सुप्रीम कोर्ट ने जैन प्रथा संथारा से हटाई रोक

punjabkesari.in Monday, Aug 31, 2015 - 04:51 PM (IST)

नई दिल्ली: जैन कम्युनिटी की संथारा/सल्लेखना प्रथा पर रोक लगाते राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर  सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए स्टे लगा दिया। राजस्थान हाईकोर्ट ने इस प्रथा को सुसाइड जैसा क्राइम बताते हुए बैन कर दिया था।  
 
9 साल से कोर्ट में था मामला
 
यह मामला पिछले 9 साल से कोर्ट में चल रहा था। निखिल सोनी ने 2006 में पिटीशन दायर की थी। उनकी दलील थी कि संथारा इच्छा-मृत्यु की ही तरह है। हाईकोर्ट ने कहा था कि संथारा लेने वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 309 यानी सुसाइड का केस चलना चाहिए। संथारा के लिए उकसाने पर धारा 306 के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए। वहीं, जैन संतों ने इस फैसले का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि कोर्ट में सही तरीके से संथारा की व्याख्या नहीं की गई। संथारा का मतलब आत्महत्या नहीं है, यह आत्म स्वतंत्रता है।
 
जानें संथारा क्या है ?
जैन समाज में यह हजारों साल पुरानी प्रथा है। इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु नजदीक है तो वह खुद को एक कमरे में बंद कर खाना-पीना छोड़ देता है। मौन व्रत रख लेता है। इसके बाद वह किसी भी दिन देह त्याग देता है।
 
कितने लोग संथारा लेते है इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है लेकिन जैन संगठनों के मुताबिक हर साल 200 से 300 लोग संथारा के तहत अपने प्राण छोड़ देते हैं। अकेले राजस्थान में ही यह आंकड़ा 100 से ज्यादा है।
 
संथारा की 10 खास बातें 
 
1. जैन धर्म में दो पंथ हैं, श्वेतांबर और दिगंबर। संथारा श्वेतांबरों में प्रचलित है। दिगंबर इस परंपरा को सल्लेखना कहते हैं।
 
2.  संथारा लेने वाला व्यक्ति स्वयं धीरे-धीरे अपना भोजन कम करता है.
 
3. जैन ग्रंथों के मुताबिक, संथारा में उस व्यक्ति को नियम के मुताबिक भोजन दिया जाता है। अन्न बंद करने से मतलब उसी स्थिति से होता है, जब अन्न का पाचन संभव न रह जाए।
 
4. भगवान महावीर के उपदेशानुसार जन्म की तरह मृत्यु को भी उत्सव का रूप दिया जा सकता है।
 
5. जैन धर्म में संथारा की गिनती किसी उपवास में नहीं होती।
 
6. संथारा की शुरुआत सबसे पहले सूर्योदय के बाद 48 मिनट तक उपवास से होती है, जिसमें व्यक्ति कुछ पीता भी नहीं है। इस व्रत को नौकार्थी कहा जाता है. 
 
7. संथारा में उपवास पानी के साथ और बिना पानी पीए, दोनों तरीकों से हो सकता है।
 
8. संथारा लेने से पहले परिवार और गुरु की आज्ञा लेनी जरूरी होती है।
 
9. यह स्वेच्छा से देह त्यागने की परंपरा है। जैन धर्म में इसे जीवन की अंतिम साधना माना जाता है।
 
10. जैन धर्म के मुताबिक, जब तक कोई वास्तविक इलाज संभव हो, तो उस अहिंसक इलाज को कराया जाना चाहिए।  
 
 
 
 
 

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