जेम्स वेब टेलिस्कोप से ली गई तस्वीर में साफ नजर आ रहे हैं नेप्च्यून के वलय
punjabkesari.in Thursday, Sep 22, 2022 - 06:35 PM (IST)
वाशिंगटन, 22 सितंबर (भाषा) नासा का कहना है कि जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने नेप्च्यून ग्रह की, करीब 30 साल के बाद ऐसी तस्वीर ली है जिसमें इस दूरस्थ बर्फीले ग्रह के वलय स्पष्ट नजर आ रहे हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि तस्वीर की विशेषता ग्रह के वलयों का स्पष्ट दृश्य है। इनमें से कुछ का 1989 के बाद पता ही नहीं चल पाया था। 1989 में नासा के वॉयजर उपग्रह ने पहली बार नेप्च्यून का अवलोकन किया था। कहा जा सकता है कि वॉयजर नेप्च्यून का अवलोकन करने वाला पहला उपग्रह था।
तस्वीर में कई चमकीले, संकीर्ण वलय के अलावा, स्पष्ट रूप से नेप्च्यून के फीके धूल के छल्लों को देखा जा सकता है।
जेम्स वेब टेलिस्कोप के एक नेप्च्यून सिस्टम विशेषज्ञ और वैज्ञानिक हेइडी हैमेल ने एक बयान में कहा, ‘‘हमने आखिरी बार इन धुंधले, धूल भरे वलयों को तीन दशक पहले देखा था और इसके बाद यह पहली बार है जब हमने उन्हें इन्फ्रारेड में देखा है।’’नेप्च्यून पृथ्वी की तुलना में सूर्य से 30 गुना दूर स्थित है, और बाहरी सौर मंडल के दूरस्थ, अंधेरे क्षेत्र में परिक्रमा करता है।
इसके आंतरिक भाग की रासायनिक बनावट के कारण इसकी सतह बर्फ से ढकी है। बृहस्पति और शनि ग्रहों में जहां गैस की बहुतायत है वहीं नेपच्यून में हाइड्रोजन और हीलियम से भारी तत्वों की अधिकता है।
इस बर्फीले ग्रह को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 164 साल लगते हैं। इसका मतलब है कि खगोल विज्ञानी इसके उत्तरी ध्रुव को देख ही नहीं पाते। लेकिन जेम्स वेब टेलिस्कोप से ली गई तस्वीर से इसके उत्तरी ध्रुव वाले हिस्से के चमकीले होने का संकेत मिलता है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
तस्वीर में कई चमकीले, संकीर्ण वलय के अलावा, स्पष्ट रूप से नेप्च्यून के फीके धूल के छल्लों को देखा जा सकता है।
जेम्स वेब टेलिस्कोप के एक नेप्च्यून सिस्टम विशेषज्ञ और वैज्ञानिक हेइडी हैमेल ने एक बयान में कहा, ‘‘हमने आखिरी बार इन धुंधले, धूल भरे वलयों को तीन दशक पहले देखा था और इसके बाद यह पहली बार है जब हमने उन्हें इन्फ्रारेड में देखा है।’’नेप्च्यून पृथ्वी की तुलना में सूर्य से 30 गुना दूर स्थित है, और बाहरी सौर मंडल के दूरस्थ, अंधेरे क्षेत्र में परिक्रमा करता है।
इसके आंतरिक भाग की रासायनिक बनावट के कारण इसकी सतह बर्फ से ढकी है। बृहस्पति और शनि ग्रहों में जहां गैस की बहुतायत है वहीं नेपच्यून में हाइड्रोजन और हीलियम से भारी तत्वों की अधिकता है।
इस बर्फीले ग्रह को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 164 साल लगते हैं। इसका मतलब है कि खगोल विज्ञानी इसके उत्तरी ध्रुव को देख ही नहीं पाते। लेकिन जेम्स वेब टेलिस्कोप से ली गई तस्वीर से इसके उत्तरी ध्रुव वाले हिस्से के चमकीले होने का संकेत मिलता है।
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