पाकिस्तानी पत्रकार ने बाबरी विध्वंस को लेकर खोला बड़ा राज
Wednesday, Dec 06, 2017 - 06:31 PM (IST)
इस्लामाबादः पाकिस्तानी पत्रकार ने बाबरी विध्वंस को लेकर बड़ा राज खोला है। पाकिस्तान के फोटो पत्रकार शिराज हसन ने इन मंदिरों के फोटोज शेयर कर ट्विटर पर दावा किया है, “1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पाकिस्तान में करीब 100 मंदिरों को दंगाइयों ने निशाना बनाया था। उन लोगों ने या तो इन मंदिरों को गिरा दिया या फिर उनमें तोड़-फोड़ की थी। इन अधिकांश मंदिरों में 1847 के देश बंटवारे के शरणार्थी रहते थे।”
अपने दूसरे ट्वीट में हसन ने लिखा है, “हमने इन खंडहर मंदिरों में रह रहे कई लोगों से बातचीत की । इन लोगों ने साल 1992 के उस भयावह मंजर को याद करते हुए कहा कि हमने दंगाइयों से रहम की अपील की थी और कहा था कि यह हमारा आशियाना है, इसे मत तोड़ो लेकिन वो नहीं माने।” हसन ने अपनी बात को बल देने के लिए कुछ मंदिरों की तस्वीर भी शेयर की है। इनमें रावलपिंडी का कृष्ण मंदिर भी है, जिसका ऊपरी गुंबद दंगाइयों ने 1992 में तोड़कर गिरा दिया था।
Almost 100 abandoned temples were destroyed/damaged in #Pakistan in aftermath of Babri mosque destruction in 1992, most of these abandoned temples were providing shelter to the migrants of 1947. https://t.co/fmZnbtskbP
— Shiraz Hassan (@ShirazHassan) December 6, 2017
हसन ने एक अन्य ट्वीट में रावलपिंडी के ही कल्याण दास मंदिर की भी तस्वीर साझा की है, जहां आजकल दृष्टिहीनों का एक सरकारी स्कूल चलता है। स्कूल से जुड़े लोगों ने उन्हें बताया कि दंगाइयों ने यहां भी हमला बोला था लेकिन बहुत निवेदन करने के बाद उसे बचा लिया गया था। यह मंदिर सही सलामत हालत में दिखता है।
गौरतलब है कि आज से 25 साल पहले 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में कार सेवकों ने विवादित बाबरी ढांचे को ढहा दिया था। इस घटना की प्रतिक्रिया में पूरे देश में साम्प्रदायिक दंगे भड़के थे। यहां तक कि बाबरी विध्वंस की आग पड़ोसी देश पाकिस्तान-बांग्लादेश समेत कई देशों में भी भड़की थी। बाबरी विध्वंस के वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे।
इस घटना की पूरी दुनिया ने निंदा की थी। पाकिस्तान, बांग्लादेश और इरान समेत कई देशों में तो भारतीय दूतावासों पर हमले भी हुए थे। पाकिस्तान और बांग्लादेश में एंटी हिन्दू दंगे भी भड़के थे। श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रेमदासा का बोधगया दौरा टालना पड़ा था। ईरान ने तेल सप्लाई रोकने की धमकी दे डाली थी। भारतीय विदेश मंत्रालय को उस वक्त पड़ोसी देशों से दोस्ती निभाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था।