Movie Review: पौराणिकता-आधुनिकता के बीच उलझी हुई है फिल्म Kalki 2898 AD,यहां पढ़ें रिव्यू

punjabkesari.in Thursday, Jun 27, 2024 - 04:03 PM (IST)

फिल्म- 'कल्कि  2898 एडी' (Kalki 2898 AD)
स्टारकास्ट : अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) , कमल हसन (Kamal Haasan), प्रभास (Prabhas), दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone), दिशा पटानी (Disha Patani)
कहानीकार  एवं निर्देशक - नाग आश्विन (Nag Ashwin)
निर्माता - सी. आश्विन दत्त   C. Ashwin Dutt
रेटिंग : 2.5*

 

Kalki 2898 AD: अगर आपने आदिपुरुष पूरी देखी है तो शायद 'कल्कि 2898 एडी' को कुछ हद तक झेल लें। फिल्म में इतने ट्विस्ट एंड टर्न्स कि आप स्टोरीलाइन समझ ही नहीं पाओगे। रिलीज से पहले ही अत्यधिक हाइप क्रिएट करने वाली फिल्म 'कल्कि 2898 एडी' रिलीज के पहले दिन की ओपनिंग पर ही औंधे मुंह गिर गई। फिल्म के फर्स्ट हाफ में आपके हाथ कुछ नहीं लगने वाला। शुरू के आधा घंटा किसी भी कलाकार की फिल्म में एंट्री तक नहीं दिखाई गयी। संक्षेप में कहें तो फिल्म ने पहले दिन ही लाखों दर्शकों को निराश कर दिया जिन्होंने बड़े उत्साह से फिल्म की एडवांस बुकिंग करवा रखी थी। बड़े तो बड़े फिल्म तो बच्चों के लायक भी नहीं है। कई दर्शक तो इस इंतजार में ही बैठे रहे की अब कुछ अच्छा होगा, लेकिन उनके सब्र का फल भी बहुत ही कड़वा साबित हुआ। फिल्म में न तो रोमांस है और एक्शन भी ऐसा है की बच्चे भी पसंद न करें। कुछ ज्यादा साबित करने की कोशिश में यह फिल्म कुछ भी कह पाने में असफल रही है। दर्शकों के लिए ये फिल्म किसी टार्चर से कम नहीं है।

 

 

कहानी
युद्ध की तबाही के बाद  सिर्फ काशी ही एकमात्र ऐसा शहर बचा है जो अस्तित्व में है और जिस पर गॉड किंग सुप्रीम यसकिन का शासन है और यहाँ के लोग नई- नई तकनीक का ईजाद करके जिंदगी जीते हैं। चारों ओर  रेत और धूल और इन विपरीत परिस्थियों में तकनीक के दम पर जिंदगी जीता हुआ इंसान। यहाँ यसकिन भैरव को अतीत की कुछ घटनाओं को रोकने के लिए भेजता है  जहाँ उसकी मुलाक़ात अश्वत्थामा से होती है जो इस धरती पर न जाने कब से मोक्ष के लिए भटक रहे हैं। लेकिन उन्हें मुक्ति तब ही मिलेगी जब विष्णु जी कल्कि के अवतार में आएंगे ओर वे सातों चिरंजीवियों के साथ मिलकर बुरे लोगों को ख़तम करके मोक्ष को प्राप्त  करेंगे। क्या बुराइयों को ख़तम करने के लिए कल्कि अवतार लेंगे। क्या अश्वत्थामा मोक्ष को प्राप्त कर सकेंगे। बुरे लोगों का नाश भैरव कैसे करेंगे यह सब देखने के लिए आपको यह फिल्म देखनी पड़ेगी जो 27 जून को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। पौरणिक कथा के साथ- कल्पना का समवेश करके इसमें से रोमांच का तत्व ख़त्म कर दिया गया है । कहानी के जरिये प्रतीकात्मक बात भी कहने का भी प्रयास किया गया है जो ज्ञानी व्यक्ति ही डिकोड कर सकते हैं। इसलिए मनोरंजन सिनेमा देखने वालों को यह फिल्म मायूस करती है। अगर सिर्फ पौराणिक कथा पर ही आधारित होती तो बेहतर होती।  किरदारों की वेशभूषा और बोलचाल की भाषा भी निम्न स्तर की है। बैकग्राउंड इतना डार्क दिखाया गया है कि दर्शक बोर हो जाये, ऊपर  से कलकारों के चेहरे भी काफी डार्क दिखाए गए हैं।  

 

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एक्टिंग
कलकारों में की दिग्गज कलाकार शामिल हैं।  जहाँ तक प्रभास के किरदार का सवाल है, ऐसा लगता है की उसे उसकी स्टार वैल्यू को देखते हुए फिल्म में जबरदस्ती ठूंसा गया है, उनसे इस तरह की एक्टिंग की अपेक्षा नहीं थी -यहाँ उन्होंने निराश ही किया है। उनकी स्टारडम का मजाक बना कर रख दिया है। आदिपुरुष के बाद प्रभास की यह दूसरी बड़े बजट की फिल्म है जिसने उनके स्टारडम पर सवालिया निशान लगा दिया है। दूसरी ओर अगर कमल हसन और अमिताभ की बात करें तो ये अनुभवी कलाकार हैं  और जो भी किरदार इन्हें दिया जाता है उसमें पूरी तरह घुस कर एक्टिंग करते हैं। इन कलाकारों ने अपने अपने किरदार अच्छी तरह से निभाए हैं। यहाँ अमिताभ ने अपने किरदार अश्व्थामा के साथ पूरा न्याय  किया है। दीपका पादुकोण ने भी शानदार एक्टिंग की  है और वे अच्छी लगी हैं और फिल्म के ग्राफ़िक्स और साउंड पर अच्छा काम किया गया है।

 

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निर्देशक
निर्देशक नाग आश्विन ने एक ऐसी कहानी की रचना की है जो दर्शकों का दिमाग घुमा देती है। कहानी न तो पूरी तरह पौराणिक है और न ही पूरी तरह आधुनिक। बड़े कलाकारों  की आभा में कहानी कहीं खो सी गयी प्रतीत होती है। हालाँकि नाग आश्विन अनुभवी निर्देशक हैं लेकिन  बड़े पैमाने पर फिल्म बनाने के चक्कर में पटकथा ढीली पड़ गयी और वीएफएक्स उस पर हावी हो गए।

 

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गीत संगीत
फिल्म के गीत कुमार द्वारा लिखे गए हैं जिन्हे अपनी आवाज़ दी है -  दिलजीत दोसांझ , विजय नारायण , संतोष नारायण औऱ गौतम भरद्वाज ने। संगीत संतोष नारायण ने दिया है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक बहुत ही उबाऊ है। भव्य पैमाने पर बनाई गयी इस  फिल्म में एक मुख्य तत्व की कमी साफ़ दिखाई देती है वो है मनोरंजन और यही वो तत्व है जो दर्शक को सिनेमा तक खींच कर ले जाता है। इस फिल्म को देखकर दर्शकों को इस फैक्टर की कमी दिखाई देगी और निराश करेगी।


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Content Editor

Jyotsna Rawat

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