‘अगर पाक और भारत के बीच कभी शांतिपूर्ण संबंध स्थापित हुए तो इसका श्रेय लांबा को भी जाएगा’

punjabkesari.in Saturday, Jul 02, 2022 - 08:25 PM (IST)

इस्लामाबाद, दो जुलाई (भाषा) पाकिस्तानी राजनयिक समुदाय के प्रमुख पूर्व सदस्यों ने शनिवार को कहा कि सतिंदर लांबा ‘‘ कूटनीति के प्रतीक’’ थे और अगर पाकिस्तान और भारत के बीच कभी शांतिपूर्ण संबंध स्थापित होते हैं तो इसका श्रेय इस वयोवृद्ध भारतीय राजनयिक को भी जाएगा। लांबा का बृहस्पतिवार को 81 साल की उम्र में नयी दिल्ली में निधन हो गया था। उन्होंने वर्ष 2005 से 2014 के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच पर्दे के पीछे से चली अहम कूटनीतिक बातचीत का नेतृत्व किया था। पर्दे के पीछे से चल रही बातचीत के दौरान लांबा के पाकिस्तानी समकक्ष रहे रियाज मोहम्मद खान ने भारतीय राजनयिक को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच कभी शांति स्थापित होगी तो ‘‘इसका श्रेय लांबा को भी जाएगा।’’ खान पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिव हैं और वर्ष 2010 से 2013 के बीच पड़ोसी देश ने उन्हें लांबा से वार्ता के लिए तैनात किया था। इस दौरान दोनों पक्षों ने कश्मीर मुद्दे सहित दोनों देशों के जटिल रिश्तों को सुलझाने का असफल प्रयास किया था। खान ने ‘पीटीआई-भाषा’ को फोन पर दिए साक्षात्कार में जनवरी 2010 में लांबा से हुई पहली मुलाकात को याद किया, जिसमें दोनों राजनयिकों ने पर्दे के पीछे से चल रही बातचीत की प्रक्रिया के दायरे में अपने विचारों का आदान-प्रदान किया। उन्होंने कहा, ‘‘सबसे पहले, मैं उनके निधन से बहुत दुखी हूं। मेरे मन में उनके लिए और उनकी कोशिशों के लिए अगाध सम्मान है।’’ खान ने कहा कि लांबा महान राजनयिक थे ‘‘ वह शांतिपुरुष थे, जो हमारे क्षेत्र का बहुत ख्याल रखते थे। वह बहुत सकारात्मक व्यक्ति थे।’’ खान ने तारिक अजीज के बाद पाकिस्तान की ओर से प्रक्रिया का नेतृत्व किया था। वह तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के विश्वासपात्र थे और लांबा के साथ पर्दे के पीछे से वार्ता में उनकी अहम भूमिका थी। खान ने याद किया कि पाकिस्तान और भारत कैसे पर्दे के पीछे से वार्ता के जरिये कठिन मुद्दों का कैसे समाधान करें, इसके वास्ते समझ विकसित करने के लिये लंबा रास्ता तय किया था। कश्मीर के मुद्दे पर खान ने कहा कि दोनों पक्ष कश्मीर के उपक्षेत्रों के स्वशासन के फार्मूले पर सहमत हो गए थे। उन्होंने बताया कि पर्दे के पीछे से बातचीत को पहला झटका वर्ष 2007 में पाकिस्तान के न्यायिक आंदोलन से लगा और बाद में 2008 में मुंबई हमले की वजह से प्रक्रिया रुक गई। खान ने कहा कि लेकिन गुप्त कोशिश और संवाद दोनों पक्षों के बीच वर्ष 2014 तक चलती रही, जिसके बाद प्रक्रिया रुक गई। भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने ‘‘ पीटीआई-भाषा’’से लांबा से संवाद और शांति के लिए उनकी कोशिशों के बारे में चर्चा की। उन्होंने कहा, ‘‘भारत में रहने के दौरान मैंने उनसे कई बार मुलाकात की और उन्हें एक परिपक्व राजनयिक पाया। उनके पाकिस्तान में अच्छे संपर्क थे क्योंकि उन्होंने वहां उप उच्चायुक्त और उच्चायुक्त के तौर पर काम किया था व पर्दे के पीछे से कूटनीति में शामिल थे।’’ एक सवाल के जवाब में बासित ने कहा कि पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी ने अपनी किताब में लिखा है कि दोनों देश कश्मीर पर समझ बनने के करीब पहुंच गए थे, लेकिन लांबा ने ‘‘कभी सार्वजनिक रूप से इसे स्वीकार नहीं किया।’’पूर्व विदेश सचिव शमशाद अहमद खान ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में लांबा के निधन को भारत और पाकिस्तान की शांति कूटनीति के लिए अपूरणीय क्षति करार दिया। उन्होंने लांबा के परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की। वरिष्ठ पाकिस्तानी रक्षा विश्लेषक हसन अस्करी ने कहा कि लांबा की पाकिस्तान में व्यक्तिगत मित्रता थी, जो आज राजनयिक बिरादरी में किसी के पास नहीं है।

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PTI News Agency

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