हार कर जीतने वाले को केजरीवाल कहते हैं

punjabkesari.in Wednesday, Feb 11, 2015 - 03:58 AM (IST)

नई दिल्ली (ब्यूरो): अरविंद केजरीवाल भारतीय राजनीति में ऐसा ध्रुव तारा बन गए हैं जिसकी चमक से हर किसी की आंखें चुंधिया रही हैं। करीब 9 महीने पहले लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेल चुके केजरीवाल ने चामत्कारिक तरीके से विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीत कर दिल्ली की सत्ता में वापसी की है। लगातार 4 राज्यों में जीत का परचम फहरा चुकी भाजपा का विजय रथ केजरीवाल ने दिल्ली में रोक दिया। भाजपा 2013 के चुनाव में 32 सीटों पर थी जिससे घटकर 3 पर पहुंच गई। सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई।  

वर्ष 2013 में चुनावी राजनीति में उतरी आम आदमी पार्टी ने 15 साल पुरानी शीला दीक्षित सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया। 28 विधायकों के साथ केजरीवाल ने कांग्रेस की मदद से न सिर्फ सरकार का गठन किया, बल्कि पहली बार विधायक बन कर सीधे मुख्यमंत्री भी बन गए। चुनाव से पहले राजनीति के जानकार और उस समय के एग्जिट पोल आप के 3 से 4 सीटें जीतने का अनुमान लगा रहे थे, आज वही पार्टी सफलता के उस शिखर पर है कि भाजपा केवल 3 सीटों पर सिमट गई है।

सरकार गठन के 49 दिनों में केजरीवाल ने लोकपाल बिल को लेकर राज्य सरकार से इस्तीफा दे दिया और अपनी पार्टी को लेकर लोकसभा चुनाव में उतर गए। यहां उन्हें करारी शिकस्त मिली और आप के 410 में से केवल 4 प्रत्याशी ही जीतने में सफल रहे। मोदी के खिलाफ काशी से ताल ठोक रहे केजरीवाल को भी हार का मुंह देखना पड़ा। उस समय केजरीवाल को तमाम आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। आलोचक उन्हें ‘भगौड़ा’ तक कहने लगे तो कुछ उनके राजनीतिक भविष्य पर पूर्ण विराम लगने का अनुमान जताने लगे। केजरीवाल टूटे नहीं, बल्कि इससे सबक लिया। वह पूरी तरह दिल्ली पर केंद्रित होकर अपना संगठन मजबूत करने में जुट गए।

इस चुनाव में उतरने से पहले केजरीवाल ने बाकी राजनीतिक दलों की तरह ही हर वर्ग का प्रकोष्ठ गठित किया और संगठन का विस्तार किया। ‘भागीदारी वाली राजनीति’ का मॉडल पेश करते हुए उन्होंने जनता से सीधा संपर्क साधा जिसमें उनके वालंटियर्स ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। पिछले साल 49 दिनों के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले केजरीवाल के प्रति लोगों में भारी नाराजगी थी और आलोचना का शिकार होना पड़ा था।

इस नाराजगी को उन्होंने बड़े रणनीतिक तरीके से खत्म करने में कामयाबी हासिल की। इस्तीफे को अपनी गलती कहकर माफी मांगते रहे। इसका सकारात्मक असर हुआ। बदलाव का वायदा करते हुए लोगों के बीच गए और उनसे मिले फीडबैक के आधार पर ही पार्टी का घोषणा-पत्र तैयार किया।

इससे लोगों का उन पर भरोसा बढ़ा और वह गरीबों और मध्यम वर्ग के बीच पार्टी का जनाधार मजबूत करने में कामयाब रहे। केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा जन-आंदोलन खड़ा किया और मतदाताओं को जागरूक किया। भ्रष्टाचार, बिजली एवं पानी के बिल में बढ़ौतरी, महिला सुरक्षा के मुद्दों को लेकर भाजपा और कांग्रेस पर उन्होंने जमकर हमला बोला। इसके जरिए उन्होंने इन पार्टियों के पारंपरिक वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाई। लगातार प्रचार और ठोस रणनीति का ही नतीजा है कि छठी विधानसभा की 96 फीसदी सीटों पर ‘आप’ का कब्जा है।

इस चुनाव के दौरान भी कुछ ऐसे वक्त आए जब आम आदमी पार्टी की जीत मुश्किल दिखाई दी। भाजपा ने केजरीवाल की पूर्व सहयोगी किरण बेदी को सी.एम. पद का प्रत्याशी घोषित कर दिया।

अंदाजा लगाया जाने लगा कि किरण की संजीवनी से भाजपा आसानी से दिल्ली विजय कर लेगी, लेकिन मोदी लहर का दम भरने वाले केजरीवाल की सुनामी में बह गए। खुद किरण बेदी कृष्णा नगर से हार गईं।

सी.एम. के लिए किरण के नाम की घोषणा के साथ ही भाजपा में शुरू हुई नाराजगी और बगावत ने पार्टी को काफी नुक्सान पहुंचाया। बेहतर होता यदि प्रदेशाध्यक्ष सतीश उपाध्याय, हर्षवर्धन और विजय गोयल जैसे नेता केवल पार्टी के लिए काम करते और मुख्यमंत्री का चयन परिणाम आने के बाद किया जाता।


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