कुछ खर्च किए बिना छुटेगा रोगों का साथ, मरणासन्न भी पा सकते हैं प्राणों का वरदान

punjabkesari.in Wednesday, May 11, 2016 - 01:48 PM (IST)

मंत्र चिकित्सा में हम अपने देव को एक विधि से ही पुकारते हैं जिससे हमारे शरीर के चक्र चैतन्य होते हैं चक्रों को चैतन्य करने से हम निरोग होते हैं। इस चिकित्सा में पवित्रता, गुरु आराधना, यज्ञ, उपवास, तीर्थ ये सारी क्रियाएं तन एवं मन को शक्ति प्रदान करती हैं।

 

सर्वप्रथम हम अपने महान ऋषियों के उदाहरण से यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि चरक जैसे महान आयुर्वेद के जनक ने अपने महान ग्रंथ चरक संहिता के चिकित्सा स्थान में बुखार (ज्वर) की चिकित्सा के बारे में क्या कहा है-

‘‘विष्णु रं स्तुवन्नामसहस्त्रेण ज्वरान् सर्वनपोहति।’’

 

विष्णु सहस्त्र नाम के पाठ से ज्वर का नाश होता है रोगी के द्वारा न हो सके तो विद्वान धर्मनिष्ठ से पाठ कराना हितकर है। महर्षि वाग्भट्टाचार्य जी ने कुष्ठ रोग के निदान की औषधि बताने के बाद कहा कि सूर्य की आराधना के साथ सूर्य मंत्र का जाप, व्रत, यज्ञ इसे शीघ्र ठीक कर सकता है। मंत्र का प्रयोग आस्था विश्वास के साथ साधक रोगी के सिर पर अपना दाहिना हाथ रख कर स्वास्थ्य लाभ हेतु कहता है।

‘‘अच्युतानंद गोविंद नामोच्चारणभेषजात।

नश्यन्ति सकलारोगा: सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।’’

हे! अच्युत, हे! अनन्त, हे! गोविंद नाम के उच्चारण से अनेक रोग नष्ट होते हैं मैं सत्य कहता हूं, मैं सत्य कहता हूं ऐसी क्रिया से रोग नाश करना होता है। गोविंद नाम के उच्चारण से अनेक रोग नष्ट होते हैं मैं सत्य कहता हूं, मैं सत्य कहता हूं ऐसी क्रिया से रोग नाश करना होता है। हमारे वेद मंत्र संस्कृत भाषा में हैं, विश्व की सभी भाषाओं में यह संस्कृत भाषा ही वैज्ञानिक भाषा है। संस्कृत के श्लोक और मंत्रों में अत्यधिक हीलिंग वाइब्रेशन है।

इन मंत्रों के उच्चारण से जो कंपन प्रकट होता है वह मानव मस्तिष्क की क्रियाओं को स्लोडाऊन करने की अपार क्षमता रखता है। वैदिक/पौराणिक मंत्र ब्रेन वेव्स और पल्स रेट को कम कर सकते हैं। जब सभी औषधियां विफल हो जाती हैं सारे लौकिक उपाय हाथ खड़ा कर लेते हैं तब यह मंत्र ही है जो मरणासन्न को प्राणशक्ति प्रदान करता है। मंत्र की चिकित्सा असफल नहीं होती। यह तपस्या भक्ति साधना का प्रयोग होता है जो साधक देता है। मंत्र की ध्वनि स्थूल शरीर को प्रभावित करती है। तंत्र में एकाक्षर मंत्रों का निर्धारण किया गया है। देवनागरी लिपि के अनेक प्रभावी अक्षरों के ऊपर अनुस्वार (द) लगाकर एकाक्षरी बनाया है। हमारे ऋषियों ने जैसे ‘ऐ’ यह महासरस्वती का बीज मंत्र है यह मस्तिष्क को शक्ति देता है मंद बुद्धि और कोमा में गए रोगी भी इससे निरोग होते हैं।

—योगिराज श्रीरमेशजी

 

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