दलाई लामा के दौरे को लेकर चीन के एतराज से बेपरवाह भारत !

punjabkesari.in Monday, Apr 03, 2017 - 11:40 AM (IST)

बीजिंगः दलाई लामा के अरुणाचल दौरे को लेकर चीन के एतराज से बेपरवाह भारत ने कहा है कि चीन तवांग पर अपना स्टैंड बदल रहा है जो उसके मौजूदा रुख को कम विश्वसनीय बना रहा है। दलाई लामा ने शनिवार से अपने 10 दिवसीय नॉर्थ ईस्ट दौरे की शुरुआत की। इस दारौन वह अरुणाचल प्रदेश में कई जगहों पर जाएंगे। दलाई लामा की यह यात्रा पूरी तरह धार्मिक है। उनके दफ्तर के मुताबिक वह मंगलवार को लुमला में एक नए तारा मंदिर में अभिषेक करेंगे और इसके बाद राजधानी ईटानगर सहित दो अन्य जगहों पर शिक्षा और उपदेश देंगे।

वैसे तो इन सभी इलाकों पर चीन अपना दावा जताता रहा है, पर उसकी नाराजगी की मुख्य वजह तवांग मठ में दलाई लामा के कार्यक्रम को लेकर है। दलाई यहां 5-7 अप्रैल के बीच रुकने वाले हैं। दरअसल, दलाई लामा की यात्रा और उनके उपदेशों से इन बौद्ध इलाकों में उनका रुतबा और स्थापित होगा। ल्हासा के बाद तवांग मठ भारत के लिए काफी अहमियत रखता है। दलाई लामा यहां नए मंदिरों की स्थापना करने वाले हैं और दीक्षा समारोह भी आयोजित करने वाले हैं। ऐसे में यहां उनका दबदबा बढ़ने से भारत का अधिकार यहां और पुख्ता होगा। 

चीन में भारत के राजदूत रहे अशोक कांठा के मुताबिक भारत ने अरुणाचल प्रदेश पर चीन के दावे को कभी स्वीकार ही नहीं किया है। अधिकारियों का कहना है कि बीते सालों में तवांग पर चीन ने अपना रुख इतनी बार और इस हद तक बदला है कि उसके मौजूदा स्टैंड में विश्वसनीयता ही नहीं रह गई है। 1962 की लड़ाई में भारत को हराने के बाद चीन ने मैकमोहन रेखा से पीछे हटते हुए अरुणाचल और तवांग को भारत के अधिकार में छोड़ दिया था। हालांकि अब चीन कहता है कि वह मैकमोहन रेखा को नहीं मानता।

भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई के बीच 1960 में हुई बातचीत और फिर 1985 में डेंग श्याओपिंग के साथ बातचीत में तवांग का जिक्र तक नहीं हुआ था। चीन मामलों के जानकार जयवेद रानाडे कहते हैं कि आधिकारिक तौर पर तवांग का जिक्र पहली बार 2005 में हुआ। उन्होंने कहा, '2007 में चीन ने मोनयुल, लोअर जोयुल और जोयुल पर अपना अधिकार जताना शुरू किया।' 2006 में भारत में चीन के पूर्व राजदूत सन यूशी ने मार्गदर्शक सिद्धांतों को तय करने के दौरान 2005 के समझौते का हवाला देते हुए, रिहाइशी इलाकों को उसमें शामिल न किए जाने की सबसे जरूरी बात को अनदेखा कर दिया।
 


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