चमत्कारी कल्पवृक्ष के समान है यह स्तोत्र करता है हर इच्छा पूरी

punjabkesari.in Saturday, Sep 26, 2015 - 04:13 PM (IST)

श्रीगणपत्यथर्वशीर्ष में कहा गया है कि ओंकार का ही व्यक्त स्वरूप गणपति देवता हैं। इसी कारण सभी प्रकार के मंगल कार्यों और देवता-प्रतिष्ठापनाओं के आरंभ में श्री गणपति की पूजा की जाती है। जिस प्रकार प्रत्येक मंत्र के आरंभ में ओंकार का उच्चारण  आवश्यक है, उसी प्रकार प्रत्येक शुभ अवसर पर भगवान गणपति की पूजा एवं स्मरण अनिवार्य है। यह परम्परा शास्त्रीय है। वैदिक धर्मान्तर्गत समस्त उपासना सम्प्रदायों ने इस प्राचीन परम्परा को स्वीकार कर इसका अनुसरण किया है।
 
संकटनाश के लिए गणपति से संबंधित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र संकटनाशक स्तोत्र है।  जिसका नित्य पाठ कर साधक लाभ उठा सकते हैं। यह स्तोत्र अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण एवं दुर्लभ है। 
 
व्यक्ति के जीवन में कितना ही बड़ा संकट क्यों न आया हो, यदि इस स्तोत्र का पाठ नित्य श्रद्धापूर्वक करे तो वह उस संकट से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। इस स्तोत्र के प्रभाव से मुकद्दमे में सफलता मिलते देखा है। शत्रु बाधा में यह स्तोत्र कल्पवृक्ष के समान है। इस स्तोत्र का नित्य ग्यारह बार पाठ करें और इसे कार्य सिद्धि होने तक  चालू रखें, शत्रु विजय मुकद्दमे में सफलता हेतु नित्य इसका पाठ करें।
 
संकटनाशक गणपति स्तोत्र
 
संकटनाशक स्तोत्रम्
 
प्रणम्य शिरसा दैवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं  विकटमेव  च।
नवमं भालचंद्र च दशमं तु विनायकम्।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठैन्नर:।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
जपदेगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
अष्टभयो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यामायु: कामार्थसिद्धये।।
तृतीयं कृष्ण पिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्।।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टकम।।
एकादशं गणपति द्वादशं तु गजानानम्।।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम्।।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्।।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:।।
तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।। 

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