जॉनसन एंड जॉनसन: सबसे मूल्यवान फार्मा कंपनी, 61 हजार मुकदमे...5,849 करोड़ रुपए में सेटलमेंट
punjabkesari.in Friday, Jun 28, 2024 - 04:33 PM (IST)
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नेशनल डेस्क: अमेरिका की 138 साल पुरानी फार्मा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन पिछले 6 सालों से बेबी पाउडर को लेकर विवादों में फंसी है, दूसरी ओर कमाई भी बढ़ रही है। इस विवाद में 61 हजार से ज्यादा मुकदमे झेल रही कंपनी ने इसी महीने 5,849 करोड़ रुपए में सेटलमेंट किया है, दूसरी ओर ब्रांड फाइनेंस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह दुनिया की सबसे मूल्यवान फार्मा कंपनी (मोस्ट वैल्युएबल) बनी हुई है। सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के कारण भारत को 'दुनिया की फार्मेसी' कहा जाता है, लेकिन कमाई के मामले में अमेरिका की फार्मेसी कंपनियों का एकाधिकार है। मार्केट कैप के लिहाज से टॉप-20 फार्मा कंपनियों में 12 अमेरिका की हैं। इसमें तीसरे नंबर पर जॉनसन एंड जॉनसन है। क्या इसका इतिहास, ब्रांड स्टोरी में पढ़ते हैं।
शुरुआत: जब सर्जिकल उत्पाद बनाकर कंपनी की नींव रखी
अमेरिका में साल 1861 से शुरू हुए गृहयुद्ध में 7 लाख से ज्यादा लोगों की जानें गईं। संक्रमण और बीमारियां चरम पर थीं। ऐसे हालात देखकर 16 साल के रॉबर्ट वुड जॉनसन के मन में हेल्थकेयर के प्रति रुचि जागी। वुड ने परिवार की दवा की दुकान में काम शुरू कर दिया। एंटीसेप्टिक सर्जरी को बढ़ावा दे रहे डॉ. जोसेफ लिस्टर को सुनने के लिए साल 1885 में जॉनसन एक कांफ्रेंस में गए। डॉ. लिस्टर के एंटीसेप्टिक तरीकों से प्रेरित होकर रॉबर्ट वुड जॉनसन ने अपने दो छोटे भाइयों और एक बिजनेस पार्टनर सीबुरी के साथ मिलकर साल 1886 में जॉनसन एंड जॉनसन की नींव रखी और सर्जिकल उत्पादों का बड़े स्तर पर उत्पादन शुरू किया। अमेरिका में रेल लाइंस बिछाने के दौरान दुर्घटनाओं को देखकर जॉनसन भाइयों को फर्स्ट एड किट बनाने का आइडिया आया था।
मार्केट : बैंड-एड ईजाद की, विज्ञापनों ने घर-घर पहुंचाया
18वीं सदी में अधिकांश प्रसव घर पर ही होते थे। इस दौरान संक्रमण से मां- बच्चे दोनों की जान को खतरा होता था। इसे देखते हुए जॉनसन ब्रदर्स ने साल 1894 में पहली मेटरनिटी किट पेश की। इसी साल जॉनसन का बेबी पाउडर भी बिक्री के लिए मार्केट में आया। यह भी बेहद सफल रहा। बैंड-एड का आइडिया भी जरूरत के चलते आया। अलें डिक्सन इसी कंपनी में काम करते थे। उनकी पत्नी जोसेफिन को अक्सर किचन में चोट लग जाती थी। इसी से डिक्सन को एक आइडिया आया। उन्होंने दवाओं की ढेर सारी रेशमी पट्टियों को काटकर उसको टेप के ऊपर चिपका दिया और 1920 के बाद से 'बैंड-एड' बनाने शुरू कर दिए।
साल 1947 में जॉनसन एंड जॉनसन ने बेबी पाउडर की ब्रांडिंग के साथ भारत में व्यापार शुरू किया था। दस साल बाद कंपनी ने भारत में अलग इकाई स्थापित की। वहीं 1959 में मुंबई में पहली उत्पादन इकाई शुरू की। कंपनी की भारत में पिछले साल 500 करोड़ रुपए की कमाई रही। जॉनसन एंड जॉनसन की दुनिया के 60 देशों में में 270 से ज्यादा ऑपरेटिंग कंपनियां हैं, वहीं कंपनी 175 से ज्यादा देशों में अपनी दवाएं और हेल्थकेयर उत्पाद बेचती है। विज्ञापनों पर खर्च करने में भी कंपनी आगे है। इसने साल 2022 में 2.1 अरब डॉलर (17 हजार करोड़ रु) विज्ञापनों पर खर्च किए।
चुनौती : सर्वाधिक कमाई वाली दवा का पेटेंट खत्म हुआ
जॉनसन एंड जॉनसन की सबसे ज्यादा बिकने वाली दवा Stelara का पेटेंट पिछले साल खत्म हो गया है। सोरायसिस का उपचार करने वाली इस दवा से कंपनी को पिछले साल 10.9 अरब डॉलर की कमाई हुई थी। यह दुनिया में सर्वाधिक बिकने वाली टॉप-10 दवाओं में भी शामिल है। अब पेटेंट खत्म होने से कंपनी की कमाई पर भी असर पड़ने की आशंका है। हालांकि, कंपनी 2025 तक इसे अमेरिका में बेच सकेगी। लेकिन दुनिया के बाकी प्रांतों में अन्य कंपनियां इस दवा को बेच सकेंगी। वहीं इसकी दूसरी सबसे ज्यादा बिकने वाली दवा Darzalex का पेटेंट 2027 में खत्म होने वाला है। इससे कंपनी को पिछले साल 9.7 अरब डॉलर की कमाई हुई थी। कंपनी की दवाओं से 50% कमाई होती है, वहीं 30% कमाई चिकित्सा उपकरणों और 20% कमाई उपभोक्ता उत्पादों से होती है।
विवादों से नाता : समझौते के तहत 5849.45 रुपए चुकाएगी, दस साल पहले भी चुकाए थे 18 हजार करोड़
फार्मा कंपनियों के लिए मुकदमेबाजी नई बात नहीं है। लेकिन जॉनसन एंड जॉनसन के बेबी पाउडर और अन्य टेल्कम उत्पादों में कैंसर कारकों की उपस्थिति के आरोप के बाद कंपनी की साख को काफी क्षति पहुंची। साल 2022 साल की समाप्ति पर 38 लाख करोड़ रु. मार्केट कैप थी) से कंपनी की मार्केट कैप घट रही है। हालांकि कमाई बढ़ रही है। बेबी पाउडर मामले को लेकर कंपनी पर 61 हजार से ज्यादा मुकदमे चल रहे हैं। केस करने वालों मेंज्यादातर महिलाएं हैं। इसी महीने कंपनी ने 42 अमेरिकी राज्यों और वाशिंगटन, डीसी द्वारा एक जांच के बाद मामले को रफा-दफा करने के लिए 700 मिलियन डॉलर (5849.45 करोड़ रुपए) के समझौते पर सहमति व्यक्त की है। इससे पहले साल 2013 में कंपनी को एक दवा Risperdal की मार्केटिंग में अनियमितताओं का भी दोषी पाया गया था। इसके लिए कंपनी ने 2.2 अरब डॉलर (लगभग 18 हजार करोड़ रु. ) का सेटलमेंट किया था।