Allahabad High Court का ऐतिहासिक फैसला: टिफिन में नॉन-वेज लाने पर निकाले गए छात्रों को मिलेगा नया दाखिला
punjabkesari.in Thursday, Dec 19, 2024 - 03:34 PM (IST)
नेशनल डेस्क: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में बच्चों के शिक्षा के अधिकार का सम्मान करते हुए उन छात्रों के पक्ष में फैसला दिया है, जिन्हें टिफिन में मांसाहारी भोजन (नॉन-वेज) लाने के कारण स्कूल से बाहर कर दिया गया था। यह मामला उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के एक स्कूल से जुड़ा हुआ है, जहां तीन नाबालिक छात्रों को उनकी लंच बॉक्स में मांसाहारी भोजन लाने की वजह से निकाल दिया गया था। इन बच्चों की मां ने इस मामले में न्याय की उम्मीद लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
क्या था मामला?
अमरोहा के एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ाई कर रहे तीन बच्चों को अपने टिफिन में मांसाहारी भोजन लाने की वजह से स्कूल से निकाल दिया गया था। बच्चों की मां ने आरोप लगाया था कि स्कूल प्रशासन ने बिना किसी ठोस वजह के और बच्चों के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करते हुए, उन्हें बाहर कर दिया। बच्चों के खिलाफ इस कार्रवाई को उन्होंने अन्यायपूर्ण और मनमानी करार दिया था। इन बच्चों के परिवार ने न्याय की उम्मीद में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में बच्चों की मां ने आरोप लगाया कि स्कूल के प्रिंसिपल ने टिफिन में मांसाहारी भोजन लाने के कारण बच्चों को निकालने का आदेश दिया था, जबकि बच्चों का ऐसा कोई अपराध नहीं था, जिससे उन्हें स्कूल से बाहर किया जाए। इस मामले में याचिकाकर्ता ने स्कूल प्रिंसिपल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की भी मांग की थी।
कोर्ट ने क्या आदेश दिया?
इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई के बाद, न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति एससी शर्मा की बेंच ने स्कूल के इस फैसले को शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन माना। कोर्ट ने अमरोहा के जिलाधिकारी को निर्देश दिया कि वे दो सप्ताह के भीतर इन बच्चों को सीबीएसई से संबद्ध किसी अन्य स्कूल में दाखिला दिलवाएं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जिलाधिकारी को इस आदेश का पालन करने के बाद अदालत के समक्ष हलफनामा दाखिल करना होगा, जिसमें यह बताया जाए कि बच्चों को नए स्कूल में दाखिला दिया गया है। यदि यह आदेश दो सप्ताह के भीतर नहीं लागू होता, तो कोर्ट ने जिलाधिकारी को अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए कहा।
कोर्ट का यह आदेश क्यों महत्वपूर्ण है?
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि बच्चों के शिक्षा के अधिकार को लेकर कोई भी समझौता नहीं किया जा सकता। इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह आदेश शिक्षा के अधिकार की रक्षा के साथ-साथ यह भी दिखाता है कि बच्चों को न केवल उनके भरण-पोषण के अधिकारों के बारे में सोचने की आवश्यकता है, बल्कि उनके शिक्षा के अधिकार को भी सर्वोपरि माना जाएगा। नॉन-वेज लाने जैसे मामूली कारणों को शिक्षा के अधिकार के रास्ते में नहीं आने दिया जा सकता। इस मामले में बच्चों के परिवार ने यह साबित किया कि किसी भी बच्चे को शिक्षा से वंचित करने का कोई ठोस कारण नहीं हो सकता, चाहे वह उनके खानपान से जुड़ा हुआ क्यों न हो।
अगली सुनवाई की तिथि
कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी 2025 को निर्धारित की है। यदि जिलाधिकारी द्वारा निर्धारित समय सीमा में हलफनामा दाखिल नहीं किया जाता, तो उन्हें कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया गया है। इस आदेश से यह स्पष्ट होता है कि उच्च न्यायालय बच्चों के अधिकारों के संरक्षण में किसी भी प्रकार की ढिलाई बर्दाश्त नहीं करेगा। स्कूल प्रशासन को यह संदेश दिया गया है कि वह बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन करने में संकोच न करें, खासकर जब वह बच्चों की शिक्षा से जुड़ा मामला हो।
आखिरकार, बच्चों का हक
इस फैसले ने यह साबित कर दिया है कि भारत में शिक्षा का अधिकार प्रत्येक बच्चे को है और उसे किसी भी प्रकार से बाधित नहीं किया जा सकता। हालांकि स्कूल प्रशासन को अपनी पद्धतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से उस समय जब यह बच्चों के भविष्य और उनके अधिकारों से जुड़ा हो। इस मामले में अदालत ने बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता दी है, और यह सभी के लिए एक उदाहरण है कि हम बच्चों को उनके अधिकारों से वंचित नहीं कर सकते, चाहे वह कोई भी कारण हो। इस फैसले से न केवल शिक्षा के अधिकार का महत्व रेखांकित होता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारतीय न्यायालय बच्चों के हित में बिना किसी पक्षपाती निर्णय के कार्यवाही करता है। अब यह देखना होगा कि जिलाधिकारी अमरोहा इस आदेश का पालन करते हुए बच्चों को नए स्कूल में दाखिला दिलवाते हैं या नहीं, और क्या कोर्ट के अगले आदेश तक यह मुद्दा हल हो जाता है।