एक ऐसा गांव जहां शादी के बाद लड़कियों की नहीं होती बिदाई
punjabkesari.in Saturday, Apr 25, 2015 - 04:59 PM (IST)

कौशांबी: सदियों पुरानी परंपरा में शादी के बाद लड़कियां अपने ससुराल चली जाती हैं। लेकिन इस परंपरा को दरकिनार करते हुए उत्तर प्रदेश में कौशांबी में एक ऐसा इलाका हैं जहां शादी के बाद लड़कियों की विदाई नहीं होती। यह छोटा सा कस्बा, ''दामादों का पुरवा'' के नाम से मशहूर है। शादी के बाद लड़के को यहां पर घर जमाई बनकर रहना पड़ता है। सबसे खास बात यह है कि ससुराल की तरफ से लड़के को रोजगार भी मुहैया कराया जाता है।
दामादों का पुरवा में करीब 60 परिवार रहते हैं। इन परिवारों में सबसे ज्यादा संख्या मुस्लिमों की है। इस इलाके के एक अधिकारी पुरनेंदु सिंह का कहना है कि दामादों के मोहल्ले में अधिकतर लोग बाहर से आकर बसे हैं। वे यहां डेयरी, जनरल स्टोर्स, छोटी-मोटी दुकानें आदि चलाते हैं। उसी गांव के एक दामाद, करारी निवासी हाजी औवेस का कहना है कि लगभग 35 वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है और यहां की लड़कियों की शादियां पड़ोसी जिले कानपुर, फतेहपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद या फिर बांदा में हुई हैं। ये लड़कियां शादी के बाद पति के घर नहीं जाती हैं, बल्कि ''दामादों के पुरवा'' में ही पति के साथ जीवन बिताती हैं।
कैसी हुई इस परंपरा की शुरूआत-
मूल रूप से इस जगह का नाम है, हिंगुलपुर। कमरुद्दीन नाम के एक शख्स ने धूमधाम से अपनी बेटी की शादी कराई और नव दंपती को उसी गांव में बसने के लिए कहा। उन्होंने फतेहपुर निवासी अपने दामाद उल्लाह अंसारी को अपने व्यवसाय में शामिल होने को कहा। संबंधों के साथ-साथ दोनों परिवारों ने व्यवसाय में भी तरक्की की। इसके बाद यह परंपरा चल पड़ी।
क्या कहती हैं लड़कियां-
दामादों के पुरवा के मसरूफ का कहना है कि घर की बेटी घर में रहे तो वह ठीक तरह से परिवार की देखरेख कर सकती है। उनका कहना है कि 3 सील पहले उनके बेटी की शादी हुई। बेटी ससुराल नही जाती है और यहीं पर रहती है। बेटी, दामाद, बच्चे से मिलना होता है तो बिना किसी परेशानी के उनके पास पहुंच जाता हूं। करारी की रेहाना का कहना है कि मैं अपना सुख-दुख अपने माता-पिता से बांटती हूं और खुशी पूर्वक रहती हूं। उन्होंने कहा कि फतेहपुर जिले में मेरी शादी हुई है। शादी के बाद पति के साथ हमने अपने पिता के गांव में ही रहना तय किया है। इस परंपरा के बारे में बात की गई तो गांव के लोगों का कहना है कि हम इस परंपरा को बरकरार रखना चाहते हैं।