PIX: देश ही नहीं विदेश में भी हैं मां के नौ शक्तिपीठ

punjabkesari.in Wednesday, Feb 10, 2016 - 10:15 AM (IST)

पूर्व काल में मुनियों ने एकत्र हो कर यज्ञ रचाया जिसमें ब्रह्म, विष्णु और शिव अपने परिवार सहित शामिल हुए। इस मौके पर देवता व समस्त ऋषि-मुनि अपने विचार प्रकट कर रहे थे की प्रजापतियों के स्वामी दक्ष वहां आ पहुंचे। उन्होंने ब्रह्म जी को प्रणाम कर आसन ग्रहण किया।   

सभी ऋषियों-मुनियों ने दक्ष का पूजन किया लेकिन शिव अपने स्थान पर बैठे रहे। उन्होंने अपने ससुर को प्रणाम तक नहीं किया। दक्ष इसे अपना अपमान समझ कर क्रोधित होकर अपने दामाद शिव को भला-बुरा कहने लगे व समस्त सभा को संबोधित करते हुए बोले, मैं इसे यश से बहिष्कृत करता हूं व अब यह देवताओं के साथ यज्ञ में भाग नहीं ले सकेगा। 

यह सुन कर नन्दीश्वर गुस्सा हो गए व् उन्होंने दक्ष को शाप दे दिया जिसे शिव ने वापिस ले लिया और नन्दीश्वर को शांत किया। भगवान शिव व दक्ष का आपसी विरोध दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया व् एक दिन दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमें इर्ष्या के चलते शिव और उसके भक्तों को नहीं बुलाया। जिसमें ब्रह्म, विष्णु सहित सभी देवताओं ने भाग लिया लेकिन शिव को नहीं बुलाने के पीछे दक्ष ने अलग-अलग तर्क दिए व उन्हें भूतों का राजा कहा। 

 उसी समय दधिची वहां आए और शिव को वहां न देख सब से कारण पूछा तो दक्ष ने कहा की न तो मैंने बेटी को बुलाया है न ही शिव को यह तो ब्रह्म जी के कहने पर मैंने अपनी बेटी उसको दे दी नहीं तो उस भूतों-प्रेतों के स्वामी को कौन पूछता है? दधिची वहां से यह सब सुन चले गए लेकिन जो होना होता है हो कर रहता है इतने में वहां सती आ गई। अपने पति को न देख आग बबूला हो गई। उसका गुस्सा देख दक्ष ने उसे भी वहां से जाने को कह दिया। भगवान शिव के बारे में खरी-खोटी सुन सती वहां से गई नहीं और उत्तर दिशा की और मुख करके शिव का ध्यान करके अपना शरीर भस्म कर डाला। 

 सब भयभीत हो गए शंकर जी की समाधी खुल गई शिव ने अपनी एक जटा धरती पर मार कर महाकाली व वीरभद्र महाकाल उत्पन्न कर दक्ष का वध करने का हुक्म दिया। उन्होंने दक्ष का वध कर यज्ञ को नष्ट कर दिया व भोलेनाथ वहां से सती का जला हुआ शरीर लेकर चले तो तीनों लोकों में हाहाकार मच गया तब शिव का गुस्सा शांत करने का जिम्मा श्रीविष्णु को सौंपा गया। श्रीविष्णु ने अपने चक्र से सती के अंगों को काट-काट कर धरती को हा-हा कार से बचाया। सती के अंग जहां-जहां गिरे वो स्थान शक्तिपीठ बने। 

गंडकी (नेपाल) : गंडकी नदी के उद्गम पर स्थित मंदिर में माता सती का दांया गाल गिरा था। 

गुहेश्वरी (नेपाल) : गुहेश्वरी मंदिर में माता के दोनों घुटने गिरे थे। 

हिंगलाज देवी (पाकिस्तान) : यहां माता सती का सिर गिरा था। 

लंका (श्रीलंका) : यहां माता सती की दाएं पैर की पायल गिरी थी।

मानस (तिब्बत) : इस स्थान पर देवी की दाईं हथेली गिरी थी। 

सुगंध (बांग्लादेश) : यहां देवी की नसिका गिरी थी। 

करतोया तट (बांग्लादेश) : यहां माता सती की बाएं पैर की पायल गिरी थी। 

भवानी मंदिर (बांगलादेश) : इस स्थान पर देवी सती की दाईं भुजा गिरी थी। 

यशोर (बांग्लादेश) : जैसोर शहर में माता सती की बाईं हथेली गिरी थी।  


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