चीन को छोड़ कर जापान ने भारत में जताया भरोसा, ऐताहिसक निवेश की घोषणा

punjabkesari.in Thursday, Apr 07, 2022 - 04:44 PM (IST)

जापान: जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की पद जापान संभालने के बाद भारत की पहली यात्रा थी, जिसमें ऐतिहासिक रूप से जापान ने भारत में 42 अरब अमरीकी डालर के निवेश की घोषणा की। भारतीय मुद्रा में यह धनराशि 3.20 लाख करोड़ रुपए होती है। जापान भारत में यह निवेश अगले 5 वर्षों में करेगा। फुमियो किशिदा ने अपने समकक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और बाकी महत्वपूर्ण मुद्दों के साथ हिंद प्रशांत क्षेत्र की शांति, स्थिरता और सहअस्तित्व के बारे में बात की। मुक्त, खुला और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र पूरे एशिया की प्रगति के लिए आवश्यक है। इसके साथ ही क्षेत्रीय संदर्भ में सुरक्षा और आपसी सहयोग के बारे में बात हुई, भारत और जापान ने आपूर्ति और सेवा अनुबंध के पारस्परिक प्रावधान यानी आर. पी. एस. एस. के समझौते पर हस्ताक्षर किए।

यहां पर यह समझना बहुत जरूरी है कि इसमें चीन का नाम नहीं लिया गया लेकिन चीन जापान और भारत समेत पूरे पूर्वी, दक्षिण-पूर्वी और दक्षिण एशिया के लिए खतरा है, जिसके खिलाफ एशियाई शक्तियां अपने-अपने स्तर पर रक्षा से जुड़े समझौते कर रही हैं। रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद चीन की विस्तारवादी नीतियों को देखते हुए इस तरह के समझौते और प्रासंगिक हो जाते हैं।
 

दरअसल चीन एक बड़ा कारण है, जो जापान के साथ-साथ दक्षिण कोरिया और अन्य क्षेत्रीय देश भारत के साथ आपसी सहयोग बढ़ाना चाहते हैं। जहां चीन पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए खतरा बना हुआ है, वहीं दूसरी तरफ कोरोना महामारी की हर नई लहर आने के बाद चीन से वैश्विक स्तर पर आपूर्ति श्रृंखला में बाधा आती है, जिससे चीन के अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों को नुक्सान होने लगा है। इसे देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने अपने विनिर्माण, निर्यात और अबाधित आपूर्ति श्रृंखला के लिए विविधता की तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में ढेरों अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां चीन से बाहर निकल कर वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, भारत और दूसरे देशों का रुख कर रही हैं, ताकि भविष्य में किसी संभावित महामारी के खतरे में इन कम्पनियों का काम बाधित न हो।
 

दूसरा बड़ा कारण है चीन का आक्रामक रवैया। चीन ने अपने हर पड़ोसी देश की जमीन हथिया कर उसे नाराज कर दिया है और उसके लगभग सभी पड़ोसी देश चीन की दहशत के साए में जीने को मजबूर हो गए हैं। चीन की आक्रामकता का बड़ा कारण उसका आर्थिक रूप से सम्पन्न होना है, इसीलिए अमरीका, पश्चिमी यूरोपीय देश और एशिया में जापान और दक्षिण कोरिया ने चीन से अपना काम समेटना शुरू कर दिया है, जो चीन के बेहतर विकल्प के रूप में भारत का रुख करने लगे हैं।
 

जापान ने वर्ष 2014 में भारत के साथ हुए एक समझौते के तहत 29 अरब डालर के निवेश का लक्ष्य पूरा कर लिया है। भारत और जापान के बीच यह समझौता तब हुआ था जब शिंजो अबे जापान के प्रधानमंत्री थे और अब जापान फिर से भारत में पिछली बार की तुलना में अधिक धन का निवेश करने जा रहा है। आर्थिक विकास के साथ जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा के लिए आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए दोनों देशों के बीच समझौता हुआ है। वर्तमान में भारत में 1455 जापानी कम्पनियां काम कर रही हैं।
 

चीन को अनदेखा कर जापान भारत में इसलिए भी निवेश कर भारत के साथ व्यापारिक और सांस्कृतिक सांझेदारी बढ़ा रहा है क्योंकि चीन के साथ जापान का शेन्काकू द्वीप को लेकर एक लम्बे समय से विवाद चल रहा है और चीन जैसे-जैसे आर्थिक तौर पर मजबूती हासिल कर रहा है, वैसे ही उसकी आक्रामकता और अपने पड़ोसियों की जमीन हथियाने की हठधर्मिता बढ़ती जा रही है।
 

इसके साथ ही भारत की कई परियोजनाओं के लिए भी जापान ने भारत में निवेश किया है, जिनमें पूर्वोत्तर भारत में आधारभूत संरचनाओं के विकास का मुद्दा अहम है। इसमें जंगल प्रबंधन, प्राकृतिक आपदा के खतरों से निपटने और एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र को जोड़ने के लिए दोनों देशों ने आपसी समझौता किया। इसके साथ मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में राष्ट्रीय राजमार्ग को उन्नत करने जैसे मुद्दे भी शामिल हैं। भारत को आर्थिक तौर पर मजबूत करने के पीछे जापान का उद्देश्य इसके साथ सहयोग बढ़ाना है। जापान ने जो चीन में निवेश किया है, उससे कम लागत में जापान को वही नतीजे भारत में मिल सकते हैं। भारत भविष्य में औद्योगिक संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए विशाल हुए। आधारभूत अवसंरचना की स्थापना कर रहा है। इसके साथ ही भारत ने 76,000 करोड़ रुपए की जो पी. एल.आई. परियोजना की शुरूआत की है, उससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश गया है कि भारत अब एक बड़ा औद्योगिक देश बनने की राह पर अग्रसर है।
 

यही वजह है कि ढेर सारी विदेशी कंपनियां पी. एल.आई. स्कीम का लाभ उठाना चाहती हैं और भारत को एक औद्योगिक केंद्र बनाने में सहयोग दे रही हैं। इसी कड़ी में जापान ने भारत में ऐतिहासिक निवेश की घोषणा कर विश्व को यह संदेश देने की कोशिश की है कि अब चीन के दिन लद गए हैं और भारत वैश्विक पटल पर एक उभरता सितारा है, जिसकी प्रगति अबाध्य है।
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Anu Malhotra

Recommended News

Related News