जैन धर्म में क्यों नहीं किया जाता, सूर्यास्त के बाद भोजन

punjabkesari.in Friday, Aug 30, 2019 - 03:00 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
भोजन एक ऐसी चीज़ है, जिसका नाम लेने व सुनने से ही सबको भूख सताने लग जाती है। फिर चाहे कोई भी समय क्यों न हो, भूख तो अपने आप ही लग जाती है। वहीं अगर हम बात करें आयुर्वेद की तो उसके हिसाब से दिन ढलने से पहले भोजन कर लेना चाहिए। लेकिन आज के समय में लोग अपनी दिनचर्या और अपने आराम के हिसाब से सब काम करते हैं। वहीं अगर देखें जैन धर्म के लोगों को तो वह रात का खाना खाने की मनाही करते हैं। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि वे शाम के बाद खाना क्यों नहीं खाते? अगर नहीं तो आज हम आपको उसी के बारे में बताने जा रहे हैं। 
PunjabKesari, kundli tv, jain dharm, Jainism
जैसे कि सब जानते ही हैं कि जैन धर्म अहिंसा पर अधिक जोर देता है फिर वो चाहे किसी भी रूप में क्यों न हो। उनका मानना है कि शाम के बाद खाने से व्यक्ति को कई बीमारियां आकर घेर लेती हैं। लेकिन किसी भी मत में पड़ने से पहले जान लेते हैं दो कारणों को। 
PunjabKesari, kundli tv, jain dharm, Jainism
पहला कारण बताया गया है कि अहिंसा और दूसरा बेहतर स्वास्थ्य। यानि कीटाणु और रोगाणु जिन्हें हम सीधे तौर पर देख नहीं सकते वे सूक्ष्म जीव रात्रि में तेजी से फ़ैल जाते हैं। ऐसे में सूर्यास्त के बाद खाने से वे सीधा हमारे शरीर में जाकर बीमारियां पैदा करते हैं और जैन धर्म में इसे हिंसा माना गया है। इसलिए वे लोग शाम के बाद खाने को हाथ तक नहीं लगाते हैं। आयुर्वेद का मानना है कि सूर्यास्त से पहले भोजन करने से हमारा पाचन तंत्र ठीक रहता है और ऐसा करने पर पाचन शक्ति मजबूत होती है। इसके अलावा शाम के पहले खाने से भोजन जल्दी पचता है और एसिडिटी एवं पेट में भारीपन आदि कोई समस्या पैदा नहीं होती है। 
PunjabKesari, kundli tv, jain dharm, Jainism
चातुर्मास का महत्व
जैसे कि सब जानते ही होंगे कि हिंदू धर्म में चातुर्मास का बड़ा महत्व होता है। वहीं जैन धर्म में इस मास का पर्व मनाया जाता है। जैन धर्म के अनुसार इस मौसम में अनेकों प्रकार के कीड़े एवं सूक्ष्म जीव पैदा हो जाते है इस कारण अधिक चलने-फिरने से इन जीवों को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए जैन साधु एक ही स्थान पर बैठकर तप, स्वाध्याय एवं प्रवचन करते हैं और अहिंसा का पूरी तरह से पालन करते हैं। मान्यता है कि जो जैन अनुयायी वर्षभर जैन धर्म का पालन नहीं कर पाते वे इन दिनों में रात्रि भोजन का त्याग,ब्रह्मचर्य,स्वाध्याय,जप-तप मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा मुनि महाराजों की सेवा कर उनके बताए मार्गों पर चलकर अपने जीवन को सुखद बना सकते हैं।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Lata

Recommended News

Related News