भगवान से बातें करनी हैं तो अपनाएं ये Technique
punjabkesari.in Saturday, Apr 11, 2020 - 10:06 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जिनके वचनामृत से, जिनके संग से, जिनकी सेवा से सहज ही आप में दैवीय गुण आने लगें तथा दुराचार और आसुरी गुण निकलने लगें, जिनके पास रहने से तुम्हारा भजन बढऩे लगे, अपने आप सुमिरन शुरू हो जाए तो समझना कि कोई बुद्ध पुरुष मिल गया, कोई सद्गुरु मिल गया है, कोई महाप्रभु मिल गया है।
आपको संसार में उस व्यक्ति से अधिक और कोई व्यक्ति अलौकिक और विलक्षण न दिखाई दे। आपको लगे कि मेरे सद्गुरु के समान इस विश्व में कोई दिखाई नहीं दे रहा है। इनसे विलक्षण कोई नहीं है, इनसे ज्यादा कोई अलौकिक नहीं है। तो फिर आप समझना कि सही जगह पर पहुंच गए हैं।
फिर तुम्हें भगवान मिले या न मिले तो भी कोई चिंता नहीं क्योंकि आखिर में भगवान होता कौन है?
गुरु की वाणी से, गुरु के आचरण से भगवान ही तो बोलता है, भगवान ही तो चलता है। ऐसा कोई संत मिल जाए तो फिर प्रभु मिलें या न मिलें, यह चिंता छोड़ दो।
ऐसा सद्गुरु मिल जाए तो कभी-कभी साधक अपने सद्गुरु से भी सम्मान की अपेक्षा रखता है कि सद्गुरु दूसरे साधक से ज्यादा आदर मुझे दे। नहीं...ऐसा नहीं होना चाहिए।
कभी-कभी लोग कहते हैं कि महापुरुष के बहुत से भक्त होते हैं तो अंदर ही अंदर होड़ होती है कि सद्गुरु हमको ज्यादा पुकारे, हमको ज्यादा आदर दे। यह नहीं, वह सद्गुरु उनकी उदारता से बुलाए तो बात अलग है। तुम यह अपेक्षा मत करो क्योंकि तुम तो अब नीलाम हो गए हो, तुम बिक चुके हो।
ऐसा कोई संत मिल जाए तो फिर उनके पास अपने आत्मकल्याण के लिए ही जाना। इसलिए मत जाना कि हमको ज्यादा पैसा मिल जाए, हमको ज्यादा प्रतिष्ठा मिल जाए। वह तो तुम्हारे प्रारब्ध में तुम लिखाकर लाए हो, तुम्हारा सद्गुरु गंदगी में हाथ डालकर आशीर्वाद नहीं देगा। केवल उद्धार के लिए ही उनके चरणों में रहो कि ये मेरा उद्धार कर दें।
ऐसा सद्गुरु मिल जाए तो फिर उनकी चेष्टा पर तर्क मत करो कि वह किसको मिला और किसको नहीं मिला, उसने किससे बात की है और किससे नहीं की है। उसने किसको बुलाया है और किसको नही बुलाया है, उसने किससे क्या लिया है और किसको क्या दिया है। यह तर्क करने का अधिकार साधक को नहीं है।
यह सब करते हुए भी जिसको तुम्हारे से कुछ नहीं चाहिए। ठीक है कि वह तुम्हारी प्रसन्नता की वृद्धि के लिए तुम्हारी सेवा कबूल कर ले तो वह बात अलग है। वह उनकी इच्छा नहीं, तुम्हारी इच्छा की पूर्ति हो रही है।
जिसके संग में रहने से व्यक्ति की अपने लक्ष्य की ओर सहज गति होने लगे। प्रभु की ओर, परम विश्राम की ओर, अपने लक्ष्य की ओर गति हो तो समझना कि कोई बुद्ध पुरुष मिल गया है। जिसके साथ रहने से और जिसके वचन सुनने से तुम्हारे हृदय की शंकाओं का बिना पूछे ही समाधान हो जाए तो उसके पैर पकड़ लेना। तुम बिना पूछे उनके चरणों में झुक जाओ कि समाधान हो गया है। तुम्हारे हृदय की ग्रंथि टूटने लगे, तुमको जो निग्र्रन्थ कर दे तो ऐसे महापुरुष को पकड़े रहो।