पूर्व अमेरिकी अधिकारी ने अफगानिस्तान को लेकर भारत के साथ अधिक समन्वय की वकालत की
punjabkesari.in Tuesday, Sep 21, 2021 - 12:36 PM (IST)
वाशिंगटन, 21 सितंबर (भाषा) अमेरिका के पूर्ववर्ती राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन की एक पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच पहली द्विपक्षीय बैठक से पहले कहा कि अमेरिका को आतंकवाद से निपटने के लिए अफगानिस्तान के संदर्भ में भारत के साथ अधिक समन्वय स्थापित करने और इस मामले में पाकिस्तान पर निर्भरता का पुन: आकलन करने की आवश्यकता है।
‘सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी’ थिंक टैंक में हिंद प्रशांत सुरक्षा कार्यक्रम की निदेशक लीज़ा कुर्टिस ने कहा कि हालांकि पाकिस्तान को दंडित करने में अब बहुत देर हो गई है, लेकिन अमेरिका को उसके 20 साल पुराने हठी रवैये से सीखना चाहिए और आतंकवाद से निपटने के मामले में सहयोग को लेकर इस्लामाबाद से कम अपेक्षाएं रखनी चाहिए। कुर्टिस ने पत्रिका ‘फोरेन अफेयर्स’ में लिखा कि 2001 के बाद से अमेरिका का कोई प्रशासन पाकिस्तान को अपने क्षेत्र में तालिबान की गतिविधियों को रोकने के लिए समझाने में सफल नहीं हुआ है। उन्होंने लिखा, ‘‘इस्लामिक स्टेट की अफगानिस्तान शाखा आईएसआईएस-के जैसे अन्य आतंकवादी समूहों को निशाना बनाते समय वाशिंगटन के लिए इस्लामाबाद के साथ काम करना संभव हो सकता है, लेकिन पाकिस्तान की खुफिया सेवा अलकायदा से जुड़े हक्कानी नेटवर्क को कभी निशाना नहीं बनाएगी।’’ कुर्टिस ने कहा, ‘‘पाकिस्तानी सेना और खुफिया अधिकारी भारत को अफगानिस्तान में पैर जमाने से रोकने के लिए हक्कानी नेटवर्क पर निर्भर हैं।’’उन्होंने कहा कि बाइडन प्रशासन को अपने प्रयासों को अन्य क्षेत्रीय लोकतंत्रों, विशेष रूप से भारत के साथ समन्वय पर फिर से ध्यान देना चाहिए। कर्टिस ने कहा कि अमेरिका ने आतंकवाद से निपटने के प्रयासों में भारत के साथ सहयोग के विचार को पाकिस्तान के कारण से दूर रखा।
कुर्टिस ने कहा, ‘‘अमेरिका को यह महसूस करना चाहिए कि आतंकवाद से लड़ने वाले लोकतांत्रिक देशों के साथ समन्वय करके उसे कहीं अधिक सफलता हासिल होगी। उसे उन शासनों के साथ काम करने की कोशिश करके कुछ हासिल नहीं होगा, जो क्षेत्रीय उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए पर्दे के पीछे से आतंकवाद पर निर्भर करते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक मददगार भूमिका निभा रहा है, जिसमें वह दो वर्षीय कार्यकाल के लिए अस्थायी सदस्य के तौर पर जिम्मेदारी निभा रहा है। भारत ने यूएनएससी के अध्यक्ष के रूप में अगस्त में अफगानिस्तान पर एक मजबूत प्रस्ताव पेश किया, जिसमें आतंकवाद से निपटने, मानवाधिकारों को बरकरार रखने और महिलाओं द्वारा पूर्ण, समान और सार्थक भागीदारी के साथ एक समावेशी राजनीतिक समाधान को प्रोत्साहित करने का आह्वान किया गया।’’ कुर्टिस ने कहा, ‘‘हालांकि शांति वार्ता को सुगम बनाने के लिए अमेरिका पाकिस्तानी नेताओं पर बहुत अधिक निर्भर था, लेकिन तालिबान के काबुल में प्रवेश करते ही इस्लामाबाद में अधिकारियों के बयान चौंकाने वाले हैं। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने घोषणा की कि समूह ने ‘गुलामी की बेड़ियों को तोड़ दिया है’, जबकि उनके विशेष सहायक ने ट्वीट किया कि ''अमेरिका ने अफगानिस्तान के लिए जो जुगत लगाई थी, वह ताश के पत्तों के मकान की तरह ढह गई।’’ कर्टिस ने कहा कि वाशिंगटन को अफगानिस्तान से संबंधित मुद्दों पर अपने प्रमुख भागीदार के रूप में पाकिस्तान पर अपनी निर्भरता का फिर से आकलन करने की आवश्यकता है। उन्होंने लिखा कि तालिबान के साथ बातचीत के दौरान यह एक और गलती थी।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
