कबीर जी के निर्वाण दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि

punjabkesari.in Thursday, Feb 18, 2016 - 07:57 AM (IST)

आज निर्वाण दिवस 18 फरवरी
सन् 1518 में सद्गुरु कबीर जी की आत्मा इस जगत को छोड़ कर परमात्मा में समा गई। कबीर जी का चेहरा हमेशा रुहानी ज्योति से चमकता रहता था। कबीर जी ने हमेशा जात-पात को बढ़ावा देने वाली रीति-रिवाजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। राजे-महाराजों के आगे भी नहीं झुके और सभी को एक संदेश से नवाजा कि ऐसी धारणाएं जो समाज में नफरत उत्पन्न करती हैं उनको छोडऩा चाहिए जिससे समाज में खुशी की लहर जाग उठे। सद्गुरु कबीर जी ने जात-पात को कभी भी मान्यता नहीं दी और न ही ऐसे मतभेदों को स्वीकार किया। दुनियावी वस्तुओं को छोड़ कर भगवान की भक्ति में लीन होना चाहिए।
 
 
सद्गुरु कबीर जी कहते हैं कि सांसारिक विषयों में फंस कर मरते-मरते यह संसार नष्ट हो रहा है और उचित अवसर पर मरना न आया। सद्गुरु कबीर साहब कहते हैं कि मन ऐसा मर जिस से फिर कभी मरना न पड़े अर्थात तू जीवन-मृत्यु के चक्र से छूट जाए।
 
 
मरता मरता जग मुवा औसर मुवा न कोई
कबीर ऐसे मीर मवा, ज्यूं बहुरि न मरना होई
 
 
सद्गुरु कबीर जी कहते हैं कि मनुष्य ने रात सोने में गंवा दी और दिन खाने में गंवा दिया। हीरे के समान अमूल्य जीवन प्रभु के नाम स्मरण में न लगा कर व्यर्थ ही गंवा दिया।
 
 
रात गंवाई सोय कर, दिवस गवायो खाय।
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय।
 
 
सद्गुरु कबीर जी ने हिंदू और मुसलमानों के रीति-रिवाजों का विरोध किया और कहते थे कि मैं न हिंदू हूं, न मुसलमान। उनके शिष्यों में उनके अंतिम संस्कार को लेकर मतभेद हो गया। राजा वीर सिंह बघेला की रहनुमाई में हिंदू सद्गुरु कबीर जी के शव का अग्रि संस्कार करना चाहते थे और नवाब बिजलीखान और मुस्लिम अनुयायी दफनाना चाहते थे और दोनों में विवाद बढ़ा और आपस में झगड़े की नौबत आ गई। 
उस समय कुछ शिष्यों ने कबीर जी के शव की ओर ध्यान दिया तो कपड़ा हटाने पर शव की जगह पर फूलों का ढेर पाया।  
 

 -राजेश कुमार भगत 


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