Vidur Niti: बातूनी लोग भरोसे के लायक क्यों नहीं ? महात्मा विदुर ने दी चौंकाने वाली सीख
punjabkesari.in Wednesday, May 21, 2025 - 12:15 PM (IST)

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Vidur Niti: भारतीय इतिहास और साहित्य में महात्मा विदुर एक महान नीतिज्ञ, राजनयिक और धर्मात्मा पुरुष के रूप में प्रसिद्ध हैं। विदुर नीति, जो कि महाभारत के उद्योग पर्व में वर्णित है, आज भी नीतिशास्त्र का अद्भुत ग्रंथ मानी जाती है। इसमें जीवन के हर क्षेत्र से संबंधित गहन ज्ञान और व्यवहारिक सुझाव मौजूद हैं। विदुर नीति के एक अंश में महात्मा विदुर कहते हैं कि जो व्यक्ति अत्यधिक बोलता है, वह कभी भी पूरी तरह से विश्वास के योग्य नहीं होता। यह बात भले ही साधारण प्रतीत हो लेकिन इसके पीछे एक गहरी सामाजिक समझ छिपी है।
अत्यधिक बोलना विवेक की कमी को दर्शाता है
महात्मा विदुर के अनुसार, जो व्यक्ति बिना सोचे-समझे या अनावश्यक रूप से बहुत अधिक बोलता है, वह अपने विचारों को नियंत्रित नहीं कर पाता। अधिक बोलने से व्यक्ति अपनी ही कही बातों में उलझ जाता है और कई बार ऐसी बातें कह देता है, जो या तो अनुचित होती हैं या किसी का भरोसा तोड़ देती हैं।
चुप रहना विवेकशीलता की निशानी है
जो व्यक्ति सोच-समझकर कम बोलता है, उसकी बातों में गंभीरता और स्थिरता होती है। ऐसे लोग अपने शब्दों का चयन ध्यानपूर्वक करते हैं और इसलिए जब वे कुछ कहते हैं, तो लोग उसे गंभीरता से लेते हैं। विदुर के अनुसार, मूक रहकर सही समय पर बोलना ही असली बुद्धिमत्ता है।
गोपनीय बातें सुरक्षित नहीं रहतीं
अत्यधिक बोलने वाले व्यक्ति से गोपनीय बातें साझा करना जोखिम भरा हो सकता है। विदुर नीति कहती है कि जो व्यक्ति अपने विचारों को नियंत्रित नहीं कर पाता, वह किसी की भी निजी या संवेदनशील जानकारी अनजाने में सार्वजनिक कर सकता है। ऐसे लोगों को विश्वास में लेना बुद्धिमानी नहीं होती।
चालाकी और चंचलता का संकेत
कई बार ज्यादा बोलने वाला व्यक्ति दूसरों को प्रभावित करने की कोशिश में बना रहता है। यह प्रवृत्ति उसके आत्मकेन्द्रित होने का संकेत हो सकती है। ऐसे लोग अपने हित के लिए बातों का जाल बुनते हैं, लेकिन बार-बार बोलने से उनकी चालाकी सामने आ जाती है और लोग उन पर से विश्वास उठाने लगते हैं।
शब्दों की शक्ति और उनका भार समझें
विदुर नीति हमें सिखाती है कि शब्दों का उपयोग सोच-समझकर करना चाहिए क्योंकि शब्दों में शक्ति होती है यह किसी को बना भी सकते हैं और गिरा भी सकते हैं। जो लोग बहुत बोलते हैं, वे अक्सर अपनी बातों की गंभीरता खो बैठते हैं। वहीं जो कम बोलते हैं, उनकी बातों में वजन होता है और उनका कहा लंबे समय तक याद रखा जाता है।