कौन हैं कुलमन घीसिंग जो नेपाल के अंतरिम पीएम के लिए Gen-Z की बने पसंद, सुशीला कार्की हटीं पीछे
punjabkesari.in Thursday, Sep 11, 2025 - 04:29 PM (IST)

काठमांडू: नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच अंतरिम सरकार के नेतृत्व को लेकर अब तस्वीर साफ होती नजर आ रही है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद अंतरिम सरकार के मुखिया के रूप में कुलमन घीसिंग का नाम सबसे आगे उभरकर सामने आया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़क पर उतरे Gen-Z आंदोलनकारियों ने पूर्व विद्युत प्राधिकरण प्रमुख कुलमन घीसिंग को अपना समर्थन दिया है।
बालेन शाह और सुशीला कार्की ने ठुकराया प्रस्ताव
सबसे पहले काठमांडू के लोकप्रिय युवा मेयर बालेन शाह का नाम सामने आया था, लेकिन उन्होंने सार्वजनिक रूप से अंतरिम सरकार की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया। इसके बाद पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का नाम प्रस्तावित हुआ, जिन्हें शाह का भी समर्थन प्राप्त था। हालांकि संवैधानिक जटिलताओं और उम्र संबंधी कारणों से कार्की ने भी यह जिम्मेदारी संभालने से मना कर दिया।
इन दोनों प्रमुख नामों के हटने के बाद Gen-Z प्रदर्शनकारियों ने सर्वसम्मति से कुलमन घीसिंग को अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में समर्थन देने का ऐलान किया। स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, युवाओं का मानना है कि घीसिंग न केवल भ्रष्टाचार से दूर हैं बल्कि उन्होंने देश के लिए ठोस काम भी किए हैं, खासकर ऊर्जा क्षेत्र में।
कौन हैं कुलमन घीसिंग?
25 नवंबर 1970 को नेपाल के एक ग्रामीण क्षेत्र में जन्मे कुलमन घीसिंग की कहानी प्रेरणा से भरी है। उन्होंने भारत के जमशेदपुर स्थित क्षेत्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान और नेपाल के पुलचौक इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। बाद में उन्होंने MBA भी किया।
"पावरमैन ऑफ नेपाल" की पहचान
घीसिंग ने अपने करियर की शुरुआत 1994 में नेपाल विद्युत प्राधिकरण (NEA) में बिजली इंजीनियर के रूप में की थी। 2016 में जब उन्हें NEA का प्रबंध निदेशक नियुक्त किया गया, उस समय देश रोजाना 18 घंटे की बिजली कटौती से जूझ रहा था। घीसिंग ने चुनौती स्वीकार की और NEA में व्यापक सुधार लागू किए, जिससे न केवल लोडशेडिंग खत्म हुई, बल्कि यह संस्था लाभदायक भी बन गई।
कठिन समय में नेतृत्व की बागडोर
अब जब नेपाल गंभीर राजनीतिक संकट और हिंसक प्रदर्शनों के दौर से गुजर रहा है, कुलमन घीसिंग का नाम स्थायित्व और परिवर्तन की उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है। Gen-Z आंदोलन के चलते ओली सरकार को इस्तीफा देना पड़ा और हालात इतने बिगड़े कि सरकार को सेना की तैनाती करनी पड़ी और देशव्यापी कर्फ्यू लगाना पड़ा।