ढाका में 93 हजार सैनिकों ने डाले हथियार… लेकिन पाकिस्तान की हार की असली वजह क्या थी?
punjabkesari.in Tuesday, Dec 16, 2025 - 06:32 PM (IST)
नेशनल डेस्क: आज से ठीक 54 साल पहले, 16 दिसंबर 1971 को इतिहास का एक ऐसा अध्याय लिखा गया, जिसने दक्षिण एशिया का नक्शा हमेशा के लिए बदल दिया। ढाका के रामना रेस कोर्स में पाकिस्तान की सेना ने भारत के सामने सबसे बड़ा आत्मसमर्पण किया। लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने भारतीय जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष हथियार डाले और 93 हजार पाकिस्तानी सैनिक युद्धबंदी बन गए। इसी के साथ पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर एक नए देश- बांग्लादेश- के रूप में दुनिया के नक्शे पर उभरा।
आत्मसमर्पण का वो पल, जिसने पाकिस्तान को तोड़ दिया
ढाका में उस दिन धूप खिली हुई थी, लेकिन पाकिस्तान के लिए वह सबसे अंधेरा दिन साबित हुआ। कांपते हाथों से नियाजी आत्मसमर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर रहे थे। सामने भारतीय सेना और मुक्तिवाहिनी के कमांडर खड़े थे, पीछे पराजित सैनिकों की लंबी कतार थी। गुस्से से भरे बांग्लादेशी नागरिक बैरिकेड तोड़ने को बेताब थे और चारों ओर भारतीय झंडे लहरा रहे थे। पाकिस्तान का आधा हिस्सा हमेशा के लिए हाथ से निकल चुका था।
रावलपिंडी में जश्न का हैंगओवर
इसी दौरान रावलपिंडी में हालात बिल्कुल उलट थे। पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सेना प्रमुख जनरल याह्या खान हैंगओवर से जूझ रहे थे। चश्मदीदों के मुताबिक, पिछली रात पार्टी बेहद जोरदार थी। उनकी करीबी मानी जाने वाली ‘जनरल रानी’ कुछ घंटे पहले ही उनके घर से निकली थीं। मोर्चे पर हार की खबरें आ रही थीं, लेकिन सत्ता के शीर्ष पर माहौल बिल्कुल बेपरवाह था।
हार के बाद बना हमूदुर रहमान कमीशन
भारी पराजय के बाद सत्ता संभालने वाले जुल्फिकार अली भुट्टो ने सच्चाई जानने के लिए चीफ जस्टिस हमूदुर रहमान की अध्यक्षता में जांच कमीशन बनाया। मकसद साफ था- पूर्वी पाकिस्तान क्यों हाथ से निकला और इसके लिए जिम्मेदार कौन था?
1972 से 1974 तक चली जांच के बाद रिपोर्ट सामने आई। सैन्य रणनीति से ज्यादा जिस बात ने सबको चौंकाया, वह था रिपोर्ट का ‘नैतिक पहलू’। कमीशन ने कहा कि हार केवल युद्धक्षेत्र की गलतियों का नतीजा नहीं थी, बल्कि सेना के शीर्ष नेतृत्व का नैतिक पतन इसकी बड़ी वजह बना।
याह्या खान और सत्ता के शिखर पर पतन
रिपोर्ट के मुताबिक, 1969 में सत्ता में आए याह्या खान के दौर में शराब, पार्टियों और अनैतिक जीवनशैली ने सेना की जड़ों को खोखला कर दिया। ढाका से लगातार गंभीर हालात की खबरें आ रही थीं, लेकिन कमांडर-इन-चीफ निजी मौज-मस्ती में डूबे रहे।
‘जनरल रानी’ के नाम से मशहूर अकलीम अख्तर का कोई आधिकारिक पद नहीं था, फिर भी प्रमोशन से लेकर ठेकों तक में उनकी भूमिका बताई गई। मशहूर गायिका नूरजहां का नाम भी बाद में इन चर्चाओं से जुड़ा। कमीशन ने सीधे नाम नहीं लिए, लेकिन ये किस्से हार के प्रतीक बन गए।
नियाजी पर सबसे सख्त टिप्पणी
पूर्वी पाकिस्तान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी पर कमीशन सबसे ज्यादा कठोर रहा। उन पर अनैतिकता, भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनता को बढ़ावा देने के आरोप लगे। लाहौर के एक वेश्यालय से रिश्तों, रिश्वत लेने और पान की तस्करी तक की बातें रिपोर्ट में दर्ज थीं। सैनिकों के बीच यह भावना फैल गई थी कि जब कमांडर खुद नियम तोड़ रहा है, तो अनुशासन का पालन कौन करेगा?
नैतिक पतन से सैन्य पराजय तक
हमूदुर रहमान कमीशन की रिपोर्ट का निष्कर्ष साफ था- पाकिस्तान की 1971 की हार केवल हथियारों से नहीं हुई, बल्कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों की नैतिक विफलता ने सेना को अंदर से तोड़ दिया। शराब, औरतें और भ्रष्टाचार आखिरकार उस ऐतिहासिक आत्मसमर्पण की वजह बन गए, जिसने पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांट दिया।
