केन्या में रुतो बने विजेता लेकिन नतीजों के बाद फैली अशांति

punjabkesari.in Tuesday, Aug 16, 2022 - 01:57 PM (IST)

केन्या में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आने के बाद अशांति है. निवर्तमान उप राष्ट्रपति रहे विलियम रुतो को चुनाव में मामूली अंतर से विजेता घोषित किया गया है. उनके प्रतिद्वंद्वी रायला ओडिंगा को पांचवी बार शिकस्त मिली है.केन्या में 9 अगस्त को हुये राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आने से पहले ही देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये और नतीजों के एलान के बाद भी लोगों का गुस्सा शांत नहीं हुआ. चुनाव आयोग खुद ही नतीजों पर बंटा हुआ है और ओडिंगा के मजबूत असर वाले इलाकों में सोमवार को पत्थरबाजी और हिंसा हुई. हालांकि पिछले चुनावों की तुलना में इस बार चुनावी प्रक्रिया शांति से पूरी हुई लेकिन नतीजों के बाद केन्या एक बार फिर अशांति देख रहा है. चुनाव में प्रतिद्वंद्वी ओडिंगा और रुतो ने पहले शपथ ली थी कि वे विवादों को सड़कों की बजाय कोर्ट में सुलझायेंगे. हालांकि 77 साल के ओडिंगा के समर्थकों को रोकना संभव नहीं हो सका. "बाबा" (स्वाहिली में इसका मतलब है पिता) के नाम से मशहूर ओडिंका के समर्थकों ने किसुमु की सड़कों को जाम कर दिया जिसके बाद उनकी पुलिस से झड़प हुई और उन्हें तितर-बितर करने के लिये आंसू गैस के गोले दागे गये. नैरोबी के झुग्गी झोपड़ी वाले इलाकों में भी सोमवार को प्रदर्शन हुये. इन इलाकों में ओडिंगा के काफी समर्थक हैं. वोटों की गिनती के दौरान दोनों प्रतिद्वंद्वियों के बीच कांटे की टक्कर आखिर तक बनी रही. इंडिपेंडेंट इलेक्टोरल एंड बाउंड्रीज कमीशन, आईईबीसी के चेयरमैन वाफुला चेबुकाटी के मुताबिक रुतो को 50.49 जबकि ओडिंगा को 48.85 प्रतिशत वोट मिले. चुनाव आयोग विभाजित केन्या के लोग ओडिंगा की राष्ट्रपति बनने की पांचवीं कोशिश नाकाम होने के बाद उनकी प्रतिक्रिया जानना चाहते हैं लेकिन उससे पहले आईईबीसी के सात में से चार आयुक्तों ने पहले ही नतीजे खारिज कर दिये और एक आयुक्त ने तो चुनाव प्रक्रिया को ही "अपारदर्शी" बताया. इस विवाद से आईईबीसी की छवि और खराब होगी. इससे पहले केन्या में 2017 के चुनाव के वक्त भी इसे कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी थी. हालांकि 2017 में भी चुनाव आयोग के प्रमुख रहे चेबुकाती ने जोर दे कर कहा है कि उन्होंने "दबाव और उत्पीड़न" के बावजूद कानून के मुताबिक अपना कर्तव्य पूरा किया है. चुनाव में विजेता घोषित किये गये 55 साल के रुतो ने वादा किया है कि वो "सभी नेताओं" का साथ मिल कर काम करेंगे और "बदले की भावना" के लिये कोई जगह नहीं होगी. बावजूद इसके सारी नजरें अगले कुछ दिनों तक ओडिंगा पर टिकी रहेंगी. विश्लेषक चेतावनी दे रहे हैं कि किसुमु और नैरोबी के कुछ इलाकों में विरोध प्रदर्शन जारी रह सकते हैं. युरेसिया ग्रुप कंसल्टेंसी ने एक नोट जारी कर कहा है, "अंतिम नतीजों की निकटता ने अव्यवस्था की संभावना को निश्चित रूप से बढ़ा दिया है हालांकि व्यापक रूप से अशांति रहने के आसार कम हैं." करीब 5 करोड़ की आबादी वाले देश में लोग पहले से ही बढ़ती महंगाई, भारी सूखा, भ्रष्टाचार और राजनीतिक नेतृत्व की ओर से मोहभंग की स्थिति का सामना कर रहे हैं. कई अफ्रीकी नेताओं ने रुतो को शुभकामनायें दी हैं. हालांकि अमेरिकी दूतावास ने केन्या के मतदाताओं और आईईबीसी को सराहा है और राजनीतिक प्रतिद्वद्वियों से चुनाव को लेकर अपने विवाद शांति से सुलझाने की अपील की है. राजनीति में वंशवाद रुतो बहुत निचले तबके से आ कर बड़े कारोबारी बने. पिछली सरकार में वो उप राष्ट्रपति थे लेकिन निवर्तमान राष्ट्रपति ने इस चुनाव में उनकी बजाय ओडिंगा को समर्थन देने की घोषणा कर दी. रुतो ने इस चुनाव को आम लोग बनाम वंशवाद के तौर पर दिखाने की कोशिश की. 1963 में ब्रिटेन से आजाद होने के बाद ही वंशवादी राजनेताओं का केन्या के शासन में दबदबा रहा है. चुनाव के नतीजों को सुप्रीम कोर्ट में सात दिनों के भीतर चुनौती दी जा सकती है और 14 दिनों के भीतर अदालत को इस पर फैसला देना होता है. अगर इस नतीजे को अदालत खारिज कर देती है तो 60 दिनों के भीतर दोबारा मतदान कराना होगा. अगर अदालत में याचिका दायर नहीं होती है तो दो हफ्ते के भीतर रुतो केन्या की आजादी के बाद पांचवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले लेंगे. चुनाव में अशांति होती रही है केन्या में 2002 से ही कोई भी राष्ट्रपति चुनाव ऐसा नहीं हुआ जो विवादित ना रहा हो. इस बार भी यह लगभग तय है कि ओडिंगा नतीजों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटायेंगे. उनकी सहयोगी मार्था कारुआ ने तो ट्वीटर पर कह भी दिया है, "यह पूरा नहीं हुआ है जब तक पूरा नहीं होगा." अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव रद्द कर दिया था तब ओडिंगा ने नतीजों को खारिज किया था. चुनाव के बाद हुई हिंसा में तब दर्जनों लोगों की मौत हुई थी. केन्या के इतिहास में सबसे भयानक चुनावी हिंसा 2007 में हुई थी जब प्रतिद्वंद्वी कबीलों के संघर्ष में 1,100 से ज्यादा लोगों की जान गई थी. एनआर/आरपी (एएफपी, एपी)

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