क्रिकेट में विकेटें ही तय करती हैं कि हम कैसा खेल चाहते हैं

punjabkesari.in Monday, Jan 15, 2018 - 12:50 AM (IST)

दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध पहला टैस्ट क्रिकेट मैच पूरा नहीं देख सका था जोकि एक अच्छी बात थी। मैं क्रिकेट प्रेमी होने का ढोंग करता हूं लेकिन यह मैच देखने के लिए मुझे मेरे राष्ट्रवाद ने प्रेरित किया था।

जब हमारी टीम हार रही हो तो मैं क्रिकेट मैच देखना बर्दाश्त नहीं कर सकता। खासतौर पर ऐसे समय में जब हमारी टीम वैसी कमजोर नहीं है जैसी यह ऐतिहासिक तौर पर हुआ करती थी। मुझे वह समय याद है जब अपनी राष्ट्रीय टीम की कारगुजारी की तुलना में इसके लिए हमारा समर्थन कई गुना अधिक होता था। अब स्थिति वैसी नहीं रह गई।

मैच के चौथे दिन कुछ पलों के लिए तो ऐसा लगा था कि हम जीत जाएंगे लेकिन बल्लेबाजों ने गेंद उछल जाने के कारण विकेट गंवा दी। वैसे  दक्षिण अफ्रीका  के गेंदबाजों द्वारा गेंद को उछालना असाधारण बात नहीं लेकिन इस गेंद पर हमारी विकेट क्यों गिर गई? अब दूसरा टैस्ट मैच शुरू हो गया है तो हमें अपनी टीम के कुछ पहलुओं पर दृष्टिपात करना चाहिए।    सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि हमारी टीम आज भी और हमेशा से  बल्लेबाजी के बूते ही चलती आ रही है।

यदि हम अपने महान क्रिकेटरों का नाम लें तो इस सूची में  गावस्कर, तेंदुलकर और कोहली को रखा जा सकता है। इसी तरह पाकिस्तानी इमरान, वसीम और वकार को महान क्रिकेटरों में शुमार करेंगे। महान बल्लेबाजों की तुलना में महान गेंदबाज कुछ दुर्लभ ही होते हैं।

यह तथ्य तब स्पष्ट हो जाता है जब हम क्रिकेट खेलने वाले देशों  की सर्वकालिक महान टीमों की सूची तैयार करते हैं। मैं अपनी बात को भारतीय उपमहाद्वीप के दायरे में ही सीमित रखना चाहूंगा। पाकिस्तान की आदर्श क्रिकेट टीम  की परिकल्पना करें तो उसमें हनीफ मोहम्मद, सईद अनवर, जहीर अब्बास, जावेद मियांदाद, इंजमाम-उल-हक, यूनिस खान, राशिद लातीफ, इमरान खान , वसीम अकरम, वकार यूनुस और शोएब अख्तर भी सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी होंगे। दूसरी ओर भारत की टीम के लिए गावस्कर, सहवाग, कोहली, तेंदुलकर, द्रविड़, गांगुली, धोनी, कपिल देव, कुम्बले,  श्रीनाथ और जहीर।

इनमें से कौन-सी टीम अधिक संतुलित है और अधिक सशक्त दिखाई देती है (कम से कम कागजी कार्रवाई के तौर पर ही सही)? निश्चय ही हमारी वाली टीम नहीं। दोनों टीमों में अंतर यह है कि हमारी गेंदबाजी कमजोर है। मैं इस संबंध में कोई लम्बी-चौड़ी थ्यूरियां पेश नहीं करना चाहता। लेकिन बहुत मशक्कत करने वाले गेंदबाज भारत में बल्लेबाजों की तुलना में कुछ फिसड्डी हैं। यहां एक दूसरा पहलू भी मौजूद है। चूंकि हम एक बैटिंग राष्ट्र बन चुके हैं इसलिए  हम विकेटें ही गंवाते हैं जबकि बल्लेबाज से विकेट की रक्षा की उम्मीद की जाती है।

‘क्रिक इंफो’ नामक वैबसाइट के लिए 2009 में एस. राजेश ने एक आंकड़ागत विश£ेषण किया था जिससे यह सिद्ध हुआ था कि हमारी विकेटें कितनी कमजोर होती हैं। भारत में खेले जाने वाले टैस्ट मैचों में से 40 प्रतिशत ड्रा रहते हैं। जबकि दक्षिण अफ्रीका में केवल 7 प्रतिशत मैच ड्रा रहते हैं। एक अन्य देश जहां भारत का संघर्षपूर्ण मैच खेलने का इतिहास रहा है वह है आस्ट्रेलिया और उस देश में भी केवल 11 प्रतिशत मैच ड्रा रहते हैं।

