मिलने वाली 7500 रुपए की पैंशन 15000 रुपए करने की सिफारिश भी की गई है। यह वेतन सभी राज्यों के विधायकों के वेतन से अधिक होगा। इस समय देश में असम के विधायकों को सर्वाधिक 60,000 रुपए वेतन मिलता है।  
 
हालांकि ‘विपक्षी’ भाजपा ने इसकी आलोचना की है परंतु आप नेताओं का इसकी सफाई में कहना है कि समिति सरकार द्वारा गठित की गई थी और इसने इस वृद्धि की सिफारिश की है जिसे मानना या न मानना भी सरकार पर निर्भर है परंतु जानकारों के अनुसार इसका माना जाना लगभग तय है।  
 
महंगाई की मार आम आदमी पर कितनी भी पड़े लेकिन  उसकी आमदनी उस हिसाब से नहीं बढ़ती परन्तु देश के सांसदों और विधायकों पर यह सिद्धांत लागू नहीं होता। वे अपने सारे मतभेद बुला कर अपने वेतन-भत्तों में वृद्धि के लिए एकजुट होने में जरा भी देर नहीं लगाते।
 
अब उत्तर प्रदेश और दिल्ली की देखादेखी अन्य राज्यों में भी यह सिलसिला शुरू होगा। यानी जनता के प्रतिनिधियों की मौज लगेगी और आम जनता पहले की तरह दुनिया भर की समस्याओं में पिसती रहेगी। 

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