कामिका एकादशी व्रत: पापों को मिटाकर खुशियों की करे बरसात

punjabkesari.in Saturday, Jul 30, 2016 - 09:32 AM (IST)

श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी व्रत सभी पातकों को हरने वाला तथा सभी सुखों को देने वाला है। मनुष्य की सभी कामनाओं की पूर्ति करने के कारण ही इसका नाम कामिका है, इस बार यह व्रत 30 जुलाई को है। इस व्रत के प्रभाव से जीव के सभी दुख नष्ट हो जाते हैं तथा संसार के सभी सुखों को भोगता हुआ मनुष्य अंत में प्रभु के रमधाम को प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार श्रावण मास को पुण्य कर्मों की कमाई करने वाला मास कहा गया है इसलिए इसकी महिमा अत्याधिक है तथा एकादशी का नाम स्मरण करने व व्रत की कथा सुनने से ही मनुष्य को बाजेय यज्ञ के बराबर पुण्य फल मिलता है ।

 

कैसे करें व्रत एवं पूजन

प्रत्येक एकादशी व्रत की भांति इस एकादशी का व्रत करने का पूर्व संकल् करके ही व्रत किया जाता है तथा द्वादशी को सूर्य भगवान को जल चढ़ाकर तथा ब्राह्मणों को दान आदि देकर ही व्रत का पारण करना चाहिए। इस दिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठकर अपनी स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान का विधिवत धूप, दीप, नेवैद्य, फल तुलसी और पुष्प आदि से पूजन करें। इस दिन भगवान श्रीधर का पूजन हरि, विष्णु, माधव, केशव और मधुसूदन रूप में किया जाता है।  

 

व्रत में तुलसी पूजन की महिमा

इस व्रत में तुलसी एवं तुलसी मंजरी से भगवान का  पूजन करना अति उत्तम है। भगवान को तुलसी अति प्रिय है, इसी कारण वह हीरे, मोती, मणियों आदि से पूजित किए जाने पर भी इतने प्रसन्न नहीं होते, जितने तुलसी के एक पत्ते से होते हैं। तुलसी मंजरी से किए गए  पूजन से जीव के जन्म जन्मांतरों के पाप मिट जाते हैं। तुलसी सौभाग्यदायक एवं पाप अौर रोग विनाशक है। शास्त्रानुसार जैसे गंगा कोई साधारण नदी नहीं बल्कि श्रेष्ठ तीर्थ है, वैसे ही तुलसी कोई पौधा नहीं बल्कि भगवान के साक्षात दर्शन हैं। हिंदू धर्म में तुलसी का पौधा लगाना अति शुभदायक है तथा प्रत्येक कर्मकाण्ड में तुलसी का होना उत्तम माना जाता है। जिस स्थान पर तुलसी का पौधा होता है, वहां ब्रह्मा विष्णु, महेश के साथ ही समस्त देवों का वास रहता है, इसी कारण तुलसी पूजन करने से ही सभी देवों के पूजन का फल एक साथ मिल जाता है। पदम पुराण के अनुसार तुलसी की महिमा अपार है। इसके दर्शन करने मात्र से ही जीव के सभी प्रकार के दुख मिट जाते हैं, तुलसी को स्पर्श करने से शरीर पवित्र हो जाता है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण होता है, जल से सींचने पर यह यमराज के भय को मिटाती है तथा तुलसी रोपित करने पर प्रभु के समीप ले जाती है। इसके अतिरिक्त तुलसी दल से पूजन करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

 

पुण्यफल

शास्त्रों के अनुसार सावन मास में किए गए किसी भी धर्म कर्म एवं व्रत आदि का फल हजारों गुणा अधिक होकर मनुष्य को मिलता है परंतु एकादशी प्रभु को अति प्रिय है इसलिए इस व्रत से प्रसन्न होकर प्रभु अपने भक्तों पर अपार कृपा करते हैं। वैसे तो प्रभु सदा ही अपने भक्त के भाव को देखते हैं। वह भक्त की धन दौलत नहीं बल्कि उसकी निष्काम भक्ति पर रिझते हैं और बिना मांगे ही उस पर अपनी पूरी कृपा न्यौछावर कर देते हैं परंतु यदि कोई मनुष्य किसी विशेष कामना से प्रभु का व्रत करता है तो भगवान उसकी वह इच्छा भी तुरंत पूरी कर देते है। पाप रुपी कीचड़ से भरे समुद्र में डूबे हुए प्राणियों को तारने के लिए यह व्रत श्रेष्ठ नाव है। गंगा,काशी,नैमिषारण्य, एवं  पुष्कर तीर्थ पर किए जाने वाले स्नान एवं पूजन से मिलने वाले दुर्लभ फल की प्राप्ति इस व्रत से होती है। पृथ्वी और दूध देने वाली गाय को आभूषणों सहित सजाकर दान करने के समान इस व्रत का पुण्यफल है। 

 

रात्रि जागरण एवं दीप दान की महिमा

जो मनुष्य एकादशी के दिन मंदिर में जाकर नियम से प्रात: और सांय दीप दान करता है, उसके पुण्यफल की गिनती चित्रगुप्त भी नहीं कर सकते। भगवान श्रीकृष्ण के सामने जो दीप जलाते हैं उनके पितर स्वर्गलोक में स्थित होकर अमृत पान से तृप्त होते हैं। इस दिन गाय के घी अथवा तिल के तेल से दीप दान करना चाहिए। रात्रि को जागरण करने वाले भक्त प्रभु को अति प्रिय होते हैं  

 

क्या कहते हैं विद्वान

महात्मा अमित चड्डा जी के अनुसार एकादशी को मंदिर में दीप दान करने, रात्रि जागरण करने और तुलसी पूजन की सर्वाधिक महिमा है। इस दिन सभी पाप अन्न का आश्रय लेते हैं इसीलिए व्रत में अन्न का सेवन नहीं किया जाता। उन्होंने कहा कि शास्त्रों के अनुसार इस दिन मां यशोद्धा तथा नंद बाबा के साथ ही भगवान के सभी परिकर वाले भी उपवास करते हुए केवल फलाहार ही करते हैं। उन्होंने बताया कि व्रतोत्सवनिर्णय-  क्रम के अनुसार व्रत का पारण 31जुलाई को प्रात: 6.21 से  हले किया जाना चाहिए।          

 

वीना जोशी

veenajoshi23@gmail.com


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