स्कूल से यूनिवर्सिटी डिग्री स्तर की जाली मार्कशीट्स का घोटाला

punjabkesari.in Monday, Dec 11, 2017 - 02:52 AM (IST)

2013 में सामने आया व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाला भारत में प्रवेश परीक्षाओं, दाखिलों तथा नियुक्तियों से संबंधित सबसे बड़ा घोटाला था। दोषियों को सजा दिलवाने के लिए इस मामले में अब तक ज्यादा कुछ नहीं किया जा सका है। मध्य प्रदेश सरकार ने उदाहरण पेश करने लायक किसी तरह का कदम राज्य के नेताओं, सीनियर तथा जूनियर अफसरों और कारोबारियों के खिलाफ नहीं उठाया है। 

इस घोटाले में मैडीकल, सरकारी कर्मचारी, फूड इंस्पैक्टर, ट्रांसपोर्ट कांस्टेबल, पुलिस कर्मियों, स्कूल टीचरों आदि 13 विभिन्न परीक्षाओं के पेपर लिखने के लिए व्यवस्थित ढंग से नकली छात्रों की सेवाओं, एग्जाम हाल में सीटिंग व्यवस्था से छेड़छाड़ तथा जाली उत्तर पुस्तिकाओं की आपूर्ति की गई थी। सी.बी.आई. ने बेशक 592 दोषियों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किए हैं, इससे संबंधित नई खबरें केवल उन 40 लोगों की मौत की सुनाई देती हैं जिन्होंने इस घोटाले के बारे में आवाज उठा कर इसका पर्दाफाश किया था। 

ऐसी परिस्थितियों में जब इस तरह के घोटालों को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है तो यह केवल वक्त की बात थी कि ऐसा दोबारा होता और इस बार ऐसा ऑनलाइन हुआ है। एक फर्जी वैबसाइट ने हजारों लोगों को स्कूल स्तर से लेकर यूनिवर्सिटी की डिग्री स्तर की जाली मार्कशीट्स जारी कर दीं। इस घोटाले का पर्दाफाश शुक्रवार को ही दिल्ली में हुआ है। वैबसाइट का दावा था कि 300 स्कूल उसके साथ एफीलिएटेड हैं और उसे बड़ी चालाकी तथा पेशेवराना ढंग से तैयार किया गया था। बोर्ड का कथित चेयरमैन शिव प्रसाद पांडे एक आयुर्वैदिक चिकित्सक था जिसने 1978 में प्रतापगढ़ में एक क्लीनिक खोला था। 

उसे 6 लोगों के साथ लखनऊ में गिरफ्तार किया गया। अपने संगठन को ‘बोर्ड ऑफ हायर सैकेंडरी एजुकेशन दिल्ली’ पुकारने वाले इन लोगों ने देशभर के 25 हजार लोगों को ठगा। पुलिस को अभी तक विभिन्न शहरों में इनके 10 दफ्तरों के बारे में पता चला है परंतु जिस बड़े स्तर पर ये काम कर रहे थे तथा 5 वर्ष से खुलेआम यह घोटाला कर रहे थे, उससे यह घोटाला बेहद बड़े स्तर का होने की पूरी सम्भावना है। माना जाता है कि इस कथित ‘बोर्ड’ के मार्कशीट धारक बड़ी संख्या में राज्य पुलिस, रेलवे, पोस्टल विभाग, पैरामिलिट्री फोर्सेज तथा यहां तक कि सेना में भी भर्ती हैं। 

एफीलिएशन के लिए निजी स्कूलों से यह बोर्ड 10 से 15 हजार रुपए लेता था। करीब 300 स्कूल इससे एफीलिएटेड थे। चौंकाने वाली बात यह है कि पुलिस इस घोटाले से अनजान भी नहीं थी। 2011 में पुलिस ने मांगे राम आचार्य को गिरफ्तार किया था जब यह ‘बोर्ड’ सबसे पहले सामने आया था। वह इस वक्त तिहाड़ जेल में बंद है परंतु वही वैबसाइट तथा वही नाम अभी भी ‘बोर्ड’ के रूप में काम कर रहे हैं। यह बेहद चिंता की बात है कि विभिन्न पदों पर नियुक्त लोगों की गुणवत्ता इतनी घटिया होगी तो देश किस तरह से आगे बढ़ सकता है। जैसे कि 13 फरवरी, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने 83 पेजों के अपने आदेश में कहा था कि ‘‘व्यक्तिगत लाभों के लिए राष्ट्रीय चरित्र की बलि नहीं दी जा सकती है।’’ 

स्पष्ट है कि हम देश में कानून के राज को बहाल होने नहीं दे रहे हैं क्योंकि हम इस तरह के घोटाले करने वाले लोगों, कर्मचारियों तथा पेशेवरों को सजा नहीं दे पा रहे हैं। इन जाली डिग्री धारकों की वजह से कार्यों तथा सेवाओं में गुणवत्ता नहीं आ पा रही है। यदि इन घोटालेबाजों को जल्दी तथा प्रभावी ढंग से सजा नहीं दी जाती है तो सरकार तथा समाज के सभी पक्ष तथा शाखाएं अक्षमता के साथ-साथ ईमानदारी तथा राष्ट्रीय चरित्र की बहुत बड़ी समस्या का सामना करेंगी।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News