गया में पिंडदान करने से मिलती है पितरों को मोक्ष की प्राप्ति

punjabkesari.in Friday, Sep 16, 2016 - 10:16 AM (IST)

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से इसी महीने की अमावस्या तक के 15 दिनों को पितृपक्ष कहा जाता है। पितरों के लिए श्राद्ध करना एक महान कार्य है। माना जाता है कि मनुष्य पर देव ऋण, गुरु ऋण अौर पितृ ऋण होता है। माता-पिता की सेवा करके मरणोपरांत पितृपक्ष में पूर्ण श्रद्धा से श्राद करने पर इस ऋण से मुक्ति मिलती है।  


माना जाता है कि पिंडदान करने से मरने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैसे तो हरिद्वार, गंगासागर, कुरूक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर आदि कई स्थानों में विधिवत श्राद करने से भगवान पितरों को मोक्ष प्रदान करते हैं, लेकिन गया में श्राद करने की महिमा का गुणगान स्वयं श्रीराम ने भी किया है। कहा जाता है कि श्रीराम अौर माता सीता ने भी राजा दशरथ की आत्मिक शांति के लिए यहां पिंडदान किया था।


कहा जाता है कि गया में विधिवत श्राद करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है अौर आने वाली सात पीढ़ियों का उद्धार होता है। आचार्यों के अनुसार परिवार में से कोई एक व्यक्ति गया में पितरों का श्राद अौर पिंडदान करता है। गरुड़ पुराण में लिखा है कि गया जाने के लिए घर से निकले एक-एक कदम पितरों को स्वर्ग की अोर ले जाने के लिए सीढ़ी की भांति बनते हैं।


गया को विष्णु का नगर माना जाता है । यह मोक्ष की भूमि कहलाती है। विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इन सभी बातों का वर्णन है। विष्णु पुराण के अनुसार गया में पूर्ण श्रद्धा से पितरों का श्राद करने से उन्हें मोक्ष अौर स्वर्ग में स्थान मिलता है। माना जाता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के स्वरूप में उपस्थित हैं इसलिए इसे पितृ तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। 


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भस्मासुर के वंशज गयासुर दैत्य ने ब्रह्माजी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर वरदान मांगा कि उसकी देह देवताअों की भांति पवित्र हो जाए अौर उसके दर्शन से लोगों को पापों से मुक्ति मिल जाए। वरदान मिलने के पश्चात स्वर्ग में जन्संख्या बढ़ने लगी अौर लोग अधिक पाप करने लगे। इन पापों से मुक्ति के लिए वे गयासुर के दर्शन कर लेते थे।


इस समस्या से बचने के लिए देवताअों ने गयासुर से कहा कि उन्हें यज्ञ के लिए पवित्र स्थान दें। गयासुर ने देवताअों को यज्ञ के लिए अपना शरीर दे दिया। गया जब लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। यहीं पाच कोस का स्थान आगे चलकर गया के नाम से जाना जाने लगा। गया के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा कम नहीं हुई इसलिए उसने देवताअों से वरदान की मांग की कि यह स्थान लोगों के लिए पाप मुक्ति वाला बना रहे। जो लोग यहां पूर्ण श्रद्धा से पिंडदान करता है, उनके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। 


गया में पहले विभिन्न नामों की  360 वेदियां थी। जहां पर पिंडदान किया जाता था। इनमें से 48 वेदियां ही शेष बची हैं। वर्तमान समय में लोग इन्हीं वेदियों पर पितरों का पिंडदान करते हैं। पितरों के पिंडदान के लिए यहां देश से ही नहीं अपितु विदेशों से भी लोग आते हैं।


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