भारत में बहुत ऊंचे स्कोर कोई असाधारण बात नहीं। दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध पहले टैस्ट मैच में दोनों पक्षों ने पहली ही इङ्क्षनग में लगभग 200-200 दौड़ों का स्कोर बना लिया था। यह एक ऐसी बात है जो हमारे भारतीय उपमहाद्वीप में प्रथम इंङ्क्षनग में कभी नहीं होती। गेंदबाजों के बाद  इस तरह के परिणाम दिखाने का लगभग कोई मौका होता ही नहीं और यही कारण है कि जिस पिच पर हम अपना पहला मैच हार गए उस तरह की पिचों को विकेट लुटाऊ कहा जाता है क्योंकि वे गेंदबाजों के समक्ष अच्छा खेल दिखाने का मौका प्रस्तुत करती हैं।

गेंदबाजों के लिए बेहतरीन खेल मैदानों के रूप में सूचीबद्ध 10 स्थलों में 2000 से 2010 तक के दशक की अवधि दौरान एक भी भारतीय शहर शामिल नहीं रहा। दूसरी ओर पहली ही पारी में सबसे अधिक दौड़ें पैदा करने वाली 10 बेहतरीन पिचों में से 3 भारत की ही हैं-कोलकाता, बेंगलूर और मोहाली।

इन परिस्थितियों ने भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम का स्वरूप कुछ ऐसा बना दिया है जो गेंदबाजी में कमजोर  और बल्लेबाजी में मजबूत है लेकिन वह भी केवल घरेलू पिचों पर। मैं इस बारे में काफी विश्वस्त हूं कि बहुत से भारतीय ऐसे फिरकीबाजों और विकेटों को निहारना पसंद करते हैं जो कुछ धूल भरी और मंदगति वाली हों तथा बहुत कम दौड़ें उपलब्ध करवाने वाली हों लेकिन अन्य बहुत से लोगों की तरह मैं भी निश्चय से कह सकता हूं कि तेज और उछाल भरी विकेट  पर ही गेंद को एक से अधिक सत्रों तक खेला जा सकता है। ऐसा मैच देखने का सचमुच मजा भी आता है।

खेल का एक अन्य पहलू भी बहुत दर्शनीय होता है जब कोई सचमुच का तेज गेंदबाज एक बढिय़ा बल्लेबाज  के पसीने छुड़ा रहा हो। ऐसा तब होता है जब विकेट उछाल भरी होती है और प्रत्येक गेंद शारीरिक रूप में घातक हो सकती है। भारत और लंका के विपरीत आस्ट्रेलिया तथा दक्षिण अफ्रीका में ऐसी उछाल भरी विकेटों के कारण ही टैस्ट  मैच देखने का मजा कुछ अलग होता है। मैं बल्लेबाजों को घायल होते नहीं देखना चाहता (छोटी-मोटी खरोंच चल सकती है) और जब खेल में ऐसा होता है तो सचमुच यह उत्तेजना भरा हो जाता है।

भारत में ऐसा बिल्कुल ही देखने में नहीं आता। हमें ईमानदारी से मानना होगा कि भारत में टैस्ट विकेट बहुत बोरिंग होता है और अधिकतर मामलों में इसे देखने को दिल नहीं चाहता।

इस स्थिति में बदलाव लाने के लिए हमें आधारभूत ढांचे के बदलाव से शुरूआत करनी होगी। दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया या इंगलैंड की तुलना में हमारे स्टेडियम  बहुत परेशान करते हैं। ऐसा तब हो रहा है जब बी.सी.सी.आई. दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट संघ है। फिरोजशाह कोटला की ग्राऊंड जैसा घटिया क्रिकेट मैदान तो दुनिया भर में नहीं है।  यह सीमैंट के बीमों से भरा हुआ है और जगह-जगह विज्ञापन लगे होते हैं।

फिर भी अंततोगत्वा विकेटें ही यह निर्धारित करती हैं कि हम किस तरह का खेल चाहते हैं। क्या हम मीडियम पेसर और फिरकीबाज चाहते हैं या फिर क्या तूफानी गेंदबाजी करने वाले खिलाड़ी? क्या हम ऐसे बल्लेबाज चाहते हैं जो वानखेड़े और ईडन गार्डन्स में पुराने रिकार्डों की तो धज्जियां उड़ा दें लेकिन दक्षिण अफ्रीकियों के औसत किस्म के हमले के सामने भी कुछ ओवर से अधिक समय तक न टिक पाएं?

जैसा कि मैंने पहले कहा है कि मैं क्रिकेट इसलिए देखता हूं कि मैं भारतीय क्रिकेट टीम से प्यार करता हूं न कि इसलिए कि मैं क्रिकेट खेल का दीवाना हूं। मैं उम्मीद करता हूं कि हम यह दूसरा टैस्ट और शृंखला हम जीत जाएंगे। लेकिन यदि हम ऐसा कर भी पाते हैं तो यह इसलिए ही हो पाएगा कि हमारे गेंदबाजों  द्वारा अपने साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसे व्यवहार के बावजूद बहुत बढिय़ा कारगुजारी दिखाई गई होगी। - आकार पटेल   


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News