Varalakshmi Vrat Katha: वरलक्ष्मी व्रत में पढ़ें यह कथा, मां लक्ष्मी करेंगी धन-वैभव की वर्षा
punjabkesari.in Wednesday, Aug 06, 2025 - 01:44 PM (IST)
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Varalakshmi Vrat Katha: वर्ष 2025 में वरलक्ष्मी व्रत का पावन पर्व 8 अगस्त को मनाया जाएगा। इस बार का व्रत और भी खास माना जा रहा है क्योंकि इस दिन इंद्र योग और सुकर्मा योग जैसे शुभ संयोग बन रहे हैं, जो पूजा को अत्यंत प्रभावशाली बना देते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी महिला इस दिन पूरे श्रद्धा और नियम से व्रत करती है, उसके जीवन में अष्टलक्ष्मी का वास होता है। इसका अर्थ है कि केवल धन ही नहीं, बल्कि संतान सुख, विजय, धैर्य, विद्या, ऐश्वर्य, और सुख-शांति भी उसके जीवन में आती है। इसीलिए वरलक्ष्मी व्रत को सिर्फ एक उपवास नहीं, बल्कि समृद्धि और कल्याण का पर्व माना जाता है। यह दिन नारी शक्ति के सम्मान और उसकी मंगल कामनाओं को पूर्ण करने वाला शुभ अवसर होता है।

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार मगध राज्य में कुंडी नामक एक नगर था। कथानुसार कुंडी नगर का निर्माण स्वर्ग से हुआ था। इस नगर में एक ब्राह्मणी नारी चारूमति अपने परिवार के साथ रहती थी। चारूमति कर्तव्यनिष्ठ नारी थी जो अपने सास, ससुर एवं पति की सेवा और मां लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना कर एक आदर्श नारी का जीवन व्यतीत करती थी।एक रात्रि में चारुमति को मां लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर उसके स्वप्न में दर्शन दिए और बोली की, "चारुमति हर शुक्रवार को मेरे निमित्त मात्र वरलक्ष्मी व्रत से किया करों। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हे मनोवांछित फल प्राप्त होगा।"
अगले सुबह चारुमति ने मां लक्ष्मी द्वारा बताए गए वरलक्ष्मी व्रत को समाज की अन्य नारियों के साथ विधिवत पूजन किया। पूजन के संपन्न होने पर सभी नारियां कलश की परिक्रमा करने लगीं, परिक्रमा करते समय समस्त नारियों के शरीर विभिन्न स्वर्ण आभूषणों से सज गए। उनके घर भी स्वर्ण के बन गए यहीं नहीं उनके इस पूजा में घोड़े, हाथी, गाय आदि पशु भी आ गए। सभी नारियां चारुमति की प्रशंसा करने लगें क्योंकि चारुमति ने ही उन सबको इस व्रत विधि के बारे में बताया था। कालांतर में यह कथा भगवान शिव जी ने माता पार्वती को सुनाई थी। इस व्रत को सुनने मात्र से लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है।
बताते चलें हिंदू धर्म में मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए वरलक्ष्मी का व्रत किया जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की वरलक्ष्मी के रुप में पूजा की जाती है। वरलक्ष्मी देवी का अवतार दुधिया महासागर से हुआ था जिसे क्षीर महासागर के नाम से जाना जाता है। वरलक्ष्मी का रंग दुधिया महासागर के रंग के रुप में वर्णित किया जाता है और वो इस रुप में रंगीन वस्त्रों में सजी होती है।

Method of worship पूजन विधि
बता दें इस दिन व्रती को प्रात:काल उठकर साफ सफाई कर स्नान ध्यान से निवृत होकर, पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र कर लें। इसके बाद व्रत का संकल्प लेकर मां लक्ष्मी की मूर्ति को नए कपड़ों, ज़ेवर और कुमकुम से सजाएं। ऐसा करने के बाद मां लक्ष्मी की मूर्ति के साथ गणेश जी की मूर्ति पूर्व दिशा में स्थापित करें। पूजा स्थल पर थोड़े से चावल फैलाकर उस पर जल से भरा कलश स्थापित करें। कलश के चारों तरफ चंदन लगाएं। इसके बाद एक नारियल पर चंदन हल्दी और कुमकुम लगाकर उस कलश पर रखें। एक थाली में लाल वस्त्र , अक्षत ,फल, फूल,दूर्वा, दीप धूप आदि से मां लक्ष्मी की पूजा करें। मां की मूर्ति के समक्ष दिया जलाकर वरलक्ष्मी व्रत की कथा पढ़े। पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद महिलाओं को बांटे। इस दिन व्रती को निराहार रहना चाहिए। रात्रि काल में पूजा अर्चना के बाद फलाहार करना उचित माना जाता है।

