लाठी छोड़ लैपटॉप चलाएंगे ‘दरोगा जी’

punjabkesari.in Saturday, Feb 28, 2015 - 07:42 AM (IST)

फतेहाबाद (राजकमल कटारिया): एक अरसे से खाकी और लाठी का रौब झाड़ रहे पुलिस कर्मियों को शायद वैल्फेयर स्टेट का कांसैप्ट समझ में आने लगा है। वह समझने लगे हैं कि अब पुलिसिंग के मायने बदल रहे हैं और उन्हें भी नई व्यवस्था के लिए अपडेट रहना होगा अन्यथा बैकफुट पर धकेल दिए जाएंगे। यही वजह है कि अब पुलिस कर्मियों ने डंडे छोड़कर लैपटॉप खरीद लिए हैं और वे तकनीक से जुडऩे का प्रयास कर रहे हैं। लैपटॉप भी वे अपने पैसे से ही खरीद रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पुलिस तंत्र को एक्टिवेट करने के लिए सरकार ने सारी चीजों को ऑनलाइन करना शुरू कर दिया है।

यहां तक कि एफ.आई.आर. भी ऑनलाइन दर्ज करवाने के आदेश हैं। इसी तरह से बढ़ते साइबर क्राइम के दौर में पुलिस के लिए तकनीक की जानकारी होना आवश्यक हो गया है। सूचना क्रांति के इस दौर में भी पुलिस को तकनीक की ट्रेनिंग नहीं दी जा रही। ऐसी स्थिति में पुलिसकर्मी स्वयं ही अपडेट होने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि उन्हें आने वाले समय में दिक्कतों का सामना न करना पड़े।

लगातार बदल रहा पुलिस का चेहरा
पुलिस विभाग में बेशक बदलाव का सिलसिला दिखाई न देता हो लेकिन बदलाव तो शनै: शनै: हो ही रहा है। समय की पाबंदी, लोगों की थानों में सुनवाई, बढ़ती जागरूकता के चलते पुलिस का व्यवहार सब चीजें धीरे-धीरे बदल रही हैं। वह वर्ष 1861 के उस दौर की पुलिस नहीं है जो अंग्रेज की पुलिस मैन्युअल के हिसाब से चलती थी। दरअसल, 1857 के गदर के बाद अंग्रेजों को इस बात का भय हो गया था कि अब भारत में वे अधिक समय नहीं टिक पाएंगे। इसलिए ही उन्होंने पुलिस का डिजाइन किया जो वर्दी पहनेंगे और सरकार के आदेश को मानते हुए अपने ही लोगों का दमन करेंगे। इसी वजह से लोगों में पुलिस के प्रति दूसरे तरह की छवि बनती गई।

अब सूचना तकनीक का जमाना
समय तेजी से बदल रहा है। जिस भारत को सांप-बिच्छू पालने वालों का देश कहा जाता था, वहां अब लोग माऊस से खेलने लगे हैं। कम्प्यूटर घर-घर में बच्चों के खिलौने की तरह हो गया है। इसके साथ ही साइबर क्राइम भी तेजी से बढ़ा है और जरूरी हो गया है कि साइबर क्राइम को रोकने के लिए पुलिस भी टैक्नो-फ्रैंडली बने। जब इस बारे में पुलिस पी.आर.ओ. से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि इस तकनीक से कार्य जल्दी निपटेगा व सभी कार्य पारदर्शी होंगे।

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