इस मंदिर में पानी की नहीं बहती है शुद्ध घी की नदी

punjabkesari.in Tuesday, Nov 05, 2019 - 03:48 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हमारे भारत में ऐसी कई नदियां हैं जिनका संबंध ह्मारे हिंदू ध्रम से है। हम जानते हैं ये पहली लाइन पढ़ते ही आप सोच रहे होंगे कि हम यकीनन आपको किसी नदी के बारे में बताने जा रहे हैं। आप गलत नही सोच रहे हम आपको बताने तो वाले एक नदी के बारे में ही लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि ये नदी पानी की नहीं, बल्कि घी की नदी है। जी हां, पढ़ने-सुनने में थोड़ा अटपटा लग रहा होगा लेकिन गुजरात के एक रूपाल नामक गांव में श्री वरदायिनी माता का मंदिर स्थित है जिसे श्री ब्राह्मणी माताजी मंदिर के नाम भी जाना जाता है। जहां नवरात्रि के दौरान लगने वाले 10 दिन के पल्ली उत्सव में माता को इतना घी चढ़ाया जाता है कि यहां घी की नदी बन जाती है। बताया जाता है इस में लोग दूर-दूर से शामिल होने आने लगते हैं।
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आइए जानते हैं मंदिर से जुड़ी खास जानकारी-
यहां की लोक मान्यता के अनुसार हर साल यहां इतना घी चढ़ाया जाता है कि पूरे गांव में घुटनों-घुटनों तक घी बहने लगता है। जब यह सारा घी गांव की गलियों में एक छोटी सी नहर का रूप ले लेता है तो लोग इस घी को जमा करने लगते हैं।

परंतु बता दें शास्त्रों के अनुसार यह घी केवल वाल्मीकि समाज के लोग ही जमा कर सकते हैं। बताया जाता इस घी को जमा करने के बाद इसे साफ़ किया जाता है और फिर इसी घी की मिठाइयां बनाईयां जाती हैं तथा इसे बाज़ार में विक्रय भी किया जाता है।
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पल्ली उत्सव से क्या है मतलब-
पल्ली का मतलब होता है एक प्रकार का लकड़ी का ढांचा होता है जिसमें पांच जोत होती है। वरदायिनी माता के इस मंदिर में इसी से माता का अभिषेक किया जाता है। इसे पल्ली गांव के चौराहों पर भी ले जाया जाता है जहां लोग घी के साथ तैयार रहते हैं जिसकी मात्र लाखों लीटर में होती है। यहां के प्रचलित मान्यताओं के अनुसार यहां घी पहले ज़मीन पर गिराया जाता उसके बाद अर्पित किया जाता है जिसे बाद में भर के प्रसाद के रूप में साल भर इस्तेमाल किया जाता है। यहां के घी की खासियत यह है कि कोई भी जानवर इसे नहीं चाटता और इसका कपड़ों पर भी निशान नहीं पड़ता। घी के इस उत्सव के दौरान माता रानी से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।

पौराणिक कथा-
कहा जाता है प्राचीन समय में पांडव अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ वनवास के दौरान रूपाल गांव से निकले थे  तब माता वरदायिनी की आराधना करके एक साल के गुप्तवास के दरमियान पकड़े न जाएं ये मन्नत मांगी थी। 1 साल बाद मानता पूर्ण होते ही पांडवों ने सोने की पल्ली बनवाकर, उस पर शुद्ध घी चढ़ाकर पूरे गांव में पल्ली यात्रा निकाली थी। माना जाता इसके बाद से ही यहां ये परंपरा शुरू हुई जो आज तक जीवंत है। बता दें इस रथ को सभी वाणंगभाई सजाते हैं और कुम्हार लोग मिट्टी के पांच कुंड बनाकर पल्ली यात्रा पर रखते हैं।
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Jyoti

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