भगवान शिव से जुड़ी ये रोचक बातें नहीं जानते होंगे आप !

punjabkesari.in Wednesday, Jul 17, 2019 - 10:00 AM (IST)

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आज से भगवान शिव के प्रिय सावन माह की शुरुआत हो गई है। सावन शिव को प्रिय है क्योंकि ये शीतलता प्रदान करता है। हर वो चीज जो शीतलता दे, वो शिव को प्रिय है। इस पूरे मास में भगवान शंकर की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि जो व्यक्ति इस पूरे माह भगवान की पूजा करता है, उसे भोलेनाथ मनचाहा वरदान देते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि अगर कुंआरी कन्या सावन के महीने में शिवलिंग का अभिषेक करती है तो उसे मनचाहा वर प्राप्त होता है। आज हम बात करेंगे भगवान को जल चढ़ाने की परंपरा के बारे में कि ये कब और कैसे शुरू हुई। 
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भागवत महापुराण में कथा है समुद्र मंथन की, जिसमें देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र को मथा तो सबसे पहले हलाहल विष निकला। विष इतना विनाशक था कि सारी सृष्टि में हाहाकार मच गया। भगवान विष्णु ने देवताओं को सलाह दी, जाकर भोलेनाथ को मनाएं, वो ही इस विष को पी सकते हैं। जब भगवान शिव ने विष पिया तो उसे गले में अटकाकर रख लिया, जिससे कि पूरा कंठ नीला पड़ गया और तब शिव का एक नाम पड़ा नीलकंठ। 
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हलाहल से उत्पन्न हो रही अग्नि इतनी तेज थी कि शिव का शरीर पर इसका असर होने लगा। भगवान को ठंडक मिले इसके लिए उन पर जल चढ़ाया गया और जिससे शिव जी प्रसन्न हुए और तब से शिव पर जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई। चलिए आगे जानते हैं भोलेनाथ से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में-
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सृष्टि के पहले गुरु
शास्त्रों में सृष्टि के पहले गुरु भगवान शिव को बताया गया है। ये महज संयोग नहीं है कि सावन मास शुरू होने के एक दिन पहले गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। वास्तव में शिव ही आदि गुरु हैं। ब्रह्मा अगर सृष्टि के पिता हैं, तो शिव प्रथम गुरु। शांति, संतुष्टि, समानता और सहयोग का जो पाठ शिव ने संसार को पढ़ाया वो किसी अन्य देवता ने नहीं। देवता हो या दानव, सबको समान भाव से स्नेह दिया। शिव ने कभी भी अपनी शरण में आए दैत्यों से भी भेद नहीं किया। कैलाश की बर्फीली पहाड़ी को घर बनाया, पशुओं की खाल को वस्त्र, भस्म को श्रंगार इस सब में भी सबसे ज्यादा संतुष्ट और प्रसन्न। 

शिव का श्रृंगार
सभी देवताओं में शिव का श्रंगार सबसे अलग है। वाघंबर यानि शेर की खाल के वस्त्र, भस्म का लेप, रुद्राक्ष की माला, गले में सर्प, हाथ में त्रिभूल, उस पर बंधा डमरू और नंदी की सवारी। ये चीज़ें ही भगवान को सबसे अलग बनाती हैं। 
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अघोरी का रूप 
अघोरी का अर्थ हम लगाते हैं डरावनी चीजों से। हाथ में नर-कपाल लिए किसी तांत्रिक की छवि सामने आती है। लेकिन, शिव अघोर हैं। घोर का अर्थ होता है, डरावना या बहुत भयंकर। शिव सहज हैं, श्मशान में भी रह लेते हैं, शिवालय में भी। कैलाश पर भी वास है, काशी भी धाम। सब जगह एक समान है। शिव को पंचमेवा भी प्रिय हैं, घतुरे के कांटेदार फल भी। दोनों के स्वाद, तासीर और रंग-रुप में विपरीत गुण हैं लेकिन दोनों को समान भाव से स्वीकार करते हैं। शिव घोर नहीं है, सहज हैं, इसलिए अघोर हैं। 


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