ट्रंप गाजा से 10 लाख फिलिस्तीनियों को भेजेंगे लीबिया, गुप्त प्लान खुलते ही दुनिया में मचा बवाल
punjabkesari.in Saturday, May 17, 2025 - 07:18 PM (IST)

Washington: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने एक गोपनीय योजना तैयार की थी, जिसके तहत गाजा पट्टी के करीब 10 लाख फिलिस्तीनियों को जबरन लीबिया में बसाने की बात की गई थी। इस सनसनीखेज खुलासे के बाद संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार संगठनों और फिलिस्तीनी नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और इसे “नस्लीय सफाया” की साजिश करार दिया है।
क्या थी योजना ?
ट्रंप प्रशासन की रणनीति का उद्देश्य गाजा को फिलिस्तीनी आबादी से खाली कराना था, ताकि इजराइल को यहां निर्बाध सैन्य अभियान चलाने की छूट मिल सके। योजना के तहत गाजा के लोगों को लीबिया जैसे अस्थिर अफ्रीकी देश में स्थानांतरित करने की बात कही गई थी। यह प्रस्ताव ट्रंप प्रशासन के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा गुप्त रूप से तैयार किया गया था और इस पर अमेरिकी विदेश विभाग और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कार्यालय में बातचीत भी हुई थी। हालांकि, यह साफ नहीं है कि इसे कभी आधिकारिक नीति के रूप में लागू किया गया या नहीं।
कड़ी आलोचना और कानूनी सवाल
- अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इस योजना को अवैध और अनैतिक बताया है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, जबरन विस्थापन को अंतरराष्ट्रीय कानून में युद्ध अपराध माना जाता है।
- इस योजना ने अमेरिका की वैश्विक छवि और उसकी कूटनीति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
लीबिया को क्यों चुना गया?
लीबिया एक ऐसा देश है जो पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता और गृहयुद्ध से जूझ रहा है। ट्रंप प्रशासन के रणनीतिकारों का मानना था कि लीबिया पश्चिमी दबाव के प्रति लचीला है और वहां विस्थापित फिलिस्तीनियों को स्थायी रूप से बसाया जा सकता है। इस योजना के सामने आते ही इसे एक "नस्लीय सफाया" (Ethnic Cleansing) की साजिश करार दिया गया। संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संस्थाओं ने चेतावनी दी है कि इस तरह का कदम अंतरराष्ट्रीय शांति और मानवाधिकारों के लिए घातक हो सकता है।
बाइडेन प्रशासन का रुख
जो बाइडन सरकार ने साफ किया कि इस योजना से उनका कोई सम्बंध नहीं है। उनका कहना है कि गाजा संकट का समाधान राजनीतिक और कूटनीतिक माध्यमों से होना चाहिए, न कि बलपूर्वक जनसंख्या विस्थापन से। यह खुलासा ट्रंप प्रशासन की नीतियों पर एक बार फिर सवाल खड़े करता है। गाजा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में ऐसी योजना को अमानवीय, गैरकानूनी और खतरनाक बताया गया है, जिससे न केवल क्षेत्रीय शांति बल्कि वैश्विक मानवाधिकार सिद्धांतों पर भी खतरा मंडराता है।