Veer Savarkar Death Anniversary: मौत से 1 महीने पहले ही खाना छोड़ दिया, जानें विनायक दामोदर से वीर सावरकर बनने की कहानी
punjabkesari.in Monday, Feb 26, 2024 - 07:42 AM (IST)

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Veer Savarkar Death Anniversary: हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा हिन्दुत्व को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय वीर सावरकर को ही जाता है। वह एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार भी थे। इस महान विभूति का जन्म महाराष्ट्र में नासिक के निकट भागुर गांव में 28 मई, 1883 हुआ था। इनकी माता राधाबाई तथा पिता दामोदर पंत सावरकर धार्मिक विचारों वाले थे। इनके दो भाई गणेश व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई थीं। वह अभी जवान भी नहीं हुए थे कि उनके माता-पिता का देहांत हो गया।
इन्होंने पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से बी.ए. की और 1904 में ‘अभिनव भारत’ नामक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की। 1905 में बंगाल विभाजन के बाद इन्होंने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई।
उच्च शिक्षा के लिए सावरकर लंदन पहुंचे जहां ग्रेज इन्न लॉ कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद इंडिया हाऊस में रहने लगे, जो उस समय क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था। सावरकर ने ‘फ्री इंडिया सोसाइटी’ का गठन किया जहां वह अपने साथी भारतीय छात्रों को स्वतंत्रता के लिए लड़ने को प्रेरित करते थे।
10 मई, 1907 को इन्होंने इंडिया हाउस, लंदन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयंती मनाई, जिसमें ओजस्वी भाषण में प्रमाणों सहित 1857 के संग्राम को गदर नहीं अपितु भारत की स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम सिद्ध किया। मई 1909 में उन्होंने लंदन से बार एट लॉ (वकालत) की परीक्षा उत्तीर्ण की, परन्तु इन्हें वहां वकालत करने की अनुमति नहीं मिली।
1 जुलाई, 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिए जाने के बाद इन्होंने लंदन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। उनकी गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेजों ने इन्हें हत्या में शामिल होने और भारत हथियार भेजने के जुर्म में फंसा कर गिरफ्तार कर आगे के अभियोग के लिए भारत भेज दिया।
सावरकर को बंबई के गवर्नर ने भारत के सबसे खतरनाक पुरुषों में से एक बताया था। उन पर विभिन्न अधिकारियों की हत्याओं का आयोजन करके भारत में ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश में भाग लेने का आरोप लगाया गया। उन्हें सुनाई गई दो-दो आजन्म कारावास की सजा विश्व इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। नासिक जिले के कलेक्टर जैक्सन की हत्या के लिए नासिक षड्यंत्र कांड के अंतर्गत इन्हें 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया।
1921 में मुक्त होने के बाद मार्च, 1925 में उनकी भेंट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से हुई। 1937 में वह अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के कर्णावती (अहमदाबाद) में हुए 19 वें सत्र के अध्यक्ष चुने गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के माध्यमों के बारे में गांधी जी और सावरकर का एकदम अलग दृष्टिकोण था। गांधी जी की हत्या के बाद महत्वाकांक्षाओं से भरे सत्ताधारियों ने सावरकर सहित ऊंचे कद के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के विरुद्ध षड्यंत्र रच कर उन्हें बदनाम करना शुरू किया। उनमें से सावरकर द्वारा अंग्रेजों से माफी मांगने के लिए माफीनामे (दया याचिका) भेजने का भी नैरेटिव है।
सितंबर, 1965 से उन्हें तेज ज्वर ने आ घेरा, जिसके बाद उनका स्वास्थ्य गिरने लगा। 1 फरवरी, 1966 को उन्होंने मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय लिया। 26 फरवरी, 1966 को उन्होंने पार्थिव शरीर छोड़कर परमधाम को प्रस्थान किया। इनके सम्मान में 1966 में डाक टिकट जारी हुआ और अब पोर्ट ब्लेयर के हवाई अड्डे का नाम वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है।