डेढ़ घंटे का आप्रेशन, पेट से निकाली 7 किलो की रसोली

punjabkesari.in Thursday, Mar 19, 2015 - 06:28 AM (IST)

अम्बाला छावनी (जतिन): डेढ़ घंटे में सिविल अस्पताल छावनी के डाक्टरों ने एक किशोरी के पेट से रसोली निकालने में सफलता हासिल की है। यह रसोली 7 किलो की है और स्वास्थ्य विभाग अम्बाला का दावा है कि इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी रसोली को ऑप्रेशन के जरिए आज तक नहीं निकाला गया है। बताया जा रहा है कि युवती निजी डाक्टरों के चक्कर काटकर थक गई थी और पी.जी.आई. चंडीगढ़ में ही इलाज कराने की सलाह दी गई थी मगर किशोरी के परिवार के सदस्यों ने एक निजी डाक्टर की राय पर सिविल अस्पताल के सर्जन डा. मनोज से सम्पर्क साधा।

डाक्टर मनोज के सम्पर्क में किशोरी 11 मार्च को आई जिसके बाद डॉक्टर ने किशोरी का अल्टासाऊंड करवाया। जिसके दौरान पाया गया कि रसोली 25 गुणा, 12 गुणा व 25 गुणा के साइड की थी। रसोली के कारण किशोरी में शरीर में खून की भी कमी थी। अस्पताल की ओर से उसको पहले 3 बोतलें खून की चढ़ाई गईं जिसके बाद पूरे केस को देखते हुए टीम बनाई गई जिसके बाद डा. मनोज की नेतृत्व में डा. पूजा, सी.एम.ओ.डा. सतीश, नॄसग स्टाफ मंजू ने डेढ़ घंटे ऑप्रेशन कर उसके पेट से रसोली निकाली। डा. मनोज ने बताया कि रसोली के अम्बाला सिविल अस्पताल आने से पहले भी कई केस देखे हैं लेकिन एक 16 साल की उम्र में 7 किलो की रसोली पहली बार देखने को मिली है।

बेटी के इलाज के लिए बेच दी भैंस
वहीं पीड़ित युवती की मां ने बातचीत में बताया कि पिछले 4-5 माह से बेटी के बढ़ रहे पेट को देखते हुए गांव की महिला ने बेटी के जांच की सलाह दी थी। सलाह के बाद बेटी को गांव के एक क्लीनिक पर लेकर गई जहां के डाक्टर ने जगाधरी से बेटी का अल्ट्रासाऊंड करवाया था जिसकी रिपोर्ट में सामने आया था कि पेट में रसोली है लेकिन डाक्टरों ने इलाज पी.जी.आई. चंडीगढ़ से करवाने की सलाह दी थी।

5 बेटियों व 1 बेटे का महज मजदूरी से पालन-पोषण करने वाले परिवार के लिए बेटी का इलाज पी.जी.आई. में करवाना, एक सपने के बराबर था। मजदूरी करने वाले पिता ने एक दिन घर में सलाह कर अगले ही दिन भैंस बेचकर बेटी के इलाज के लिए रकम जमा करनी शुरू की। इसी दौरान जब परिवार बेटी को इलाज के लिए पी.जी.आई. लेकर जाने लगा तो किसी ने अम्बाला सिविल के सर्जन डा. मनोज के पास जांच करवाने की सलाह दी। जिसके बाद परिवार 11 मार्च को अम्बाला सिविल अस्पताल जांच करवाने पहुंचा था।


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