भारत के खास हिस्सों में कुछ ऐसे रखा जाता है करवाचौथ व्रत

punjabkesari.in Tuesday, Oct 18, 2016 - 10:56 AM (IST)

करवाचौथ व्रत के विधि-विधान में कई क्षेत्रीय रंग झलकते हैं। पंजाब, हरियाणा और दिल्ली प्रांत की सधवाएं कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को सुबह तीन-चार बजे के लगभग स्नान करने के पश्चात अपने बच्चों के साथ जो प्रात:कालीन आहार करती हैं उसे ‘सरघी’ कहा जाता है। संभवत: सरघी शब्द स्वादिष्ट (स) रसीले (र) पदार्थ जो ‘घी’ से बनाए गए हों। उनका सेवन ही ‘सरघी’ शब्द की व्युत्पत्ति की ओर इंगित करता है। 


पंजाब और हरियाणा में ‘सरघी’ सेवन में दूध में भिगोई फेनी, बर्फी, जलेबी आदि का विशेष प्रचलन है। ‘सरघी’ का सेवन करने के उपरांत व्रतधारिणी सुहागिन दिन भर एक बूंद पानी भी नहीं पीती। सायंकाल में 4-5 बजे के लगभग परिवार की सभी सधवाएं अपने-अपने घर के आंगन में एकत्रित हो जाती हैं। घर के आंगन का फर्श पानी से धो दिया जाता है। परिवार की सबसे बड़ी सधवा रोली से धुले फर्श पर स्वस्तिक (") का चिन्ह बना देती है जिसके चार सिरे चतुर्थी तिथि के सूचक होते हैं। एकत्रित हुई सब महिलाएं बाजार के चौक (चौराहे) पर बैठे कुम्हार से खरीदे हुए नए ‘करवे’ तथा हलवाई से मठरियां खरीद लाती हैं। ये पांच मठरियां ‘करवे’ के ढक्कन पर रख कर करवे में ताजा शुद्ध जल भरा जाता है और प्रत्येक महिला अपने-अपने करवे पर रोली से स्वस्तिक का चिन्ह बना लेती हैं। फिर सभी मिलकर परिवार की सुख-शांति वाले कुछ गीत गाकर आपस में करवे बदल लेती हैं। 


चंद्रोदय का समाचार मोहल्लों में कानों-कान फैल जाता है। प्रत्येक महिला अपने करवे की छुंददार मठरी से चंद्र दर्शन करने के पश्चात उसे जल चढ़ाने के लिए करवे से थोड़ा-सा जल टपकाती है और उन जलबूंदों की परिक्रमा करती है। जल चढ़ाने की इस प्रक्रिया को संस्कृत में ‘अर्ध्य प्रदान’ करना कहा जाता है।  


यदि सधवा सास, जेठानी अथवा बड़ी ननद ‘अर्ध्यदान’ के समय छत पर हो तो व्रतधारिणी वहीं पर उसका चरण स्पर्श करती है। अन्यथा वह नीचे कमरे में आकर सास, ससुर, जेठानी आदि का चरण स्पर्श करके छेद वाली मठरी के टुकड़े करके सभी को एक-एक टुकड़ा ‘प्रसाद’ के रूप में देती है जिसे पंजाबी भाषा में ‘भोग’ कहा जाता है। करवा उसके ढक्कन पर सजाई गई शेष चार मठरियां और कुछ धन-राशि परिवार की सबसे बड़ी सधवा को भेंट कर दी जाती है। चरण स्पर्श के उपलक्ष्य में उपर्युक्त सामग्री प्राप्त करने वाली महिला भेंटकर्ता को इस प्रकार आशीष देती है:

जिऊंदी रहि, बुड्ढ सुहागन हो, साईं-भाई जिएं


इसका अर्थ है दीर्घायु हो, तुम अपने पति के साथ बुढ़ापे तक जुड़ी रहो, तुम्हारे पति (साईं-स्वामी) और भाई (मायके वाले लड़कों) की लम्बी उम्र हो।


इसके पश्चात व्रतधारिणी परिवार समेत भोजन करती है। उस समय जो जल पिया जाता है उसमें अर्ध्यदान के पश्चात करवे में बचा हुआ पानी अवश्य मिला लिया जाता है ताकि सभी तृप्त हो जाएं।
 


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