‘सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी’ थिंक टैंक में हिंद प्रशांत सुरक्षा कार्यक्रम की निदेशक लीज़ा कुर्टिस ने कहा कि हालांकि पाकिस्तान को दंडित करने में अब बहुत देर हो गई है, लेकिन अमेरिका को उसके 20 साल पुराने हठी रवैये से सीखना चाहिए और आतंकवाद से निपटने के मामले में सहयोग को लेकर इस्लामाबाद से कम अपेक्षाएं रखनी चाहिए। कुर्टिस ने पत्रिका ‘फोरेन अफेयर्स’ में लिखा कि 2001 के बाद से अमेरिका का कोई प्रशासन पाकिस्तान को अपने क्षेत्र में तालिबान की गतिविधियों को रोकने के लिए समझाने में सफल नहीं हुआ है। उन्होंने लिखा, ‘‘इस्लामिक स्टेट की अफगानिस्तान शाखा आईएसआईएस-के जैसे अन्य आतंकवादी समूहों को निशाना बनाते समय वाशिंगटन के लिए इस्लामाबाद के साथ काम करना संभव हो सकता है, लेकिन पाकिस्तान की खुफिया सेवा अलकायदा से जुड़े हक्कानी नेटवर्क को कभी निशाना नहीं बनाएगी।’’ कुर्टिस ने कहा, ‘‘पाकिस्तानी सेना और खुफिया अधिकारी भारत को अफगानिस्तान में पैर जमाने से रोकने के लिए हक्कानी नेटवर्क पर निर्भर हैं।’’उन्होंने कहा कि बाइडन प्रशासन को अपने प्रयासों को अन्य क्षेत्रीय लोकतंत्रों, विशेष रूप से भारत के साथ समन्वय पर फिर से ध्यान देना चाहिए। कर्टिस ने कहा कि अमेरिका ने आतंकवाद से निपटने के प्रयासों में भारत के साथ सहयोग के विचार को पाकिस्तान के कारण से दूर रखा।
कुर्टिस ने कहा, ‘‘अमेरिका को यह महसूस करना चाहिए कि आतंकवाद से लड़ने वाले लोकतांत्रिक देशों के साथ समन्वय करके उसे कहीं अधिक सफलता हासिल होगी। उसे उन शासनों के साथ काम करने की कोशिश करके कुछ हासिल नहीं होगा, जो क्षेत्रीय उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए पर्दे के पीछे से आतंकवाद पर निर्भर करते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक मददगार भूमिका निभा रहा है, जिसमें वह दो वर्षीय कार्यकाल के लिए अस्थायी सदस्य के तौर पर जिम्मेदारी निभा रहा है। भारत ने यूएनएससी के अध्यक्ष के रूप में अगस्त में अफगानिस्तान पर एक मजबूत प्रस्ताव पेश किया, जिसमें आतंकवाद से निपटने, मानवाधिकारों को बरकरार रखने और महिलाओं द्वारा पूर्ण, समान और सार्थक भागीदारी के साथ एक समावेशी राजनीतिक समाधान को प्रोत्साहित करने का आह्वान किया गया।’’ कुर्टिस ने कहा, ‘‘हालांकि शांति वार्ता को सुगम बनाने के लिए अमेरिका पाकिस्तानी नेताओं पर बहुत अधिक निर्भर था, लेकिन तालिबान के काबुल में प्रवेश करते ही इस्लामाबाद में अधिकारियों के बयान चौंकाने वाले हैं। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने घोषणा की कि समूह ने ‘गुलामी की बेड़ियों को तोड़ दिया है’, जबकि उनके विशेष सहायक ने ट्वीट किया कि ''अमेरिका ने अफगानिस्तान के लिए जो जुगत लगाई थी, वह ताश के पत्तों के मकान की तरह ढह गई।’’ कर्टिस ने कहा कि वाशिंगटन को अफगानिस्तान से संबंधित मुद्दों पर अपने प्रमुख भागीदार के रूप में पाकिस्तान पर अपनी निर्भरता का फिर से आकलन करने की आवश्यकता है। उन्होंने लिखा कि तालिबान के साथ बातचीत के दौरान यह एक और गलती थी।
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