1984 सिख विरोधी हिंसा को ''नरसंहार'' मान्यता देने का एनडीपी प्रस्ताव कनाडा संसदीय समिति में विफल
punjabkesari.in Friday, Dec 06, 2024 - 04:28 PM (IST)
इंटरनॅशनल डेस्क। कनाडा की संसद में 1984 में भारत में हुए सिखों के खिलाफ हिंसा को "नरसंहार" के रूप में मान्यता देने के लिए लाया गया प्रस्ताव गुरुवार को एक संसदीय समिति द्वारा पारित करने में विफल रहा। यह प्रस्ताव न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के नेता जगमीत सिंह द्वारा पेश किया गया था।
प्रस्ताव का उद्देश्य:
एनडीपी नेता जगमीत सिंह ने हाउस ऑफ कॉमन्स की विदेशी मामलों और अंतर्राष्ट्रीय विकास की स्थायी समिति में यह प्रस्ताव रखा था। उनका कहना था कि यह प्रस्ताव 1984 में भारत में सिखों के खिलाफ हुई हिंसा को नरसंहार के रूप में मान्यता देने के लिए था और भारत सरकार से इस हिंसा के जिम्मेदार लोगों को न्याय के कटघरे में लाने की अपील करता था।
उन्होंने इस प्रस्ताव का नोटिस इस साल 19 जून को दिया था। सिंह ने इस हिंसा को याद करते हुए कहा कि यह प्रस्ताव भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़की हिंसा के पीड़ितों के साथ "एकजुटता" का प्रतीक होगा।
संसदीय समिति का निर्णय:
हालांकि कनाडा की सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी के सांसद अली एहसासी की अध्यक्षता वाली समिति ने इस प्रस्ताव पर बहस स्थगित करने का निर्णय लिया। समिति के नौ सदस्यों ने स्थगन के पक्ष में मतदान किया, जबकि दो ने विरोध किया। इसका मतलब था कि 1984 के सिख नरसंहार को मान्यता देने वाला प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।
कनाडा सरकार का रुख:
कनाडा के विदेश मामलों के संसदीय सचिव रॉब ओलिपंट ने इस घटना को "दुखद" और "भयानक" बताया। हालांकि उन्होंने इस मुद्दे पर संसद में चर्चा करने के दौरान प्रक्रियागत सवाल उठाए और कहा कि अन्य विकल्पों पर भी विचार किया जा सकता है।
जगमीत सिंह का बयान:
इस निर्णय के बाद जगमीत सिंह ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा, "आज विदेशी मामलों की समिति में उदारवादियों और परंपरावादियों ने सिख नरसंहार को मान्यता देने के प्रस्ताव को रोकने के लिए मिलकर काम किया। वे इसके बारे में महीनों से जानते थे। वे समुदाय की चिंताओं को सुनने में समय बिता सकते थे। इसके बजाय, उन्होंने न्याय से मुँह मोड़ लिया।"
एनडीपी का अभियान:
एनडीपी ने इस साल एक अभियान शुरू किया था जिसमें कहा गया था कि पार्टी 1984 के सिख नरसंहार की आधिकारिक मान्यता की मांग करेगी। इस अभियान के तहत, पार्टी ने घोषणा की थी कि 1984 के सिख नरसंहार की 40वीं वर्षगांठ पर संसद में इसे मान्यता देने का प्रयास किया जाएगा।
पूर्व सांसद का दुख:
2010 में लिबरल पार्टी के सांसद सुख धालीवाल ने भी इसी तरह का प्रस्ताव संसद में पेश किया था लेकिन वह भी पारित नहीं हो सका था। गुरुवार को सत्ताधारी पार्टी के मौजूदा सांसद सुख धालीवाल ने सोशल मीडिया पर इस घटना पर गहरा दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा, "मुझे गहरा दुख है कि बहस स्थगित कर दी गई। मैं सिख इतिहास के इस दुखद अध्याय के दौरान खोए गए लोगों के सम्मान और वकालत के लिए प्रतिबद्ध हूं।"
वहीं इस प्रस्ताव के पारित न होने से सिख समुदाय और उनके समर्थक निराश हैं। 1984 के सिख नरसंहार को लेकर यह मुद्दा कनाडा में लंबे समय से उठता रहा है और इस मामले में मान्यता की मांग करने वाली कई कोशिशें अब तक असफल रही हैं।