चिंताएं तो हैं, पर बांग्लादेश हमारे दिल के करीब है: ढाका में 16 साल से रह रहे भारतीय परिवार ने कहा

punjabkesari.in Friday, Aug 23, 2024 - 07:33 PM (IST)

नेशनल डेस्क: बांग्लादेश में 16 साल से अपने परिवार के साथ रह रहीं एक भारतीय प्रवासी मीरा मेनन का कहना है कि केरल में उनकी मां सुरक्षा चिंताओं के कारण लगातार उनसे देश छोड़ने का आग्रह कर रही हैं, लेकिन उनकी छोटी बेटी को ‘ढाका घर जैसा लगता है' और इससे अलग होना आसान नहीं है। जुलाई में बड़े पैमाने पर आरक्षण विरोधी प्रदर्शन शुरू होने के बाद से बड़ी संख्या में भारतीयों ने हिंसाग्रस्त देश को छोड़ दिया है। यह प्रदर्शन शेख हसीना सरकार के खिलाफ एक अभूतपूर्व प्रतिरोध में बदल गया, जिसके कारण उन्हें पांच अगस्त को सत्ता से बेदखल होना पड़ा।

बेटी के साथ ढाका में रहती है मेनन 
केरल के त्रिशूर जिले की मूल निवासी 45 वर्षीय मेनन अपने पति, (जो यहां एक कंपनी में वरिष्ठ प्रबंधक के रूप में काम करते हैं) और 14 वर्षीय बेटी अवंतिका के साथ ढाका में रहती हैं। मेनन ने अपने घर पर से कहा, ‘‘हम छुट्टी मनाने के लिये केरल में थे और चार अगस्त को वापस ढाका लौटे थे। यह कर्फ्यू वाला दिन था, लेकिन हमें नहीं पता था कि स्थिति एक दिन में इतनी नाटकीय रूप से बदल जाएगी। जिस क्षेत्र में हम रहते हैं, वह विरोध प्रदर्शन के दौरान अछूता रहा था। लेकिन रात में सुरक्षाकर्मी गश्त करते हैं और सीटी आदि की आवाज आती है। मेरी नींद भी प्रभावित हुई है।'' ढाका में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से आए भारतीय समुदाय के लोग रहते हैं और मेनन (एक गृहिणी) ढाका मलयाली एसोसिएशन (डीएमए) की वर्तमान अध्यक्ष भी हैं।

2008 के अंत में पहली बार बांग्लादेश आई थीं
उन्होंने कहा, ‘‘हर साल हम यहां अपने त्योहार मनाते हैं। हमने आगामी 27 सितंबर को ओणम मनाने की योजना बनाई थी, लेकिन अभी प्रतिकूल स्थिति के कारण हमने ‘बोट क्लब' में अपना आरक्षण पहले ही रद्द करा दिया है।'' मेनन ने कहा कि कई सदस्य केरल या भारत के अन्य हिस्सों के लिए रवाना हो गए हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग छोटे-छोटे अवकाश ले रहे हैं और कुछ लोग असमंजस में हैं और सोच रहे हैं कि वापस आना है या नहीं। उन्होंने कहा कि उनमें से कुछ ने अपने परिवारों को फिर से भारत में ही रखने का फैसला किया है। त्रिशूर की मूल निवासी मेनन अपनी शादी के बाद 2008 के अंत में पहली बार बांग्लादेश आई थीं।

मां हमें भारत वापस आने के लिए कहती हैं
मेनन ने कहा, ‘‘जो लोग यहां ढाका में हैं या जो भारत में हैं, वे पूरी तरह से असमंजस या दुविधा में हैं कि उन्हें यहां रहना चाहिए या वापस जाना चाहिए या किसी और जगह स्थानांतरित हो जाना चाहिए। अनिश्चितता की भावना है। केरल में मेरी मां हालचाल लेने के लिए हर दिन मुझे फोन करती हैं और हमें भारत वापस आने के लिए कहती हैं। यहां तक ​​कि जब हम भारत में अपनी लंबी छुट्टियों के बाद लौट रहे थे, तब भी वह हमसे वापस आने का आग्रह करती रहीं।'' मेनन स्वीकार करती हैं कि वह अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा संबंधी चिंताओं और ढाका शहर के साथ उनके, विशेषकर उनकी बेटी के जुड़ाव के कारण दुविधा में हैं।

पिछले 16 वर्षों से हमारा घर रहा है ढाका
उन्होंने कहा, ‘‘जब हम पहली बार बांग्लादेश पहुंचे तो मेरी बेटी मुश्किल से 10 महीने की थी। वह सचमुच यहीं पली-बढ़ी है और इस जगह के साथ जुड़ाव महसूस करती है। हम भी ऐसा ही महसूस करते हैं, क्योंकि ढाका पिछले 16 वर्षों से हमारा घर रहा है।'' इस डेढ़ दशक में मेनन अपनी संस्कृति से जुड़ी रहते हुए ढाका के जीवन और सांस्कृतिक लोकाचार में अच्छी तरह से घुल-मिल गई हैं। उनके पति सुरेश भी एक मलयाली हैं, जो मुंबई में पले-बढ़े हैं, जबकि भरतनाट्यम नृत्य में प्रशिक्षित उनकी बेटी धाराप्रवाह बांग्ला बोलती हैं। जब अवंतिका से पूछा गया कि उन्होंने बांग्ला बोलना कैसे सीखा, तो उन्होंने कहा, ‘‘मैंने यह घरेलू सहायिका और कार चालक (दोनों बांग्लादेशी) को सुनकर सीखा।''

नानी ने भारत आने का आग्रह किया- बेटी 
मेनन ने कहा कि उनके पति खुद को शांत रखने के लिए समाचारों और सोशल मीडिया से मिलने वाली अद्यतन जानकारी से दूर रहने की कोशिश करते हैं और कभी-कभी भारत वापस जाने या कहीं और स्थानांतरित हो जाने पर चर्चा करते हैं। कक्षा नौ की छात्रा अवंतिका ने कहा कि जब वह हाल ही में केरल में थीं, तो उसकी नानी ने उससे भी भारत वापस आने का आग्रह किया। यह पूछे जाने पर कि ढाका, जहां वह पली-बढ़ी है, उसके लिए क्या मायने रखता है, 14 वर्षीय लड़की ने कहा, ‘‘ढाका, घर जैसा लगता है। केरल की यात्रा करना किसी जगह घूमने के लिये जाने जैसा लगता है।'' मेनन का कहना है कि डीएमए की स्थापना 2006 में 60 सदस्यों के साथ की गई थी और वह 2023 में इसकी अध्यक्ष बनीं और इस पद को संभालने वालीं वह पहली महिला हैं।


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Content Editor

rajesh kumar

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