लक्ष्मी जी के मुख से जानें, वह कहां रहना करती हैं पसंद

punjabkesari.in Monday, Jan 31, 2022 - 11:31 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

एक दिन लक्ष्मी जी इंद्र के दरवाजे पर पहुंचीं। बोलीं, ‘‘हे इंद्र! मैं तुम्हारे यहां निवास करना चाहती हूं।’’

इंद्र ने आश्चर्य से कहा, ‘‘कमले! आप तो असुरों के यहां बड़े आनंदपूर्वक रहती थीं। वहां आपको कुछ कष्ट न था। मैंने कितनी ही बार आपको अपने यहां बुलाने का महान प्रयत्न किया परन्तु तब आप न आईं और आज बिना बुलाए मेरे द्वार पर पधारी हैं। सो देवी! इसका कारण तो मुझे समझाकर कहिए।’’

PunjabKesari Where does Laxmi loves to live

लक्ष्मी जी ने प्रसन्न मुख उत्तर दिया, ‘‘इंद्र! कुछ समय पूर्व असुर बड़े धर्मात्मा थे। वे कर्तव्य परायण थे। अपना सब काम नियमित रूप से करते थे, परन्तु उनके ये सद्गुण धीरे-धीरे नष्ट होने लगे। प्रेम के स्थान पर ईर्ष्या-द्वेष और क्रोध-कलह का उनके परिवारों में निवास रहने लगा। अधर्म, दुर्गुण और तरह-तरह के व्यसनों की वृद्धि होने लगी। इन दुर्गुणों में भला मैं कैसे रह सकती हूं। मैंने सोचा कि इस दूषित वातावरण में अब मेरा निर्वाह नहीं हो सकता इसलिए दुराचारी असुरों को छोड़कर मैं तुम्हारे यहां (सद्गुणों में) निवास करने चली आई हूं।’’

इंद्र चकित रह गए। लक्ष्मी जी के निवास करने का रहस्य उन्हें मालूम होने लगा। उन्होंने कहा, ‘‘हे भगवती! वे और कौन-कौन से दोष हैं जिनके कारण आपने असुरों को छोड़ा है, कृपा करके मेरे तथा आने वाली संतान के लिए उन त्रुटियों को विस्तारपूर्वक मुझे बताइए जिससे मैं भविष्य में सावधान रहूं।’’

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लक्ष्मी जी इंद्र पर विशेष कृपालु हुईं। उन्होंने वे सब रहस्य बता दिए, जिनके कारण उन्होंने असुरों का परित्याग किया था। लक्ष्मी जी ने कहा, ‘‘इंद्र जब कोई वयोवृद्ध, सत्पुरुष ज्ञानविवेक का उपदेश करते थे तो असुर लोग उनका उपहास करते थे या उपेक्षा से निद्रा लेने लगते थे। यह मुझे बुरा लगा। वृद्ध और गुरुजनों के सम्मान का विचार न करके उनकी बराबरी के आसन पर बैठते थे। सत्कार, शिष्टाचार और अभिवादन की बात वे लोग भूल गए थे। लड़के माता-पिता से मुंहजोरी करने लगे थे। वे बहुत रात तक घूमते-फिरते, चिल्लाते रहते, न स्वयं सोते, न दूसरों को सोने देते थे। ये अकारण ही वैर-विवाद मोल ले लेते थे। यह मुझे अनुचित लगा। अत: मैं वहां से बुरा मानकर चली आई।’’

असुरों की स्त्रियों ने पतियों की आज्ञा मानना छोड़ दिया था। पुत्र को पिता की परवाह न रही। शिष्य आचार्यों की तरफ से मुंह भटकाने लगे। समाज की समस्त मान-मर्यादाएं जाती रहीं। ये लोग सुपात्रों को दान और लंगड़े-लूले, भिखारियों को भिक्षा न देकर धन को विलास, ऐशो-आराम में खर्च करने लगे। घर के बच्चों की परवाह न करके बूढ़े पुरुष चुपचाप मधुर मिष्ठान अकेले ही खाते। जहां ऐसे निर्लज्ज आचरण होते हैं, उनके यहां इंद्र! मैं भला किस प्रकार रह सकती हूं?

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‘‘ये असुर लोग फलदार और छायादार हरे-भरे वृक्षों को काटने लगे। दिन चढ़े तक सोते रहते थे, प्रहर रात्रि गए तक खाते रहते, भक्ष्य और अभक्ष्य अन्न का विचार न करते। सत्कर्म करना तो दूर, दूसरों को करते देखते तो उसमें भी विघ्र उपस्थित करते।’’

‘‘स्त्रियां आलस्य और व्यसनों में व्यस्त रहने लगीं। घर में अनाज का अनादर होने लगा, चूहे खाकर अन्न को नष्ट करने लगे। खाद्य पदार्थ खुले पड़े रहते जिन्हें कुत्ते-बिल्ली चाटते।’

‘‘घर में ही पापाचार, स्वार्थ, पक्षपात बढ़ गया। असुरों की वृत्ति मादक द्रव्यों में, जुए-शराब-मांस में, नाच-तमाशों में बढऩे लगी। लापरवाही का हर जगह राज हो गया। ऐसी दशा में नौकरों को खूब बन पड़ी। वे चुरा-चुराकर अपना घर भरने लगे। उनके ऐसे आचरण देखकर मेरा जी जलने लगा। दुखी होकर एक दिन मैं चुपचाप असुरों के घरों से चली आई। अब वहां दरिद्रता का ही निवास होगा।’’

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‘‘हे इंद्र! तुम ध्यानपूर्वक सुनो। मैं परिश्रमी, कर्तव्य परायण, विचारवान, सदाचारी, संयमी, मितव्ययी, जागरूक और नियमित उद्यम करते रहने वाले के यहां निवास करती हूं। जब तक तुम्हारा आचरण धर्मपरायण रहेगा तब तक तुम्हारे यहां मैं बनी रहूंगी।’’

लक्ष्मी के इस कथन ने इंद्र को एक नई शक्ति दी। उन्होंने बड़ी श्रद्धा और आदरपूर्वक लक्ष्मी जी को अभिवादन किया और कहा, ‘‘हे कमले! आप मेरे यहां सुखपूर्वक रहिए। मैं ऐसा कोई अधर्ममय आचरण नहीं करूंगा जिससे नाराज होकर आपको मेरे घर से जाना पड़े।’’ 


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Content Writer

Niyati Bhandari

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