शिक्षा के भगवाकरण की कोशिश में मोदी सरकार

punjabkesari.in Friday, Jun 29, 2018 - 02:34 PM (IST)

जालंधरः मोदी सरकार 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर से सत्ता हासिल करने के मुद्दे को लेकर शिक्षा,सामाजिक तथा आर्थिक कार्यक्रमों में बड़े बदलाव कर रही है ताकि उन्हें लोगों का सहयोग मिल सके लेकिन विपक्षी दलों का कहना है कि पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार ने अपने चार वर्षों में कई संस्थाओं का नाम बदलकर अपने ही लोगों को भर्ती किया है।  मोदी सरकार के अब शिक्षा क्षेत्र में गुणवत्ता लाने के मकसद से 61 वर्ष पुराने यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) को खत्म करने तथा नया नियामक या बोर्ड स्थापित करने का फैसला लिया जिसके बाद फिर से शिक्षा के भगवाकरण का मुद्दा खड़ा हो गया है।

 

यूजीसी देश में विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षण संस्थानों का संचालन करता है। मोदी सरकार के इस फैसले को लेकर विपक्ष ही नहीं शिक्षाविदों ने भी कहा है कि ये शिक्षा के भगवाकरण का प्रयास है। इस नियामक यो बोर्ड में भाजपा अपने उन शिक्षाविदों को भर्ती करने की केशिश करेगा जो सरकार के हाथों की कठपुतली बनकर काम करेंगे।

 

 1.प्रिंसीपल डीएवी कालेज नकोदर डा अनूप वत्स का कहना है कि काफी समय से यूजीसी को बदलने की बात चल रही है इसे शिक्षा का भगवाकरण नहीं कहा जा सकता। अभी मसौदा तैयार हुआ जब सामने आएगा तब पता चलेगा कि इसमें क्या है। अगर इसमें आर.एस.एस. का एजैंडा शामिल किया गया तब शायद ये सही साबित न हो। उन्होंने कहा कि पहले भी सरकार ने पहले भी प्लानिंग कमीशन को बदल कर नीति आयोग का गठन किया था लेकिन उसके काम में कोई फर्क नहीं पड़ा वे उसी तरह चल रहा है।

 

2.प्रिंसीपल डा किरण अरोड़ा-एसडी कालेज जालंधर का कहना है कि पिछले 2 साल से बात चल रही है लेकिन सरकार को यूजीसी को नहीं बदलना चाहिए बलकि ऐसी पॉलिसियों को बदल दिया जाए जो छात्रों के भविष्य में रोड़ा बनती हैं। उन्होंने कहा कि नए आयोग में सरकार के लोग ज्यादा होंगे जिस कारण राजनीतिक दखल अंदाजी बढे़गी। उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में राजनीतिक दखलअंदाजी नहीं होनी चाहिए।
 
3.डा सुचरिता शर्मा-प्रिंसी एपीजे कालेज जालंधर का कहना है कि यूजीसी अच्छी साबित हुई है। कालेजों की मयार को उंचा उठाने में यूजीसी का पूरा योगदान रहा है लेकिन सरकार का जब नया आयोग आएगा उसमें क्या है उसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है।

 

क्या है आरएसएस का एजैंडा
एक लंबे समय से संघ, शिक्षा के क्षेत्र में काम करता आ रहा है। संघ की राष्ट्रवाद की अवधारणा, भारतीय राष्ट्रवाद की अवधारणा से एकदम भिन्न है और अपनी इस अवधारणा का प्रचार-प्रसार वह सरस्वती शिशु मंदिरों, एकल स्कूलों व शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए उसके द्वारा स्थापित विद्याभारती आदि संस्थाएं करती रही हैं। संघ ने देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में शीर्ष पदों पर अपने समर्थकों की नियुक्ति का अभियान
चलाया हुआ है।

 

भाजपा के नेतृत्व वाली पिछली एनडीए सरकार ने शिक्षा के भगवाकरण की प्रक्रिया शुरू की थी। उसने स्कूली पाठ्यक्रमों में परिवर्तन किए थे और पौरोहित्य व कर्मकांड जैसे पाठ्यक्रम प्रारंभ किए थे। सन 2014 में, भाजपा के सत्ता में आने के बाद से, प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक भारतीय इतिहास को देखने के संघ के तरीके को विद्यार्थियों पर थोपा जा रहा है। आरएसएस के नेता केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय से लगातार यह मांग कर रहे हैं कि शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन किया जाए। पाठ्यक्रमों व शिक्षा नीति में जो परिवर्तन किए जा रहे हैं, उनका उद्देश्य शिक्षा को वैश्वीकरण व निजीकरण की आर्थिक नीतियों और मनुवाद के हिन्दुत्वादी एजेंडे के अनुरूप बनाना है।

