भगवान भोलेनाथ की ये 5 बड़ी प्रतिमाएं ,जिन्हें आपको एक बार अवश्य दर्शन करने चाहिए
punjabkesari.in Monday, Jul 29, 2024 - 03:16 PM (IST)
नेशनल डेस्क : भारत में भगवान भोलेनाथ, जो कि भगवान शिव के नाम से भी प्रसिद्ध हैं, की कई भव्य और महत्वपूर्ण प्रतिमाएं हैं। भगवान शिव हिंदू धर्म के त्रिमूर्ति (त्रिदेव) में से एक हैं, जिनमें ब्रह्मा (सर्जक), विष्णु (पालक) और शिव (संहारक) शामिल हैं। भगवान शिव को "महादेव", "नटराज", "भोलाशंकर", "शिवशंकर", और "साधक" जैसे कई नामों से जाना जाता है। उनकी पूजा और आराधना भारतीय धर्म और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
भगवान शिव का स्वरूप
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रूप और स्वरूप:
- भगवान शिव की सामान्य प्रतिमा में उन्हें तीन आंखों वाले, एक सिर पर चंद्रमा की छवि के साथ और गले में नागों के साथ दर्शाया जाता है। उनकी एक आंख अग्नि के रूप में, दूसरी आंख सूर्य के रूप में और तीसरी आंख ज्ञान और अंतर्दृष्टि के रूप में मानी जाती है।
- उनके सिर पर गंगा नदी की धारा बहती है, जो उनके पवित्रता और समर्पण का प्रतीक है। उनका शरीर अक्सर भस्म और चंदन से ढंका होता है, जो मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र को दर्शाता है।
- भगवान शिव की मृदुल मुस्कान और शांतिपूर्ण मुद्रा उनके सौम्य और साकारात्मक स्वभाव को दर्शाती है।
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सहयोग और शक्ति:
- भगवान शिव को "अशिव" और "शिव" के रूप में दर्शाया जाता है। अशिव की स्थिति में, वे उग्र और विध्वंसकारी हो सकते हैं, जबकि शिव की स्थिति में वे शांत और सौम्य होते हैं। इस द्वैत के माध्यम से, शिव सृजन और संहार के संयोजन का प्रतीक हैं।
भगवान शिव की प्रमुख विशेषताएँ
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त्रिशूल (Trident):
- भगवान शिव के हाथ में त्रिशूल होता है, जो सृजन, संरक्षण, और संहार के सिद्धांतों को दर्शाता है। त्रिशूल तीन गुणों (सत्व, रजस, और तमस) का प्रतिनिधित्व करता है, जो जीवन के भिन्न पहलुओं को नियंत्रित करते हैं।
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डमरू (Drum):
- भगवान शिव के हाथ में एक डमरू (तबला) भी होता है, जो सृजन और ब्रह्मा के संगीत का प्रतीक है। डमरू की ध्वनि सृष्टि के निर्माण और जीवन की लय को दर्शाती है।
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नाग (Serpents):
- भगवान शिव के गले में नागों का होना भी एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। नाग मृत्यु, पुनर्जन्म और अंडरवर्ल्ड का प्रतीक हैं। यह उनकी शक्ति और योग्यता को दर्शाता है।
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गंगा (Ganga):
- भगवान शिव के सिर पर गंगा नदी की धारा बहती है। गंगा की धारा को शिव ने अपने बालों में समाहित किया था, जो उनकी पवित्रता और सौम्यता को दर्शाता है।
भगवान शिव की प्रमुख कथाएँ और धार्मिक महत्व
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सती और पार्वती:
- भगवान शिव की पहली पत्नी सती थी, जिन्होंने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था। सती के शव को लेकर भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया, जिससे सृष्टि में अराजकता फैल गई। इसके बाद, सती ने पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया और शिव से विवाह किया। पार्वती और शिव की कथा समर्पण और प्रेम की कहानी को दर्शाती है।
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नागराज (Neelkanth):
- समुद्र मंथन के समय जब विष का उद्गार हुआ, भगवान शिव ने उसे पी लिया और अपने गले में समाहित किया। इस कारण उनका नाम "नीलкан्थ" पड़ा, जो उनके बलिदान और त्याग को दर्शाता है।
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शिवलिंग:
- भगवान शिव की पूजा आमतौर पर शिवलिंग के रूप में की जाती है। शिवलिंग उनके निराकार और असीम स्वरूप का प्रतीक है। शिवलिंग का पूजन तात्त्विकता और आध्यात्मिकता की ओर संकेत करता है।
