5000 करोड़ की संपत्ति, पहली पत्नी को दिए 500 करोड़, दूसरी पत्नी ने SC में मांगा भरण-पोषण, महिला जज बोलीं- ''क्या होगा अगर पति कंगाल हो जाए?''

punjabkesari.in Friday, Dec 20, 2024 - 01:58 PM (IST)

नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण मामले में सुनवाई करते हुए एक पत्नी द्वारा अपने पति की 5000 करोड़ रुपये की संपत्ति से गुजारे भत्ते के रूप में भारी रकम की मांग पर कड़ी आपत्ति जताई। यह मामला एक याचिका से जुड़ा था, जिसमें पत्नी ने तलाक के बाद अपने पति से बड़ी रकम की मांग की थी, खासकर जब पति पहले ही अपनी पहली पत्नी को 500 करोड़ रुपये एलमनी के रूप में दे चुका था। यह मामला इतना जटिल था कि सुप्रीम कोर्ट की महिला जज जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस एन. के. सिंह की बेंच ने इस पर विस्तृत विचार किया और पत्नी की भारी मांग पर कड़ी टिप्पणी की। जजों ने साफ तौर पर कहा कि यह पूरी तरह से कानून के खिलाफ है, और इस प्रकार की दावेदारी केवल आर्थिक स्थिति के आधार पर नहीं की जा सकती।

कोर्ट ने पत्नी की दावेदारी को अस्वीकार करते हुए उसे भरण-पोषण के रूप में सिर्फ 12 करोड़ रुपये देने का आदेश दिया। मामला एक महिला की याचिका से जुड़ा था, जिसमें उसने अपने पति से 5000 करोड़ रुपये की संपत्ति से गुजारे भत्ते के रूप में हिस्सा मांगा था। पत्नी ने इस बात का हवाला दिया था कि पति की संपत्ति अब बहुत बड़ी हो गई है और उसे तलाक के बाद भी अपने पति से उसी स्तर का भरण-पोषण मिलना चाहिए, जैसा वह वैवाहिक जीवन में प्राप्त करती थी। इस तरह की मांग को न्यायालय के सामने पेश करते हुए पत्नी ने यह दावा किया था कि उसकी भौतिक स्थिति अब पहले से बहुत बेहतर होनी चाहिए, क्योंकि पति ने अपनी पहली पत्नी को 500 करोड़ रुपये की एलमनी दी थी। यह दावा कोर्ट के समक्ष जब आया, तो जजों ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त की। जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने इस प्रकार की दावेदारी को पूरी तरह से असंवैधानिक और अनुचित बताया। उन्होंने कहा कि गुजारे भत्ते का कानून पत्नी को सम्मान और भरण-पोषण के लिए है, लेकिन यह सिर्फ वैवाहिक जीवन में उसकी स्थिति को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए, न कि पति की वर्तमान संपत्ति और आय के आधार पर।

जस्टिस नागरत्ना की सख्त टिप्पणी
जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने कहा, "हमें यह पूरी तरह से आपत्तिजनक लगता है कि पत्नी, पति के वर्तमान आर्थिक स्थिति के आधार पर बराबरी का अधिकार मांग रही हैं। यह सिर्फ उस केस में देखा जाता है, जहां पति अच्छा कमा रहा हो। लेकिन जब पति की इनकम घट जाती है, तब पत्नी इस तरह की दावेदारी नहीं करती। क्या अगर पति कंगाल हो जाए तो क्या पत्नी फिर भी इस तरह की मांग करेगी?" उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पत्नी का भरण-पोषण का अधिकार केवल उस स्तर तक सीमित होता है, जो उसने वैवाहिक जीवन में प्राप्त किया था। यह अधिकार केवल पति की आय या संपत्ति के आधार पर नहीं बढ़ाया जा सकता है। जस्टिस नागरत्ना ने यह भी कहा कि इस प्रवृत्ति पर गंभीर आपत्ति है कि पत्नियां पति के स्टेटस से बराबरी के लिए एलमनी मांगती हैं।  इसके साथ ही जज ने यह भी सवाल उठाया कि क्या इस तरह के मामलों में पति की संपत्ति का आकलन करके पत्नी को समान स्तर का भरण-पोषण देना एक उचित कदम हो सकता है? जस्टिस नागरत्ना के अनुसार, भरण-पोषण का उद्देश्य महिला को उसके भरण-पोषण की जरूरतों को पूरा करना होता है, न कि उसे पति की संपत्ति या वर्तमान आय के समान स्तर पर स्थापित करना।

भरण-पोषण का अधिकार
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पत्नी को वैवाहिक जीवन में जो भरण-पोषण मिलता था, वही उसे अलग होने के बाद भी प्राप्त होना चाहिए। यह भरण-पोषण पति की संपत्ति या आय के आधार पर निर्धारित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा कि पत्नी की जरूरतों, उसकी आय, आवासीय अधिकार और अन्य व्यक्तिगत फैक्टर्स का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।  अदालत ने यह स्पष्ट किया कि भरण-पोषण का अधिकार उसकी जरूरतों के अनुसार निर्धारित किया जाना चाहिए, न कि यह उस आधार पर होना चाहिए कि पति ने अपनी संपत्ति से कितना हिस्सा अपनी पहली पत्नी को दिया या पत्नी की डिमांड कितनी बड़ी है। कोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता को सिर्फ 12 करोड़ रुपये गुजारे भत्ते के तौर पर देने का निर्देश दिया।

महिला अधिकार और समाज में बदलाव
इस फैसले के बाद यह सवाल उठता है कि क्या इस प्रकार के मामलों में भविष्य में और स्पष्ट दिशा-निर्देशों की आवश्यकता होगी। समाज में महिला अधिकारों और उनकी गरिमा को बनाए रखने के लिए ऐसे निर्णय महत्वपूर्ण होते हैं। हालांकि, कोर्ट ने इस मामले में पत्नी की डिमांड को खारिज कर दिया, लेकिन यह भी एक संकेत है कि महिलाओं को भरण-पोषण की राशि सिर्फ उनके अधिकारों के अनुसार मिलनी चाहिए, न कि समाज के विकसित आर्थिक स्तर के आधार पर।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। जहां कुछ लोगों ने इसे न्यायपूर्ण कदम बताते हुए माना कि यह महिलाओं को उनके वास्तविक हक का अधिकार देता है, वहीं कुछ ने इसे असमान और अप्रत्याशित निर्णय बताया। आलोचकों का कहना था कि यह फैसला महिलाओं के लिए भरण-पोषण के अधिकारों को सीमित कर सकता है और समाज में मौजूद असमानता को और बढ़ावा दे सकता है। इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि भरण-पोषण का अधिकार एक व्यक्तिगत अधिकार है, जो महिला की वर्तमान स्थिति और उसकी जरूरतों के आधार पर निर्धारित किया जाता है। कोर्ट का आदेश यह भी सुनिश्चित करता है कि भरण-पोषण को सिर्फ पति की संपत्ति या आय के आधार पर तय नहीं किया जाएगा, बल्कि महिला की व्यक्तिगत जरूरतों और अधिकारों का भी ध्यान रखा जाएगा।


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Content Editor

Mahima

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