आपके घर में यहां है टॉयलेट तो विनाश के कगार पर हैं आप

punjabkesari.in Wednesday, Jan 09, 2019 - 11:23 AM (IST)

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PunjabKesariवास्तुशास्त्र के निदान व केलकुलेशन के पीछे पूरी तरह से वैज्ञानिक दृष्टिकोण छिपा है। इसमें सूर्य की किरणों, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र तथा भौगोलिक स्थिति का पूरा-पूरा ध्यान निर्माण से पूर्व रखा जाता है। घर चाहे छोटा हो या बड़ा, उसमें रहना वाला हर व्यक्ति चाहता है की शुभ प्रभाव बना रहे। यदि घर को बनाते समय ही वास्तु के नियमों का ध्यान रख लिया जाए तो कभी भी आप विनाश के कगार पर नहीं पहुंच पाएंगे।  

शौचालय बनवाते समय उसके दरवाजे पर नीचे की तरफ लौहे, तांबे तथा चांदी के तीन तार एक साथ दबा दें।   

शौचालय तथा स्नान घर एक साथ दक्षिण दिशा में बनाया जा सकता है।

किसी कमरे के वायव्य अथवा नैऋत्र्य में शौचालय बनाया जा सकता है। वायव्य दिशा का शौचालय उत्तर की दीवार छूता हुआ नहीं पश्चिमी दिशा की दीवार से लगा हुआ होना चाहिए।

आग्नेय में पूर्व दिशा की दीवार स्पर्श किए बिना भी शौचालय बनवाया जा सकता है।

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शौचालय में पॉट, कमोड इस प्रकार होना चाहिए कि बैठे हुए व्यक्ति का मुंह उत्तर अथवा दक्षिण दिशा में रहे। मल-मूत्र विसर्जन के समय व्यक्ति का मुंह पूर्व अथवा पश्चिम दिशा की ओर कदापि नहीं होना चाहिए।

पानी के लिए नल, शावर आदि उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना चाहिए।

वाश बेसिन तथा बाथ टब भी ईशान कोण में होना चाहिए।

गीजर अथवा हीटर आग्नेय कोण में रखना चाहिए।

शौचालय के द्वार के ठीक सामने रसोई नहीं होनी चाहिए।

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यदि केवल स्नानगार बनाना है तो वह शयनकक्ष के पूर्व, उत्तर अथवा ईशान कोण में हो सकता है।

दो शयनकक्षों के मध्य यदि एक स्नानगार आता हो तो एक के दक्षिण तथा दूसरे के उत्तर दिशा में रहना उचित है।

स्नानागार में यदि दर्पण लगाना है तो वह उत्तर अथवा पूर्व की दीवार में होना चाहिए।

पानी का निकास पूर्व की ओर रखना शुभ है। शौचालय के पानी का निकास रसोई, भवन के ब्रह्मस्थल तथा पूजा के नीचे से नहीं रखना चाहिए।

स्नानागार में यदि प्रसाधन कक्ष अलग से बनाना हो तो वह इसके पश्चिम अथवा दक्षिण दिशा में होना चाहिए।

स्नानागार में कपड़ों का ढेर वायव्य दिशा में होना चाहिए।

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स्नानागार में खिड़की तथा रोशनदान पूर्व तथा उत्तर दिशा में रखना उचित है। एग्जॉस्ट फैन भी इसी दिशा में रख सकते हैं। वैसे यह वायव्य दिशा में होना चाहिए।

स्नानागार में फर्श का ढलान उत्तर, पूर्व अथवा ईशान दिशा में रखना शुभ है।

अलग से स्नानागार बनाना है तो यह पश्चिम अथवा दक्षिण की आउटर वॉल से सटा कर नैऋत्र्य दिशा में बनाना उचित है।

पश्चिम की दिशा में पश्चिमी आउटर वॉल से सटा कर अलग से भी स्नानागार बनाया जा सकता है।

बाहर बनाया गया स्नानागार उत्तर की दीवार से सट कर नहीं होना चाहिए।

शौचालय भवन की किसी भी सीढ़ी के नीचे स्थित नहीं होना चाहिए।

उत्तर तथा पूर्वी क्षेत्र में बना शौचालय उन्नति में भी बाधा पहुंचाता है, मानसिक तनाव देता है तथा वास्तु नियमों के विपरीत होने के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा करता है। 

यदि आपके भवन का निर्माण हो चुका है और आप वास्तुदोष से पीड़ित हैं तो शौचालय की उत्तर पूर्वी दीवार में एक दर्पण लगा लें।

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Niyati Bhandari

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