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तांडव नृत्य:
- भगवान शिव का तांडव नृत्य सृष्टि के निर्माण, संरक्षण और संहार का प्रतीक है। यह नृत्य जीवन के चारों अवस्थाओं - सृजन, पालन, विनाश और मोक्ष को दर्शाता है।
भगवान शिव की पूजा और आराधना
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महाशिवरात्रि:
- भगवान शिव की पूजा का एक प्रमुख अवसर महाशिवरात्रि है, जो प्रत्येक वर्ष फरवरी या मार्च में मनाई जाती है। इस दिन भक्त उपवासी रहकर भगवान शिव की आराधना करते हैं और रात भर जागरण करते हैं।
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अवधारणाएँ:
- शिव को ध्यान और योग के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। उनके नाम और मंत्रों का जाप करने से मानसिक शांति और आत्मिक विकास की प्राप्ति होती है। भगवान शिव का महत्व भारतीय धार्मिक जीवन में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उनकी शिक्षाएँ, गुण और आदर्श भक्तों को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
यहाँ हम देश की प्रमुख पांच प्रतिमाओं के बारे में विस्तार से जानेंगे:
1. सौंदर्य और ऐतिहासिक महत्व में अद्वितीय:
1. कांचीकुमारनाथ (Kanchikachalam)
- स्थान: कांचीपुरम, तमिलनाडु
- विशेषता: कांचीकुमारनाथ मंदिर भगवान शिव के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में भगवान शिव की एक बहुत बड़ी और प्रसिद्ध प्रतिमा है, जिसे चंद्रमुखी (चंद्रमौली) शिव के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ की प्रतिमा अत्यंत सुंदर और सुसज्जित है, और इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है। यह शिवलिंग भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति में सहायता करता है।
2. आध्यात्मिक केंद्र:
2. हरिद्वार में शिवलिंग (Haridwar)
- स्थान: हरिद्वार, उत्तराखंड
- विशेषता: हरिद्वार में भगवान शिव की विशाल प्रतिमा हरिद्वार के प्रमुख धार्मिक स्थलों में स्थित है। यह प्रतिमा गंगा नदी के किनारे स्थित हर की पौड़ी में स्थित है। यहाँ हर दिन लाखों भक्त इस प्रतिमा को देखने और पूजने आते हैं, खासकर महाशिवरात्रि के दिन यहाँ भव्य पूजा अर्चना होती है।
3. प्राकृतिक सुंदरता के बीच:
3. उज्जैन में महाकालेश्वर (Ujjain)
- स्थान: उज्जैन, मध्य प्रदेश
- विशेषता: उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रतिमा भगवान शिव की प्रमुख प्रतिमाओं में से एक है। यहाँ स्थित महाकालेश्वर की प्रतिमा विशाल और दिव्य है। महाकालेश्वर मंदिर एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग स्थल है और यह भक्तों को विशेष रूप से शिवरात्रि के अवसर पर आकर्षित करता है। यहाँ भगवान शिव की प्रतिमा की विशेष पूजा और आराधना की जाती है।
4. धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर:
4. लिंगराज मंदिर (Lingaraj Temple)
- स्थान: भुवनेश्वर, ओडिशा
- विशेषता: लिंगराज मंदिर भगवान शिव के एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है और यहाँ की प्रतिमा भव्य और ऐतिहासिक महत्व की है। यह मंदिर 11वीं शताब्दी का है और इसकी शिवलिंग प्रतिमा अत्यंत विशाल और प्रभावशाली है। मंदिर का स्थापत्य और कला भी अद्वितीय है, जो इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है।
5. आधुनिक काल की विशाल प्रतिमा:
5. शिवधनुष प्रतिमा (Statue of Equality)
- स्थान: सिख विहार, बेंगलुरु, कर्नाटक
- विशेषता: शिवधनुष प्रतिमा एक आधुनिक काल की विशाल प्रतिमा है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह प्रतिमा भगवान शिव के प्रतीकात्मक रूप को दर्शाती है और इसके आसपास का वातावरण भक्तों को ध्यान और साधना के लिए प्रेरित करता है। यह प्रतिमा विशेष रूप से आधुनिक धार्मिक स्थलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
इन प्रमुख प्रतिमाओं के माध्यम से भगवान शिव के विभिन्न रूपों और उनके प्रति श्रद्धा का अनुभव किया जा सकता है। ये प्रतिमाएँ न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि भारतीय कला और स्थापत्य के उत्कृष्ट उदाहरण भी हैं।