आज भी श्री कृष्ण की महारास की गाथा गा रहा है वंशीवट घाट, जानें कहां है?

punjabkesari.in Friday, Sep 23, 2022 - 04:23 PM (IST)

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जब भी श्री कृष्ण की बात होती है तो सबसे पहले कृष्ण भक्तों के मन उनकी लीलाभूमि वृंदावन का विचार जरूर आता है। कहा जाता है उन्होंने अपने बाल्य काल में यहां अगिनत लीलाएं की। जिसे देखने आज भी श्री कृष्ण के भक्त दूर से दूर से वृंदावन की यात्रा करने आते हैं। वृंदावन की यात्रा में भगवान की लीला स्थलियों के दर्शन का तो खासा महत्व है ही साथ ही साथ यहां स्थित पावन घाटों का भी अधिक महत्व है। ऐसे में पितृ पक्ष के अवसर के मद्दनेजर हम आपको वृंदावन के पावन घाटों के बारे में ही बताने जा रहे हैं। जहां श्राद्ध आदि कार्य करने तो बेहद लाभकारी माना जाता है। साथ ही साथ इन घाटों का ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व भी है। माना जाता है यमुना तट की लीलाओं में कालीय मर्दन, चीरहरण लीला, केशी वध लीला प्रमुख हैं। यही कारण है कि राजे-रजवाड़ों ने इन घाटों के महत्व को देखते हुए अपने रियासत काल में पक्के घाटों का निर्माण करवाया गया। अब विकास के नाम पर कंक्रीट के वन में तब्दील हो चुके वृंदावन में भगवान की लीलाओं का बखान करने वाले 38 घाटों में से अधिकतर घाट अपना अस्तित्व भी खो चुके हैं। जो घाट बचे हैं, वो अपने अस्तित्व से जूझ रहे हैं। केसी घाट, अक्रूर घाट को छोड़ दें तो अधिकांश घाट अब यमुना से बहुत दूर हो गए हैं। तो चलिए जानते हैं वृंदावन में स्थित प्रमुख घाटों के बारे में- 

केशी घाट-
बता दें केशी घाट वृंदावन के उत्तर-पश्चिम दिशा में तथा भ्रमर घाट के समीप स्थित है। वर्तमान समय में यह घाट नगर के प्रमुख घाट के रूप में है और अपना अस्तित्व बचा पाने में सक्षम है। इससे जुड़े पौराणिक उल्लेख के अनुसार  कंस ने केशी नामक दानव को भगवान श्रीकृष्ण का वध करने भेजा, जो घोड़े के रूप में यमुना किनारे पहुंचा। मगर भगवान श्रीकृष्ण ने उसे पहचान लिया और उसका वध कर दिया। इस घटना के बाद से ही इस घाट का नाम केशी घाट पड़ गया। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से गया में किए गए पिंडदान के समान  फल मिलता है। PunjabKesari वंशीवट घाट, Vrindavan Ghat, Banshi Vat, Vamshi Vata, Vrindavan Banshi Vat, Vrindan, Keshi Ghat, Dhir Sameer Ghat, Jagannath Ghat, Dharmik Sthal, Religious Place in India, Hindu Teerth Sthal, Dharm

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धीर समीर घाट-
 धीर समीर घाट केशीघाट से पूर्व दिशा में स्थित है। यहां की मान्यताओं के अनुसार यहां वृंदा देवी की अनेक लीलाओं का उल्लेख है। तो वहीं यहीं पर श्रीकृष्ण की राधा जी के प्रति व्याकुल मिलन की उत्कंठा देखकर वृंदा देवी बेहोश हो गईं। भगवान श्रीकृष्ण की उत्कंठा देख राधा जी भी तुरंत वृंदा देवी के साथ आई जिसके बाद प्रिया-प्रियतम मिलन देख सखिया प्रसन्न हो गई। कहा जाता है इसलिए ही इस घाट का नाम धीर समीर रखा गया।
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वंशीवट घाट-
यमुना किनारे पर स्थित घाट को वंशीघाट के नाम से जाना जाता है। कहा जता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने राधा जी व गोपियों संग जिस भूमि पर महारास किया तो वंशीवट घाट है। चूंकि भगवान की बासुरी से निकले स्वरों से मुग्ध होकर राधाजी व गोपिया रातभर महारास करती रहीं, इसके चलते वंशीवट ऐसा कहा जाता है कि आज भी भगवान के महारास की गाथा गा रहा है। 
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जगन्नाथ घाट-
हिंदू धर्म से जुड़ी मान्यताओं व कथाओं के अनुसार पुरी से चलकर भगवान जगन्नाथ का रथ पहली बार जिस घाट पर रुका था, वहीं जगन्नाथ मंदिर स्थापित हो गया। अतः इसे जगन्नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
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Content Writer

Jyoti

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