ये फूल भगवान शिव को नहीं है पंसद, जानें रहस्य

punjabkesari.in Monday, Jan 07, 2019 - 03:41 PM (IST)

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हिंदू धर्म में केवल भगवान शिव ऐसे देव हैं जो अपने भक्तों के सारे कष्ट एक मात्र जल चढ़ाने से ही दूर कर देते हैं। आप सब ने ये तो सुना ही होगा कि भोलेनाथ को भांग-धतूरा, बेल्व पत्र और फूल, फलों से कितना प्रेम है। लेकिन क्या आप जानते है कि उनको सबसे प्रिय व अप्रिय फूल कौन सा है। तो चलिए आज हम आपको इसी के बारे में बताएंगे। 
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शिवपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव को सफे़द रंग का फूल अति प्रिय है। लेकिन सफ़ेद रंग का हर फूल उनको नहीं पंसद। शिव पुराण में एक खास फूल को भगवान शिव की पूजा में उपयोग करना विर्जित बताया गया है। अगर आप अनजाने में यह फूल भगवान भोलेनाथ को चढ़ा रहे हैं तो यह समझ लीजिए आप भगवान भोलेनाथ को खुश होने की बजाय नाराज़ कर सकते हैं। वो फूल कोई ओर नहीं बल्कि केतकी का फूल। आज हम आपको इसके पीछे जुड़ी एक पौराणिक कथा के बारे में बताएंगे कि ऐसी क्या वजह थी जो भगवान ने केतकी के फूल का त्याग किया। 
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शिव पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्माजी और भगवान विष्णु में विवाद हो गया कि दोनों में से कौन बड़ा हैं। विवाद का फै़सला करने के लिए भगवान शिव को न्यायकर्ता बनाया गया। उसी समय भोलेनाथ ने एक अखण्ड ज्योति लिंग के रूप में प्रकट की और कहा कि आप दोनों देवों में से जो भी ज्योतिर्लिंग का आदि और अंत बता देगा वहीं बड़े कहलाएगा। ब्रह्मा जी ज्योतिर्लिंग को पकड़कर आदि पता करने के लिए नीचे की ओर चल पड़ और विष्णु भगवान ज्योतिर्लिंग का अंत पता करने के लिए ऊपर की ओर चल पड़े।
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कुछ समय चलने के बाद भी ज्योतिर्लिंग का आदि व अंत का पता नहीं चला। तो ब्रह्मा जी ने देखा कि एक केतकी का फूल भी उनके साथ नीचे आ रहा है। ब्रह्मा ने केतकी का फूल को बहला फुसलाकर झूठ बोलने के लिए तैयार कर लिया और भगवान शिव के पास पहुंच कर कहा कि मुझे ज्योतिर्लिंग जहां से उत्पन्न हुआ है वहां का पता चल गया है। लेकिन भगवान विष्णु ने कहा कि मैं ज्योतिर्लिंग का अंत नहीं जान पाया।
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ब्रह्मा जी ने अपनी बात को सच साबित करने के लिए केतकी के फूल से भी गवाही दिलवाई। केतकी पुष्प ने भी ब्रह्मा की हां में हां मिला दी और विष्णु के पक्ष को असत्य बता दिया। लेकिन भगवान शिव ब्रह्मा जी के झूठ को जान गए। इस पर भगवान शिव वहां प्रकट हो गए। उन्होंने केतकी के झूठ पर गुस्सा होकर उसे सदा के लिए त्याग दिया। केतकी फूल ने झूठ बोला था इसलिए भगवान शिव ने उसे अपनी पूजा से वर्जित कर दिया और उसी दिन से भगवान शंकर की पूजा में केतकी पुष्प को चढ़ाना माना हो गया था। 
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