फ्रांस ने मांगी 'स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी' वापस, अमेरिका ने कहा – "हम न होते तो आप..."

punjabkesari.in Tuesday, Mar 18, 2025 - 01:52 PM (IST)

International Desk: अमेरिका और फ्रांस के बीच कूटनीतिक तनाव उस वक्त बढ़ गया जब एक फ्रांसीसी नेता ने स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी को वापस लौटाने की मांग कर दी। इस पर व्हाइट हाउस ने सख्त प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यदि अमेरिका न होता, तो आज फ्रांस के लोग जर्मन भाषा बोल रहे होते। फ्रांसीसी नेता की मांग पर व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने जवाब दिया,"बिल्कुल नहीं! मैं उस नेता को याद दिलाना चाहूंगी कि अगर अमेरिका ने हस्तक्षेप न किया होता, तो आज फ्रांस के लोग जर्मन बोल रहे होते। उन्हें हमारे महान देश का आभारी होना चाहिए।"अमेरिका का यह बयान द्वितीय विश्व युद्ध की ऐतिहासिक घटनाओं की ओर इशारा करता है । 1940 में नाजी जर्मनी ने फ्रांस पर कब्जा कर लिया था जिससे फ्रांस की सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा था। 1944 में अमेरिका और मित्र देशों की सेनाओं ने नॉर्मंडी लैंडिंग (D-Day) के जरिए फ्रांस को आजादी दिलाई।  इस सैन्य हस्तक्षेप के बिना, फ्रांस पर जर्मन शासन कायम रह सकता था।  

 

दोस्ती का प्रतीक  स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी 
स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी न्यूयॉर्क हार्बर में स्थित एक ऐतिहासिक मूर्ति है, जिसे 1886 में फ्रांस ने अमेरिका को उपहार में दिया था। इसकी कुल ऊंचाई  305 फुट है और यहलोकतंत्र और स्वतंत्रता का प्रतीक मानी जाती है।  इसे फ्रांसीसी मूर्तिकार फ्रेडरिक ऑगस्टे बार्थोल्डी ने डिजाइन किया था, जबकि आधार संरचना गुस्ताव आइफेल (आईफेल टॉवर के निर्माता) ने बनाई थी।यह मूर्ति  फ्रांस द्वारा स्थायी उपहार के रूप में दी गई थी इसलिए इसे वापस करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। अमेरिकी प्रशासन के बयान से साफ है कि वे इस मांग को पूरी तरह से खारिज कर चुके हैं। 

 

अमेरिका-फ्रांस संबंधों में बढ़ता तनाव 
हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप  के फिर से राष्ट्रपति चुनाव में मजबूत स्थिति और व्यापारिक टैरिफ में बढ़ोतरी के बाद अमेरिका और यूरोप के संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। अमेरिका ने  यूरोपीय आयातों पर नए शुल्क लगाए हैं, जिससे फ्रांस सहित कई देश नाराज हैं।  स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी की वापसी की मांग को राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।  स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी को लेकर अमेरिका और फ्रांस के बीच छिड़ी बहस मजाकिया लग सकती है, लेकिन यह दोनों देशों के बढ़ते कूटनीतिक और व्यापारिक मतभेदों को दर्शाती है। अमेरिका ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इस ऐतिहासिक प्रतीक को लौटाने के मूड में नहीं है।


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Content Writer

Tanuja

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