2032 और 2036 में आसमान से बरसेगा ‘आग का खतरा’? टॉरिड उल्का बौछार पर नया वैज्ञानिक अलर्ट!
punjabkesari.in Tuesday, Nov 04, 2025 - 02:28 PM (IST)
इंटरनेशनल डेस्क: हर साल अक्टूबर के आख़िरी हफ्तों में जब रात का आसमान अचानक चमकने लगता है, तो कई लोग समझते हैं कि यह बस टूटते तारे हैं। लेकिन वैज्ञानिकों के लिए यह समय टॉरिड उल्का बौछार (Taurid Meteor Shower) का होता है — वह खगोलीय घटना जिसे “हैलोवीन फायरबॉल्स” के नाम से भी जाना जाता है। वृषभ तारामंडल की दिशा से आने वाले ये उल्कापिंड (meteors) आकाश को आग की चमक से भर देते हैं। ज़्यादातर तो धरती तक पहुंचने से पहले ही जलकर राख हो जाते हैं, लेकिन हाल के शोधों ने संकेत दिए हैं कि भविष्य में इनमें से कुछ हमारे ग्रह के लिए खतरा बन सकते हैं।
जब आसमान से ‘आग के गोले’ बरसें
न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञानी डॉ. मार्क बोस्लो की अगुवाई में हुए हालिया अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि टॉरिड स्ट्रीम (Taurid Stream) में मौजूद कुछ बड़े खगोलीय टुकड़े आने वाले दशकों में धरती के बेहद करीब से गुजर सकते हैं - ख़ासकर 2032 और 2036 के दौरान। ये खगोलीय वस्तुएं यदि वायुमंडल से टकराती हैं, तो यह हवा में जोरदार विस्फोट (Airburst) या सतही टक्कर का कारण बन सकती हैं। वैज्ञानिकों ने पाया कि इस धारा में छोटे-छोटे पिंडों के समूह मौजूद हैं, जिन्हें कभी-कभी चांद पर दिखने वाले भूकंप जैसे झटकों और तेज़ चमकदार आग के गोले के रूप में देखा गया है।
क्या है टॉरिड झुंड और NEOs का कनेक्शन?
टॉरिड झुंड दरअसल उन धूमकेतुओं और क्षुद्रग्रहों (Asteroids & Comets) के अवशेष हैं जो सूरज की परिक्रमा करते हुए पीछे छोड़े गए थे। इन्हें वैज्ञानिक NEOs (Near Earth Objects) की श्रेणी में रखते हैं — यानी ऐसे अंतरिक्षीय पिंड जिनकी कक्षाएं पृथ्वी के मार्ग से टकरा सकती हैं। हालांकि अब तक अधिकांश टॉरिड उल्कापिंड छोटे आकार के होते हैं और हानिकारक नहीं, लेकिन इतिहास में कुछ विनाशकारी घटनाएं इसी तरह की उल्का वर्षा से जुड़ी मानी जाती हैं — जैसे 1908 का साइबेरिया का तुंगुस्का विस्फोट और 2013 का रूस का चेल्याबिंस्क हादसा, जिनमें हवा में धमाके से बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ था।
वैज्ञानिकों की चिंता और तैयारी
डॉ. बोस्लो के अनुसार, इस झुंड का व्यवहार अभी अध्ययन के चरण में है, लेकिन चांद पर दिखे भूकंपीय संकेत और तेज़ प्रकाशीय फ्लैश इसके अस्तित्व की पुष्टि करते हैं। इस झुंड के खगोलीय पिंड सूरज की सात बार परिक्रमा करते हैं, जबकि उसी दौरान बृहस्पति (Jupiter) सिर्फ दो बार घूमता है। इस असमान गति के कारण विशाल ग्रह की गुरुत्वाकर्षण शक्ति इन्हें घने समूहों में खींच लेती है, जिससे टकराव की संभावना समय-समय पर बढ़ जाती है।
क्या है ग्रहों की सुरक्षा योजना (Planetary Defense)?
पृथ्वी की सुरक्षा के लिए वैज्ञानिक Planetary Defense नामक वैश्विक पहल चला रहे हैं। इसमें शामिल हैं:
अंतरिक्षीय वस्तुओं की पहचान और निगरानी (Detection & Tracking)
टक्कर की संभावना का मॉडल तैयार करना
टकराव की स्थिति में विकर्षण (Deflection) या पथ परिवर्तन की रणनीति बनाना और अगर टक्कर टालना संभव न हो तो चेतावनी और आपात योजना तैयार करना।
आने वाले सालों में क्या होगा?
वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि टॉरिड झुंड वास्तव में मौजूद है, तो 2032 और 2036 में यह धरती के बेहद करीब से गुजरेगा। उस दौरान हमारे वायुमंडल में प्राकृतिक विस्फोटों या आकाशीय टकरावों की संभावना कुछ बढ़ सकती है। इसलिए शोधकर्ता पहले से ही सुझाव दे रहे हैं कि इन वर्षों में Targeted Sky Surveys यानी विशेष दूरबीनों से केंद्रित निरीक्षण किए जाएं, ताकि इस झुंड की वास्तविक संरचना और खतरे का स्तर समझा जा सके।