 

जिस तरह की शिक्षा व्यवस्था लागू की जा रही है, उसका अंतिम लक्ष्य आने वाली पीढ़ियों के सोचने के तरीके में बदलाव लाना है। इसका उद्देश्य ब्राह्मणवादी सोच को समाज पर लादना, वैज्ञानिक समझ को कमज़ोर करना और मध्यकालीन, रूढ़ीवादी मानसिकता को बढ़ावा देना है।

 
क्या है एचईसीआई यानी हायर एजुकेशन कमीशन

उच्चतर शिक्षा संस्थानों के रेगुलेशन के लिए अब एचईसीआई यानी हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया बनेगा। इसके लिए साल 1951 का यूजीसी एक्ट खत्म करके एचईसीआई एक्ट, 2018 लागू किया जाएगा। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बुधवार को नए एक्ट का ड्राफ्ट जारी किया। नए आयोग को दोयम दर्जे के और फर्जी शिक्षण संस्थान बंद करवाने की शक्तियां भी दी जाएंगी। इसका आदेश नहीं मानने वाले संस्थानों के प्रबंधन को तीन साल तक की जेल हो सकेगी।

 

कई कमेटियां यूजीसी के तौर-तरीकों को रोड़े अटकाने और घुटनभरा तक बता चुकी हैं। उच्चतर शिक्षा को लाल फीताशाही और सुस्ती से मुक्ति दिलाने के लिए प्रो. यशपाल कमेटी, नेशनल नॉलेज कमीशन और हरि गौतम कमेटी ने यूजीसी को खत्म कर सिंगल एजुकेशन रेगुलेटर बनाने की की सिफारिश की थी। एचआरडी मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार यूजीसी सिर्फ ग्रांट्स जारी करने में ही उलझा रहता है। संस्थानों की मेंटरिंग, रिसर्च पर फोकस और गुणवत्ता के मानकों पर ध्यान नहीं दे पाता। एचईसीआई सिर्फ एकेडमिक मामलों पर फोकस करेगा। आर्थिक अनुदान के मामले मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में रहेंगे।

 

नया आयोग क्या करेगा?

कोर्सेज का लर्निंग आउटकम तय करेगा। टीचिंग, असेसमेंट, रिसर्च से जुड़े पहलुओं के मानक बनाएगा। ज्यादा लचीलेपन और स्वायत्तता के साथ संस्थान खोलने और बंद करने और अहम पदों पर नियुक्तियों के मानक तय करेगा। फैकल्टी को परफॉर्मेंस के अनुसार इंसेंटिव, फीस और दाखिलों के नियम भी बनाएगा। हर साल उच्चतर शिक्षा संस्थानों की परफॉर्मेंस का मूल्यांकन करेगा। जो संस्थान मानकों पर खरे नहीं उतरेंगे उनकी मेंटरिंग होगी। मानकों का पालन नहीं करने वाले संस्थानों को बंद करने का आदेश दे सकेगा।

 

नए आयोग के आदेश यूजीसी से कैसे अलग होंगे?
एकेडमिक गुणवत्ता लागू करवाने की शक्तियां दी गई हैं। फर्जी संस्थानों से जुड़े सदस्यों के खिलाफ भी कार्रवाई कर सकता है। इसमें तीन साल की जेल और जुर्माना शामिल है। यूजीसी सिर्फ फर्जी संस्थानों की सूची जारी करता है,कोई एक्शन नहीं ले सकता। पहले एआईसीटीई, एनसीटीई और यूजीसी को मिलाकर एक रेगुलेटर बनाने की योजना थी। लेकिन तकनीकी बिंदुओं पर पेच फंस रहे थे। इसलिए पहले उच्चतर शिक्षा की क्वालिटी सुधारने पर फोकस किया गया। आगे एचईसीआई की तर्ज पर एआईसीटीई और एनसीटीई में भी बदलाव किए जाएंगे।


 

सरकार ने मांगे सुझाव
ड्राफ्ट के कानून में बदलने के बाद ही आयोग अस्तित्व में आएगा। सरकार ने अभी 7 जुलाई तक ड्राफ्ट पर टिप्पणियां और सुझाव मांगे हैं। मोदी सरकार का कार्यकाल एक साल से भी कम बचा है। ऐसे में बिल जल्दी पारित करवाने के प्रयास होंगे।  मानसून सत्र में पेश किया जा सकता है। हालांकि, राज्यसभा में इसे पास करवाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती रहेगी।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Sonia Goswami

Recommended News

Related News